लेफ्ट vs राइट की लड़ाई और नया मुल्क, कहानी चीन और ताइवान की दुश्मनी की
ताइवान के पास चीन की सेना बड़े पैमाने पर सैन्य अभ्यास कर रही है। यह अभ्यास ताइवान को हर तरफ से घेरने के लिए किया जा रहा है। ऐसे में जानते हैं कि चीन और ताइवान की दुश्मनी की कहानी क्या है?

ताइवान के राष्ट्रपति लाई चिंग-ते और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग। (Photo Credit: Social Media)
चीन ने एक बार फिर ताइवान के पास सैन्य अभ्यास शुरू कर दिया है। चीन की सेना ने बताया है कि उसने ताइवान के पास अपनी आर्मी, नेवी, एयरफोर्स और रॉकेट फोर्स के साथ जॉइंट मिलिट्री एक्सरसाइज शुरू कर दी है।
चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) की पूर्वी थिएटर कमांड ने बताया है इस एक्सरसाइज में चीन की सेना ताइवान के पास अलग-अलग दिशाओं से हमला करने का अभ्यास करेगी। इसमें समंदर की नाकेबंदी से लेकर जमीनी हमला करने तक का अभ्यास किया जाएगा।
चीन ने यह सैन्य अभ्यास ऐसे वक्त शुरू किया है, जब हाल ही में अमेरिका के रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ जापान गए थे। जापान में उन्होंने एक बार फिर इस बात को दोहराया था कि ताइवान के साथ अमेरिका खड़ा है। अब चीन ने इस सैन्य अभ्यास को 'कड़ी चेतावनी' बताया है। चीन ने कहा कि यह ताइवान की अलगाववादी ताकतों के खिलाफ कड़ी चेतावनी है और यह चीन की संप्रभुता और अखंडता के लिए जरूरी है।
वहीं, ताइवान की नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के महासचिव जोसेफ वू ने इस सैन्य अभ्यास को 'लापरवाह' और 'गैर-जिम्मेदाराना' बताते हुए कहा है कि इससे क्षेत्र में अस्थिरता का खतरा है। उन्होंने कहा, 'इसे जायज नहीं ठहराया जा सकता। यह अंतर्राष्ट्रीय कानून को उल्लंघन और इसे स्वीकार्य नहीं किया जा सकता। लोकतांत्रिक देशों को चीन की निंदा करनी चाहिए, क्योंकि वह परेशानी खड़ा करने वाला मुल्क है।'
The #PLA joint exercises are reckless & irresponsible in threatening #Taiwan as well as peace & stability in the #IndoPacific. It came without justification, violate int’l laws & is totally unacceptable. Democracies need to condemn #China for being a troublemaker. pic.twitter.com/RJxfZN2RMt
— Joseph Wu (@josephwutw) April 1, 2025
हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब चीन ने ताइवान के पास मिलिट्री ड्रील शुरू की हो। चीन अक्सर ताइवान के पास इस तरह की हरकतें करता रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि चीन का दावा है कि ताइवान उसका हिस्सा है। जबकि, ताइवान खुद को अलग देश मानता है। उसका अपना संविधान है। उसकी अपनी सरकार है। हालांकि, आज से 76 साल पहले तक ताइवान अलग मुल्क नहीं हुआ करता था। ताइवान पर कभी चीनी राजवंश का शासन था। बाद में इस पर जापान का कब्जा हो गया। दूसरे विश्व युद्ध के पास यह चीन के पास आ गया। आखिर में राष्ट्रवादियों और कम्युनिस्टों की लड़ाई में यह अलग देश बन गया।
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ताइवान मतलब 'इल्हा फरमोसा'
साल 1542 में पुर्तगाली यात्रियों से भरा एक जहाज जापान से लौट रहा था। तभी रास्ते में उन्हें एक छोटा सा द्वीप नजर आया। पुर्तगालियों ने इसे नाम दिया 'इल्हा फरमोसा'। इसका मतलब होता है- 'खूबसूरत द्वीप'। इस कारण सदियों तक इसे 'फरमोसा' नाम से ही जाना गया।
1622 में डच ईस्ट इंडिया कंपनी ने ताइवान के पास एक बेस बनाया। कुछ सालों तक पहले डच और फिर स्पेन ने यहां कब्जा किया लेकिन ज्यादा समय तक टिक नहीं पाए। 1662 में एक समझौते के बाद डचों ने ताइवान छोड़ दिया। इस तरह से ताइवान पर चीन के मिंग राजवंश का कब्जा हो गया। मिंग राजवंश के बाद झेंग राजवंश आया और उसने करीब दो दशकों तक राज किया। 1683 में चीन में क्विंग राजवंश आया और ताइवान पर उसका कब्जा हो गया।
क्विंग राजवंश ने ताइवान पर 200 सालों से भी ज्यादा समय तक राज किया। 1894 में क्विंग राजवंश और जापान के बीच जंग शुरू हो गई। करीब सालभर तक चली जंग के बाद क्विंग राजवंश ने ताइवान को जापान को सौंप दिया। 1945 तक यहां जापान का ही शासन रहा। दूसरे विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद दोबारा चीन ने यहां कब्जा कर लिया।
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राष्ट्रवादियों और कम्युनिस्टों की लड़ाई
