संजय सिंह, पटना: इस बार बिहार का विधानसभा चुनाव सिर्फ दलों का नहीं, बल्कि घरों का रण बन गया है। चुनावी हवा में परिवारों की सियासी शाखाएं अलग-अलग दिशाओं में फैल चुकी हैं। कहीं भाई-बहन या पति-पत्नी अलग-अलग दलों में हैं तो कहीं बाप बेटे का पोस्टर भी अलग-अलग लगा है। लोकसभा की तरह ही विधानसभा चुनाव साबित कर रहा है कि बिहार में वंश अभी खत्म नहीं हुआ है, बस दल बदल गए हैं। पहले यह परंपरा थी कि पिता अपनी राजनीतिक विरासत बेटे या बेटियों को सौंपते थे। अब वही बेटा दूसरे दल में जाकर सियासी मुकाबले में उतर रहा है।
सियासत की चमक में लोग पारिवारिक रिश्तों को भी भूल रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव वाली स्थिति इस विधानसभा चुनाव में भी है। पारिवारिक रिश्ता टूटने का एक मात्र कारण टिकट है। स्थिति यह है कि पिता की आस्था किसी अन्य दल में है तो बेटे और बेटियां की आस्था दूसरे दलों में है। वे सियासी जंग में कूदने को आतुर भी हैं। सत्ता की राह में पारिवारिक रिश्तों से ज्यादा अहम सियासी टिकट हो गया है। कई राजनीतिक घराने अपने-अपने वारिसों को चुनावी मैदान में उतारने की तैयारी में लगे हैं।
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इस तरह खिंची है सियासी दीवार
बांका के सांसद गिरिधारी यादव का रिश्ता जनता दल यूनाइटेड (JDI) के साथ है। उनका संबंध अपने ही पार्टी के विधायक मनोज यादव से मधुर नहीं है। राजनीतिक कटुता के कारण दोनों के बीच दूरी बढ़ती गई। सांसद गिरिधारी के पुत्र चाणक्य ने राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) का दामन थाम लिया। अब चाणक्य के आरजेडी के टिकट पर चुनाव लड़ने की चर्चा है। वह जेडीयू के उम्मीदवार मनोज के खिलाफ मैदान में उतरेंगे।
इसी तरह जन सुराज ने कर्पूरी ठाकुर के छोटे बेटे वीरेंद्र ठाकुर की बेटी जागृति को समस्तीपुर के मोरवा विधानसभा क्षेत्र से टिकट दिया है। जागृति के चाचा रामनाथ ठाकुर जेडीयू कोटे से केंद्र में मंत्री हैं। जननायक कर्पूरी ठाकुर की लोकप्रियता में हिस्सेदारी के लिए जन सुराज ने जागृति को टिकट दिया है। इसी तरह तरारी के भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के विधायक विशाल प्रशांत के चाचा हुलास पांडेय लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) में हैं। प्रशांत के चाचा हुलास के ब्रह्मपुरा सीट से चुनाव लड़ने की चर्चा है।
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अलग-अलग पार्टियों में खोज रहे टिकट
कोसी के बाहुबली नेता आनंद मोहन स्वयं भी पूर्व सांसद रहे हैं। उनके बेटे चेतन आनंद आरजेडी के विधायक चुने गए थे। नीतीश कुमार के पाला बदलने के बाद उन्होंने पार्टी लाइन से अलग हटकर बहुमत साबित करने में जेडीयू का साथ दिया था। अब उनके जेडीयू के टिकट पर शिवहर से चुनाव लड़ने की चर्चा है। आनंद मोहन अपने छोटे पुत्र को नबीनगर (औरंगाबाद) से चुनाव लड़ाने की तैयारी में हैं। वह बीजेपी से टिकट की उम्मीद लगाए बैठे हैं। LJP (RV) नेता चिराग पासवान ने गोविंदगंज सीट अपने प्रदेश अध्यक्ष राजू तिवारी के लिए एनडीए से ली। अब राजू तिवारी के भाई राजन तिवारी भी किसी दूसरे दल से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं।
इसी तरह जेडीयू के विधान पार्षद दिनेश सिंह की पत्नी वीणा देवी वैशाली से LJP (RV) की सांसद हैं। अब वीणा देवी की बेटी गायघाट सीट से चुनाव लड़ सकती हैं। दिनेश सिंह राजनीति में बड़ी हैसियत रखते हैं। इसी तरह झंझारपुर, घोसी और दरभंगा सीट की स्थिति बनी हुई है। कार्यकर्ता जिन सीटों पर पांच वर्षों से टिकट की आस में परिश्रम करते हैं उनकी उम्मीद चुनाव पूर्व के शुरुआती दिनों में ही समाप्त होती दिख रही है।
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2020 के चुनाव में 42 सीटों में बदला पाला
चुनावी मौसम में पाला बदल या जोड़-तोड़ का यह कोई नया खेल नहीं है। राजनीतिक विचारधारा में उलटफेर का खेल लंबे समय से चलता आ रहा है। 2020 के चुनाव में 42 पूर्व सांसद, पूर्व मंत्री और विधायक पाला बदलकर टिकट पाने में सफल रहे थे। उनमें से 22 ने जीत भी सुनिश्चित की थी। इस बार पुराना रिकार्ड टूटने की उम्मीद की जा रही है। दल-बदल करने वाले बाहुबल और धन वाले नेता अधिक हैं। ये दलों को मदद के साथ-साथ जीत के प्रति आश्वस्त करने में सफल रहते हैं।