सीमांचल न्याय यात्रा से क्या पा सकते हैं ओवैसी? बिहार में किसको खतरा?
एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी सीमांचल न्याय यात्रा के जरिए इस क्षेत्र में अपनी ताकत का विस्तार कर रहे हैं। वह मुस्लिम वोटों को अपना पाले में करने की कोशिश कर रहे हैं।

एआईएमआईएम के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी। Photo Credit (@aimim_national)
बिहार में इन दिनों सियासी यात्राओं का दौर चल रहा है। सबसे पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने महागठबंधन के शीर्ष नेताओं के साथ मिलकर राज्य में 'वोटर अधिकार यात्रा' निकाली। इस यात्रा के जरिए राहुल ने पूरे बिहार में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण (SIR) और वोट चोरी के मामले को मुद्दा बनाया। कांग्रेस ने बताया कि उनकी यह यात्रा सफल रही और उन्होंने जनता के बीच अपनी बात पहुंचा दी है। राहुल गांधी की यात्रा के कुछ दिन बाद ही आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने 'बिहार न्याय यात्रा' निकाली, जिसके जरिए उन्होंने एनडीए सरकार पर बेरोजगारी बढ़ाने, पलायन ना रोक पाने, राज्य में उद्योग धंधे ना लगवा पाने का आरोप लगाया। तेजस्वी की इस यात्रा की पूरे राज्य में चर्चा रही।
मगर, राहुल-तेजस्वी की इन यात्राओं के बाद अब ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) चीफ असदुद्दीन ओवैसी 'सीमांचल न्याय यात्रा' निकाल रहे हैं। उन्होंने शनिवार (27 सितंबर) से अपनी यात्रा शुरू की। उन्होंने किशनगंज से चुनावी यात्रा की शुरुआत भी कर दी है। जहां राहुल और तेजस्वी ने अपनी यात्राओं के माध्यम से बीजेपी-जेडीयू के मुकाबले समूचे विपक्ष के लिए वोट बढ़ाने की अपील कर रहे थे।
कहां जाएंगे मुसलमान वोट?
वहीं, ओवैसी अपनी यात्रा के जरिए मुसलमान वोटों को एआईएमआईएम की तरफ मोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। इससे एनडीए की जेडीयू को भले ही ज्यादा नुकसान ना हो लेकिन उनके इस कदम से आरजेडी और कांग्रेस को जरूर नुकसान होने की आशंका पैदा हो गई है। ऐसे में असदुद्दीन ओवैसी सीमांचल न्याय यात्रा से क्या पा सकते हैं? इससे वह अपनी पार्टी के लिए कितना माहौल बनाएंगे? यात्रा से बिहार में किसको खतरा हो सकता है? आइए इसके बारे में जानते हैं...
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फुल फॉर्म में हैं ओवैसी
एआईएमआईएम के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी पूरे फॉर्म में हैं। उन्होंने आज की अपनी इस यात्रा को शुरू करने के बाद कहा कि चुनाव आते ही राज्य से मुद्दे कहीं दूर चले जाते हैं, जबकि चुनाव पर जाति हावी हो जाती है। उन्होंने साथ ही सवालिया लहजे में कहा कि जब कुर्मी, कोयरी, राजपूत, ब्राह्मण, यादव जाति के अपने-अपने नेता हो सकते हैं तो मुसलमानों को ऐसा करने से परहेज क्यों है? ओवैसी कई बार कह चुके हैं कि BJP को रोकने के लिए वे महागठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ना चाहते हैं। पर आरजेडी-कांग्रेस ने उन्हें तवज्जो नहीं दी। ऐसे में ओवैसी ने अकेले लड़ने की चेतावनी दे दी है।
असदुद्दीन ओवैसी ने किशनगंज से सीमांचल न्याया यात्रा शुरू की है। वे 27 सितंबर तक सीमांचल के सभी 4 जिलों किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया में घूमेंगे। इस दौरान वह अपनी पार्टी के लिए माहौल बनाएंगे। उनका कहना है कि यात्रा का मकसद सीमांचल में शिक्षा, रोजगार, बाढ़ राहत और अल्पसंख्यक अधिकारों के मुद्दों को पुरजोर तरीके से उठाना है।
महागठबंधन में शामिल होने की जुगत
दरअसल, हैदराबाद से लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी शुरू से ही महागठबंधन में शामिल होना चाहती थी। उनकी पार्टी के बिहार इकाई के अध्यक्ष अख्तरुल इमान ने गठबंधन में शामिल होने के लिए बहुत कोशिशें कीं लेकिन विपक्षा ने एआईएमआईएम को भाव नहीं दिया। यहां तक कि एआईएमआईएम बिहार के अध्यक्ष इमान ने गठबंधन करने के लिए रैली तक निकाल दी लेकिन यह बेनतीजा रही। 11 सितंबर को अख्तरुल इमान ढोल बजाते हुए पटना में राबड़ी आवास पहुंचे थे। उन्होंने इस दौरान कहा, ‘राज्य में कोई भी पार्टी अकेले NDA को नहीं हरा सकती। अगर हमें शामिल नहीं किया गया तो वोटों का बंटवारा होगा, जिससे एनडीए को फायदा होगा।
