देश में कई ऐसी बड़ी पार्टियां हैं जो परिवार और उसके सदस्यों के इर्द-गिर्द घूमती हैं। हर राज्य में ऐसी पार्टियों के कई उदाहरण है जो आपको देखने को मिल जाएंगे। बिहार की राजनीति में परिवारवाद की गहरी जड़ें हैं जिसकी झलक आगामी विधानसभा चुनाव 2025 में साफ देखा जा सकता है। कई ऐसे प्रभावशाली परिवार हैं जिनके सदस्य अलग-अलग पार्टियों के टिकट पर चुनावी मैदान में आमने-सामने या परिवार से अलग होकर चुनाव लड़ रहे हैं। यह लड़ाई पार्टी की लड़ाई से लेकर चुनावी मैदान तक साफ देखने को मिल रही है। इसमें सबसे बड़ा उदाहरण है जहां लालू प्रसाद यादव के दोनों बेटे इस बार अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे और भी कई दल हैं, जिनके परिवार के सदस्य एक-दूसरे के खिलाफ चुनावी मैदान में हैं या उतर चुके हैं।
इस बार के विधानसभा के चुनाव में कई पॉलिटिकल घरानों के सदस्य कई गठबंधन की पार्टियों के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरकर एक-दूसरे के खिलाफ चुनावी समीकरण को उलझा रहे हैं, जो इस चुनाव को दिलचस्प बना रहे हैं। आइए नजर डालते हैं परिवारों की इस राजनीतिक महाभारत के इतिहास पर-
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लालू यादव का परिवार
लालू प्रसाद यादव और उनकी शुरू की गई पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का बिहार में बोलबाला है। लालू कई सालों तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे। चारा घोटाले में इनका नाम आने के बाद इनकी पत्नी राबड़ी देवी राज्य की सीएम बनीं। इसके बाद बेटों की बारी आई। बेटों ने चुनावी मैदान में लड़ते-लड़ते एक दूसरे के खिलाफ लड़ना शुरू कर दिया। इस बार के विधानसभा चुनाव में लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने पार्टी से अलग होकर अपनी नई पार्टी जनशक्ति जनता दल (JJD) बनाई है। उन्होंने महुआ विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा की है जबकि इनके छोटे भाई तेजस्वी जो कि पार्टी और महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं, अपनी पारंपरिक सीट राघोपुर से चुनाव लड़ेंगे।
तसलीमुद्दीन का परिवार
अररिया जिले की जोकिहाट विधानसभा सीट पर RJD के बड़े नेता तसलीमुद्दीन के दोनों बेटे एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़े हैं। तसलीमुद्दीन के दूसरे बेटे सरफराज आलम और छोटे बेटे शाहनवाज आलम कई बार एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़े हैं। इस सीट पर इनके परिवार से ही कोई न कोई जीत हासिल करता है। दोनों बेटों के बीच विरासत की लड़ाई चलती रहती है। जोकीहाट से तसलीमुद्दीन 8 बार विधायक रहे। तसलीमुद्दीन की राजनीतिक विरासत उनके छोटे बेटे शाहनवाज ने संभाली और अपने भाई सरफराज आलम को पिछले चुनाव में हराया था।
सूरजभान सिंह का परिवार
सूरजभान सिंह के मोकामा के बड़े और दबंग नेता माने जाते हैं। उन पर 26 से अधिक गंभीर मामले दर्ज हैं। लोक जनशक्ति पार्टी के बंटवारे के बाद वीणा देवी चिराग पासवान के गुट में शामिल हो गई। अभी वह वैशाली से NDA की सांसद हैं। इसके पहले यह पशुपति कुमार पारस वाले गुट में थी। अब खबर आ रही है कि वह RJD में शामिल हो सकती है। सूरजभान के छोटे भाई चंदन सिंह NDA में ही हैं।
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देवर-भाभी आमने सामने
नरकटिया विधानसभा सीट से देवर-भाभी चुनावी मैदान में आमने-सामने खड़े थे। कांग्रेस ने यहां से विनय शर्मा को टिकट दिया था और इसी सीट से बीजेपी ने रश्मि वर्मा को अपना उम्मीदवार बनाया था। रश्मि वर्मा ने अपने देवर विनय वर्मा को हरा दिया। रश्मि वर्मा आलोक वर्मा की पत्नी हैं।
लौरिया विधानसभा
लौरिया विधानसभा क्षेत्र में भी देवर-भाभी एक दूसरे के खिलाफ चुनावी मैदान में थे। विनय बिहारी अपनी भाभी नीलम सिंह को भारी मतों के अंतर से हराया था। भोजपुरी सिंगर विनय यहां से दो बार बीजेपी के विधायक हैं। उनकी भाभी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरी थीं। नीलम सिंह IRS अधिकारी विजय शंकर की पत्नी हैं। साल 2000 में नीलम ने कांग्रेस की सदस्यता ली थी।