जब जापान के हाथों क्विंग राजवंश की हार हुई तो उसके खिलाफ भी विद्रोह भड़क गया। आगे चलकर यह विद्रोह 1911 में क्रांति में बदल गया, जिसे 'शिन्हाई रिवॉल्यूशन' नाम दिया गया। इस क्रांति ने राजवंश को उखाड़ फेंका और 1912 में चीन का नाम 'रिपब्लिक ऑफ चाइना' रखा और सुन यात-सेन इसके राष्ट्रपति बने।
1919 में सुन यात-सेन ने कुओमिंतांग पार्टी का गठन किया। इसका मकसद था चीन को जोड़ना। कुछ साल बाद 1919 में कम्युनिस्ट पार्टी भी बन गई। इस बीच 1923 में सुन यात-सेन ने अपने लेफ्टिनेंट चियांग काई-शेक को ट्रेनिंग के लिए मॉस्को भेजा। 1925 में यात-सेन की मौत के बाद कुओमिंतांग पार्टी में फूट पड़ गई। कुओमिंतांग पार्टी राष्ट्रवादी थी लेकिन अब इसका एक धड़ा वामपंथी हो गया था। इस कारण कुओमिंतांग और कम्युनिस्ट पार्टी में तकरार बढ़ गई।
इस बीच अगस्त 1927 में कम्युनिस्ट पार्टी ने कुओमिंतांग की राष्ट्रवादी सरकार के खिलाफ जंग छेड़ दी। दोनों के बीच 10 साल तक संघर्ष चलता रहा। इस कारण चीन की तीन राजधानी बन चुकी थी। पहली थी बीजिंग, जिसे अंतर्राष्ट्रीय मान्यता मिली थी। दूसरी थी वुहान, जहां कम्युनिस्टों का राज था। और तीसरी थी- नानजिंग, जहां कुओमिंतांग पार्टी की सरकार थी।

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और फिर बना ताइवान अलग मुल्क
चीन में एक ओर कुओमिंतांग और कम्युनिस्ट पार्टी की लड़ाई चल रही थी, तभी 1936 में जापान की सेना ने मंचूरिया पर कब्जा कर लिया। जापान का मुकाबला करने के लिए चियांग काई-शेक ने कम्युनिस्टों से हाथ मिलाने से मना कर दिया। इससे उनकी ही पार्टी में असंतोष बढ़ गया।
12 दिसंबर 1936 को चियांग काई-शेक का अपहरण किया गया और उनसे जबरन कम्युनिस्टों के साथ एक समझौता कराया गया। इसे 'शिआन घटना' कहा जाता है। इसने कागजों पर तो कुओमिंतांग और कम्युनिस्टों के बीच समझौता करा दिया लेकिन जमीन पर दोनों लड़ते रहे।
एक तरफ जापान से जंग चल रही थी तो दूसरी तरफ कुओमिंतांग और कम्युनिस्टों की लड़ाई भी जारी थी। अमेरिका से लेकर सोवियत संघ तक ने कहा कि इस गृहयुद्ध से जापान को ही फायदा होगा। उस वक्त जापान की सेना बहुत ताकतवर थी। यह वो समय था जब माओ त्से-तुंग कम्युनिस्टों के बड़े नेता बन चुके थे।
इस बीच 1945 में दूसरे विश्व युद्ध में जापान की हार हुई। हालांकि, चीन में कुओमिंतांग और कम्युनिस्टों की लड़ाई चलती रही। सोवियत संघ की मदद से तब तक कम्युनिस्ट काफी मजबूत हो गए थे। कम्युनिस्टों की सेना के आगे चियांग काई-शेक की सेना टिक नहीं पाई।
1 अक्टूबर 1949 को माओ त्से-तुंग ने 'पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना' की स्थापना का ऐलान कर दिया। इससे पहले ही चियांग काई-शेक समेत कुओमिंतांग पार्टी के लाखों लोग भागकर ताइवान आ गए थे। दिसंबर 1949 में चियांग काई-शेक ने ताइपे को अपनी राजधानी घोषित किया और देश का नाम 'रिपब्लिक ऑफ चाइना' रखा। करीब दो दशकों तक चीन की कम्युनिस्ट सरकार को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता नहीं मिली थी। संयुक्त राष्ट्र ने ताइवान को ही चीन की असली सरकार माना। संयुक्त राष्ट्र में भी ताइवान को ही जगह दी। हालांकि, 1970 के दशक में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार को चीन की असली सरकार माना गया। इस तरह से संयुक्त राष्ट्र की सीट भी ताइवान से लेकर चीन को दे दी गई।
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अभी क्या है स्थिति?
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग कई बार कह चुके हैं कि ताइवान को चीन में फिर से मिलाना उनका मकसद है और इसके लिए वे ताकत का इस्तेमाल करने से भी नहीं हिचकिचाएंगे। चीन दावा करता है कि ताइवान उसका हिस्सा है। जबकि, ताइवान खुद को अलग मुल्क मानता है।
चीन और ताइवान की सेना में भी जमीन-आसमान का अंतर है। चीन की सेना में 20 लाख से ज्यादा सैनिक हैं, जबकि ताइवान की सेना में 2 लाख सैनिक हैं। चीन के पास लड़ाकू हथियार और परमाणु हथियार भी हैं। ताइवान के पास ऐसा नहीं है। हालांकि, ताइवान को अमेरिका का साथ मिलता रहा है।
बीते कुछ सालों में चीन ने ताइवान के पास सैन्य अभ्यास बढ़ा दिए हैं। ताइवान इसे उकसाने वाली कार्रवाई कहता है। ताइवान का दावा है कि उसके पास चीन का मुकाबला करने की ताकत है।
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