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तेजस्वी यादव से नाराजगी
महागठबंधन में जगह नहीं मिलने के बाद से औवैसी तेजस्वी यादव से खासे नाराज हैं। खबर है कि एआईएमआईएम, महागठबंधन से 243 सीटों में से केवल 6 सीटों की मांग कर रही थी, जो तेजस्वी यादव को मंजूर नहीं है। पिछले विधानसभा चुनाव 2020 में एआईएमआईएम ने सीमांचल क्षेत्र में बेहतरीन चुनाव लड़ा था। पार्टी को सीमांचल की जनता ने खूब प्यार दिया, जिसकी बदौलत औवैसी की नई नवेली पार्टी ने पांच सीटें जीती थीं। पार्टी ने किशनगंज जिले से 2, अररिया से 1 और पूर्णिया से 2 सीटों जीती थी। मगर, चुनाव बाद ओवैसी के पार्टी के पांच में से चार विधायकों ने पाला बदलकर आरजेडी का दामन थाम लिया था।
सीमांचल न्याय यात्रा | बारसोई मैदान, बलरामपुर विधानसभा में बैरिस्टर @asadowaisi ने विशाल जनसभा को संबोधित किया। pic.twitter.com/x1g7J2ahrF
— AIMIM (@aimim_national) September 27, 2025
सीमांचल में आरजेडी ने नेतृत्व उभरने से रोका
हालांकि, किशनगंज की सभा में सांसद ओवैसी ने कहा, ‘हम एलायंस के लिए अब भी तैयार हैं। अगर नहीं होगा तब अकेले लड़ेंगे और मजबूती से लड़ेंगे।’ ओवैसी ने न्याय यात्रा के दौरान कहा कि उनकी कोशिश है कि सीमांचल को एक नई राजनीतिक दिशा दी जाय, लेकिन आरजेडी के लोग ऐसे होना देना नहीं चाहते। आरजेडी की पूरी कोशिश रहती है कि सीमांचल में कोई नया नेतृत्व नहीं उभरे। आरजेडी के लोग मुझपर वोट कटवा होने का आरोप लगाते हैं लेकिन इस आरोप में दम नहीं है। हमने महागठबंधन के साथ राजनीतिक समझौता करने की पूरी कोशिश की, लेकिन महागठबंधन के लोगों ने मौका नहीं दिया।
उन्होंने तेजस्वी यादव पर तंज कसते हुए कहा कि अब भी मौका है, बाद में यह ना कहना कि मम्मी-पापा मेरा बैट बॉल लेकर कोई भाग गया। जनता इस बात को अच्छी तरह जानती है कि धर्मनिरपेक्ष ताकतों से समझौता न कर कौन किसकी मदद कर रहा है। सीमांचल क्षेत्र पर फिलहाल आरजेडी-कांगेस का एक तरफा दबदबा है। मगर, 2020 में AIMIM ने पांच सीटें जीतकर उसके सामने चुनौती पेश की है। ऐसे में 2025 के चुनाव में महागठबंधन में शामिल ना करके विपक्ष को भारी नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।
सीमांचल में विधानसभा की कितनी सीटें?
सीमांचल में कुल 4 जिले आते हैं। कटिहार, पूर्णिया, अररिया और किशनगंज। इन चारों जिलों में कुल 24 विधानसभा सीटें हैं। चारों ही जिलों में मुस्लिम आबादी अच्छी-खासी है। साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, किशनगंज में 68%, अररिया में 43%, कटिहार में 45% और पूर्णिया में 39 फीसदी मुस्लिम आबादी है। यानी इन जिलों की सीटों पर मुस्लिम वोटर्स हार जीत तय करते हैं।
इसके अलावा बिहार सरकार की जातीय गणना-2023 के मुताबिक, राज्य की 243 विधानसभा सीटों में से 48 पर मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में हैं। इसमें से 11 सीटों पर 40 फीसदी से ज्यादा, 7 सीटों पर 30 फीसदी से ज्यादा और 29 सीटों पर 20 से 30 फीसदी तक मुस्लिम वोटर हैं। सीमांचल के कुछ इलाके ऐसे हैं जहां 70 फीसदी तक मुस्लिम हैं। अगर ओवैसी मुस्लिम वोटरों में ध्रुवीकरण करने में कामयाब हो जाते हैं तो यह महागठबंधन के लिए शुभ संकेत नहीं हैं।
दो चुनावों के आंकड़े देखें
साल 2015 के विधानसभा चुनाव में सीमांचल में जेडीयू, आरेडी और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था। चुनाव बाद महागठबंधन ने इस इलाके पर एकछत्र राज किया था। 2015 विधानसभा चुनाव में महागठबंधन ने 24 में से 19 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं,
2020 विधानसभा चुनाव में ओवैसी को नजरअंदाज करना आरजेडी और कांग्रेस को भारी पड़ा था। महागठबंधन में शामिल आरजेडी, कांग्रेस और माले 24 में से 7 सीटों पर सिमट गई थीं। ओवैसी की पार्टी AIMIM 5 सीटें जीतीं। सीमांचल में अपनी राजनीतिक जमीन को मजबूत करने के लिए ओवैसी कई सालों से काम कर रहे हैं। वह क्षेत्र में आते-जाते रहते हैं। उन्होंने वक्फ संशोधन कानून का जमकर विरोध किया था। सीमांचल में ओवैसी की सक्रियता जितनी बढ़ेगी, वह महागठबंधन के लिए उतनी ही सिरदर्द बनेगी।
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