खगड़िया सीट: JDU फिर से करेगी वापसी या महागठबंधन का दबदबा रहेगा कायम?
खगड़िया विधानसभा 2005 से ही जेडीयू का कब्जा रहा है। हालांकि, पिछले विधानसभा चुनाव में महागठबंधन ने पूनम देवी को 3 हजार वोटों से हरा दिया था।

बिहार के खगड़िया जिले में पड़ने वाली खगड़िया विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास काफी दिलचस्प रहा है। यह सीट 1952 से अस्तित्व में है और यहां कई बड़े नेताओं ने अपनी सियासी जमीन मजबूत की है। खगड़िया कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था लेकिन वक्त के साथ यहां समीकरण बदलते गए और अब यह सीट जेडीयू और आरजेडी के बीच सीधी टक्कर का अखाड़ा बन चुकी है।
इस विधानसभा सीट में खगड़िया नगर पालिका, मानसी सामुदायिक विकास खंड ; खगड़िया सीडी ब्लॉक के भदास दक्षिणी, भदास उत्तरी, कासिमपुर, मथुरापुर, बछौता, सन्हौली, रांको, संसारपुर, गौरशक्ति, मरार दक्षिणी, मरार उत्तरी, रसौंक, उत्तर मरार, रहीमपुर उत्तरी, रहीमपुर मध्य, रहीमपुर दक्षिणी, लभगांवा, कोठिया ग्राम पंचायतें शामिल हैं।
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1951 में इसकी स्थापना के बाद से अब तक यहां 17 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. इनमें कांग्रेस ने पांच बार जीत हासिल की है, जबकि जनता दल (यूनाइटेड) ने तीन बार. संयुक्त समाजवादी पार्टी, निर्दलीय उम्मीदवारों और भाजपा (1972 में भारतीय जनसंघ के रूप में) ने दो-दो बार यह सीट जीती है. जनता पार्टी, सीपीआई और एलजेपी ने एक-एक बार विजय पाई है.
मौजूदा समीकरण
खगड़िया की राजनीति में अब सीधा मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच है। 2020 में कांग्रेस के छत्रपति यादव ने जेडीयू की पूनम देवी यादव को मात्र 3,000 वोटों से हराया, जो महागठबंधन की जीत थी। वर्तमान में बिहार विधानसभा चुनावों की तैयारी में NDA (BJP-जेडीयू-LJP(RV)-HAM) और महागठबंधन (RJD-कांग्रेस-वामपंथी) के बीच कांटे का मुकाबला है। जातिगत समीकरण निर्णायक हैं: यादव (17%) RJD के साथ, कुशवाहा (20-25%) जेडीयू-LJP की ओर, दलित (16%) दोनों खेमों में बंटे, और मुस्लिम (11%) महागठबंधन समर्थक हैं।
NDA को 2024 लोकसभा जीत (LJP-RV) से बढ़त है, जबकि महागठबंधन 2020 की जीत दोहराने पर केंद्रित है। नीतीश कुमार की JDU में आंतरिक कलह और कन्हैया कुमार जैसे चेहरों का उदय महागठबंधन को मजबूती दे सकता है।
2020 में क्या हुआ था?
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में खगड़िया सीट पर कांटे की टक्कर देखने को मिली। यह सीट महागठबंधन (RJD-कांग्रेस-वामपंथी) और NDA (BJP-JD(U)-LJP) के बीच मुख्य मुकाबले का केंद्र रही। अंततः, कांग्रेस के उम्मीदवार छत्रपति यादव ने जीत हासिल की, जिन्होंने JD(U) की निवर्तमान विधायक पूनम देवी यादव को मात्र 3,000 वोटों के अंतर से हराया। कुल वैध वोटों की संख्या 1,51,305 थी, और मतदान प्रतिशत 58.18% रहा। छत्रपति यादव को महागठबंधन के मजबूत यादव-मुस्लिम वोट बैंक और दलित मतों के एक हिस्से का समर्थन मिला।
दूसरी ओर, पूनम देवी यादव को JD(U) के कुशवाहा और अन्य OBC/ईबीसी वोटों का समर्थन था, लेकिन कम अंतर से वह हार गईं। इस चुनाव में जातिगत समीकरण और स्थानीय मुद्दे, जैसे बाढ़ नियंत्रण और बेरोजगारी, निर्णायक रहे। LJP के अलगाव (चिराग पासवान ने NDA से अलग होकर लड़ा) ने भी NDA की स्थिति कमजोर की। यह जीत महागठबंधन के लिए महत्वपूर्ण थी, क्योंकि खगड़िया में JD(U) का मजबूत आधार रहा है। इस नतीजे ने 2025 के लिए कड़े मुकाबले की नींव रखी।
विधायक का परिचय
छत्रपति यादव बिहार के खगड़िया विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के प्रमुख विधायक हैं, जिन्होंने 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में अपनी पहली राजनीतिक सफलता हासिल की। वे पूर्व विधायक एवं मंत्री के बेटे हैं, जिनके पिता भी राजनीति में सक्रिय रहे। मूल रूप से हसनपुर (समस्तीपुर) से जुड़े छत्रपति यादव पेशे से फ्रीलांस पत्रकार रहे, लेकिन महागठबंधन की रणनीति के तहत खगड़िया सीट पर उतरे। यहां उन्होंने JD(U) की चार बार की विधायक पूनम देवी यादव को मात्र 3,000 वोटों (46,980 बनाम 43,980) के करीबी मुकाबले में हराया, जो कांग्रेस के लिए चौंकाने वाली जीत थी। LJP की रेणु कुशवाहा के 20,719 वोटों ने NDA को नुकसान पहुंचाया।
विपक्षी विधायक के रूप में छत्रपति यादव बाढ़ नियंत्रण, बेरोजगारी, कृषि संकट और पलायन जैसे स्थानीय मुद्दों पर मुखर रहे। वे 'वोट अधिकार यात्रा' अभियान में सक्रिय हैं, जो कांग्रेस की बिहार रणनीति का हिस्सा हैं। हाल में गोपालगंज, कटिहार और खगड़िया में विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लेते हुए उन्होंने पार्टी संगठन को मजबूत किया। उनके खिलाफ कोई आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं है जिससे उनके साफ छवि के नेता होने की झलक मिलती है।
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विधानसभा का इतिहास
शुरुआती दौर में इस विधानसभा सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा है, लेकिन धीरे-धीरे उसका प्रभाव इस सीट पर घटता गया।
1952: द्वारिका प्रसाद (कांग्रेस)
1957: केदार नारायण सिंह आज़ाद (कांग्रेस)
1962: केदार नारायण सिंह आज़ाद (कांग्रेस)
1967: राम बहादुर आज़ाद (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी)
1969: राम बहादुर आज़ाद (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी)
1972: राम शरण यादव (भारतीय जनता पार्टी)
1977: राम शरण यादव (निर्दलीय)
1980: राम शरण यादव (जनता पार्टी)
1985: सत्यदेव सिंह (कांग्रेस)
1990: रणवीर यादव (निर्दलीय)
1995: चंद्रमुखी देवी (भारतीय जनता पार्टी)
2000: गोगेंद्र सिंह (भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी - मार्क्सवादी)
2005: पूनम देवी यादव (लोक जनशक्ति पार्टी)
2005: पूनम देवी यादव (कांग्रेस)
2010: पूनम देवी यादव (जेडीयू)
2015: पूनम देवी यादव (जेडीयू)
2020: छत्रपति यादव (कांग्रेस)
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