संजय सिंह, पटना: बिहार की राजनीति में राजनीतिक घरानों का उतार-चढ़ाव एक सतत प्रक्रिया रही है। कई घराने अपनी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने में सफल रहे, जबकि कई घराने समय के साथ पीछे छूट गए। इस दौरान कुछ राजनीतिक घराने अपनी मजबूत पकड़ और नेतृत्व क्षमता के बल पर लंबे समय तक राजनीति में सक्रिय रहे।
हालांकि, समय के साथ उनकी लोकप्रियता और प्रभाव में कमी आई, जिससे उनकी अगली पीढ़ी को राजनीति में अपनी जगह बनाने में मुश्किल हुई। इस बीच बिहार की राजनीति में नए घरानों का उदय भी हो रहा है। इन घरानों ने अपनी मेहनत और नेतृत्व क्षमता के बल पर राजनीति में अपनी जगह बनाई है। ये नए घराने बिहार की राजनीति में नई ऊर्जा और दिशा प्रदान कर रहे हैं।
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अनुग्रह नारायण सिंह की विरासत
कांग्रेस के शासन काल में अनुग्रह नारायण सिंह का घराना काफी मजबूत था। वे बिहार के उपमुख्यमंत्री रहे। उनके पुत्र सत्येन्द्र नारायण सिंह भी राजनीति में आए उन्हें प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिला | उनके पुत्र निखिल कुमार सिंह दिल्ली में पुलिस आयुक्त थे। वे सांसद और गवर्नर भी हुए। निखिल की मां किशोरी सिन्हा वैशाली से तो उनकी पत्नी श्यामा सिंह औरंगाबाद से सांसद बनीं। सत्येन्द्र बाबू की समधन माधुरी सिंह का परिवार भी बड़ा राजनीतिक घराना था। माधुरी सिंह के साथ-साथ उनके दोनों पुत्र एनके सिंह और उदय सिंह सांसद रहे। फिलहाल उदय सिंह जनसुराज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष है। वर्तमान में इस परिवार का कोई सदस्य सांसद या विधायक नहीं है।
प्रभावशाली परिवार राजनीति से दूर
हालांकि, बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह का परिवार राजनीति से बहुत दूर है। उनके पुत्र बंदी शंकर सिंह राजनीति में आए। उन्हें राज्य सरकार में मंत्री बनने का भी मौका मिला। उनके दूसरे पुत्र सुरेश शंकर सिंह भी राजनीति में आए, लेकिन वे भी राजनीति से दूर हो गए। अब इस परिवार का कोई भी सदस्य सक्रिय राजनीति में नहीं है। इसी तरह जमुई निवासी चंद्रशेखर सिंह भी केंद्र में मंत्री और बिहार के मुख्यमंत्री रहे। उनकी पत्नी मनोरमा सिंह बांका की सांसद रही, लेकिन अब इस परिवार का कोई सदस्य सक्रिय राजनीति में नहीं है।
पूर्व मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद के परिवार की राजनीतिक स्थिति मजबूत नहीं है। मुजफ्फरपुर के ललितेश्वर शाही के परिवार का भी राजनीतिक घराना भी मजबूत था। इनके पुत्र और पुत्रवधु दोनों सक्रिय राजनीति में थी, लेकिन अब यह परिवार राजनीति के मुख्य धारा से अलग है। कांग्रेस शासन काल में महेश प्रसाद सिंह की तूती बोलती थी। इनकी दोनों बेटियां कृष्णा शाही और उषा सिंह राजनीति में आई। उषा सिंह के पति वीरेन्द्र सिंह विधायक भी बने। आज यह परिवार राजनीतिक परिदृश्य से ओझल है।
किनका है बहुत प्रभाव
ललित नारायण मिश्र का परिवार मिथिलांचल की राजनीति में एक प्रमुख स्थान रखता है। उनके भाई डॉ जगन्नाथ मिश्र बिहार के मुख्यमंत्री और सांसद रहे। उनके पुत्र नीतीश मिश्र राज्य सरकार में मंत्री रहे और आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। ललित नारायण मिश्र के पुत्र विजय मिश्र सांसद और उनके पोते ऋषि मिश्र विधायक रह चुके हैं।
लालू प्रसाद यादव का परिवार बिहार की राजनीति में एक प्रमुख स्थान रखता है। लालू यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उनके बेटे तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव क्रमशः उप मुख्यमंत्री और मंत्री रहे। उनकी बेटी मीसा भारती सांसद हैं। इनके अलावा रामविलास पासवान का परिवार खगड़िया जिले के अलौली से आता है और बिहार की राजनीति में एक प्रमुख स्थान रखता है।
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पासवान केंद्र में लंबे समय तक मंत्री रहे। उनके पुत्र चिराग पासवान वर्तमान में केंद्र में मंत्री हैं। उनके भाई पशुपति पारस और रामचंद्र पासवान भी केंद्र में मंत्री और सांसद रह चुके हैं। पशुपति पारस के पुत्र प्रिंस राज भी सांसद रह चुके हैं। इन परिवारों का बिहार की राजनीति पर महत्वपूर्ण प्रभाव रहा है और ये परिवार आज भी सक्रिय रूप से राजनीति में शामिल हैं।