अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। अमेरिका की एक ट्रेड कोर्ट ने ट्रंप के 'रेसिप्रोकल टैरिफ' के लागू होने पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने ट्रंप के रेसिप्रोकल टैरिफ को 'अवैध' करार दिया है। कोर्ट के इस फैसले को ट्रंप की आर्थिक नीतियों के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।
ट्रंप ने इस साल 2 अप्रैल को दुनियाभर के 185 देशों पर 'रेसिप्रोकल टैरिफ' का ऐलान किया था। ट्रंप ने इसे 'लिबरेशन डे' बताया था। हालांकि, बाद में ट्रंप ने इस टैरिफ पर 9 जुलाई तक रोक लगा दी थी। अब ट्रेड कोर्ट ने भी इस पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि राष्ट्रपति उन देशों पर टैरिफ लगाकर अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया है, जो अमेरिका से खरीदते कम हैं और बेचते कम हैं।
ट्रंप सरकार ने टैरिफ लागू करने को लेकर तर्क दिया कि इससे चीन के साथ ट्रेड वॉर की दिशा बदल सकती है। साथ ही यह भी तर्क दिया कि यह फैसला भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को फिर से बढ़ा सकता है। अधिकारियों ने दावा किया कि ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर करवाने के लिए टैरिफ पावर का इस्तेमाल किया था। उन्होंने अदालत में कहा कि टैरिफ को लेकर कई देशों के साथ ट्रेड टॉक चल रही है और यह मुद्दा 'नाजुक स्थिति' में है, क्योंकि इन ट्रेड डील को फाइनल करने की आखिरी तारीख 7 जुलाई है।
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अदालत ने क्या कहा?
ट्रंप के रेसिप्रोकल टैरिफ के फैसले को मैनहट्टन की ट्रेड कोर्ट में चुनौती दी गई थी। अदालत की तीन जजों की बेंच ने सारी दलीलों को खारिज करते हुए कहा, 'इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पावर एक्ट (IEEPA) के तहत राष्ट्रपति को 'असीमित' शक्तियां नहीं मिली हैं। यह राष्ट्रपति को सिर्फ आपातकाल के दौरान और असामान्य और असाधारण खतरे से निपटने के जरूरी आर्थिक प्रतिबंध लगाने का अधिकार देता है।'
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि संविधान अमेरिकी सरकार को दूसरे देशों के साथ होने वाले कारोबार को रेगुलेट करने का अधिकार देता है।
'राष्ट्रपति के इस फैसले को इसलिए नहीं माना जा सकता, क्योंकि यह नासमझी भरा नहीं है, बल्कि इसलिए क्योंकि कानून इसकी इजाजत नहीं देता।'- अमेरिकी कोर्ट
मैनहट्टन कोर्ट ने यह भी कहा कि IEEPA की कोई भी व्याख्या, जो 'असीमित टैरिफ' का प्रावधान करती है, वह 'असंवैधानिक' है।
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क्यों आया कोर्ट का यह फैसला?
ट्रंप के रेसिप्रोकल टैरिफ के खिलाफ लिबर्टी जस्टिस सेंटर नाम की संस्था ने केस दायर किया था। सेंटर ने 5 छोटे अमेरिकी कारोबारियों की तरफ से मुकदमा दायर किया था, जो विदेशों से सामान आयात करते हैं। कहना था कि टैरिफ से उनकी लागत बढ़ रही है और उनके व्यवसाय को नुकसान हो रहा है। इनके अलावा, 13 अमेरिकी राज्यों ने भी इसे चुनौती दी थी। उनका कहना था कि इससे उनके कारोबार करने की क्षमता को नुकसान पहुंचेगा। इसके अलावा, टैरिफ के खिलाफ कम से कम 5 केस और दाखिल हैं।
ट्रंप सरकार अब क्या करेगी?
ट्रंप सरकार ने दावा किया था कि यह IEEPA ने उन्हें किसी भी देश पर, किसी भी समय, कितना भी टैरिफ लगाने की अनुमति देता है। ट्रंप के प्रवक्ता कुश देसाई ने कहा कि व्यापार घाटा अमेरिका को नुकसान पहुंचा रहा है और इसके लिए टैरिफ लगाना जरूरी है। हालांकि, कोर्ट ने सारी दलीलों को खारिज कर दिया। बताया जा रहा है कि कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ ट्रंप सरकार ऊपरी अदालत पहुंच गई है।
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क्या था ट्रंप का रेसिप्रोकल टैरिफ?
ट्रंप ने 2 अप्रैल को दुनियाभर के देशों पर टैरिफ की दरें बढ़ा दी थीं। ट्रंप ने भारत पर 26% टैरिफ लगाने का ऐलान किया है। हालांकि, यह पूरी तरह से रेसिप्रोकल टैरिफ नहीं हैं। ट्रंप ने बताया कि बाकी देश हमसे जितना टैरिफ ले रहे हैं, हम उनसे आधा टैरिफ वसूलेंगे।
ट्रंप ने कहा था, 'मेरे प्यारे अमेरिकियों, यह लिबरेशन डे है, जिसका लंबे समय से इंतजार था। 2 अप्रैल 2025 को हमेशा उस दिन के रूप में याद किया जाएगा, जिस दिन अमेरिकी उद्योग का पुनर्जन्म हुआ और जिस दिन हमने अमेरिका को फिर से समृद्ध बनाना शुरू किया।'
उन्होंने कहा था, 'अगर आप चाहते हैं कि आप पर कोई टैरिफ न लगे तो आपको अपने उत्पाद अमेरिका में बनाने होंगे। वरना, विदेशी उत्पादों को अमेरिकी बाजार तक पहुंचने के लिए टैरिफ देना ही होगा।'