विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शुक्रवार को कहा कि पश्चिमी देशों ने पाकिस्तान में सैन्य शासन को मजबूत और लोकतंत्र को कमजोर किया है। उन्होंने आतंकवाद को भी जलवायु परिवर्तन और बढ़ती गरीबी की तरह विश्व के सामने एक बड़ी सामूहिक चुनौती बताया।
डेनमार्क के अखबार पोलिटिकेन को दिए एक इंटरव्यू में विदेश मंत्री जयशंकर ने सैन्य तानाशाही के दौरान पाकिस्तान का समर्थन करने के लिए यूरोप की आलोचना की। जयशंकर ने सवाल किया, '1947 में हमारी आजादी के बाद से ही पाकिस्तान कश्मीर में हमारी सीमाओं का उल्लंघन करता रहा है। तब से लेकर अब तक आठ दशकों में हमने क्या देखा है?'
सैन्य तानाशाही के साथ खड़ा रहा है यूरोप
उन्होंने कहा, 'आपके अपने शब्दों में कहें तो वह विशाल व लोकतांत्रिक यूरोप,पाकिस्तान में सैन्य तानाशाही के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहा है।' जयशंकर ने कहा, 'पाकिस्तान में सैन्य शासन को इतना मजबूत और लोकतंत्र को इतना कमजोर किसी ने नहीं किया, जितना पश्चिम ने किया है।'
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मान्यता प्राप्त सीमाओं का समर्थन करता है भारत
विदेश मंत्री नीदरलैंड, डेनमार्क और जर्मनी की यात्रा के तहत डेनमार्क के कोपेनहेगन में थे। जयशंकर ने कहा कि भारत दूसरे देशों की संप्रभुता और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सीमाओं का समर्थन करता है। उन्होंने कहा, 'लेकिन दुनिया के बारे में मेरा दृष्टिकोण और यूरोप को लेकर मेरा नजरिया मेरे अपने अनुभवों के आधार पर तय होता है। आप सीमाओं की अखंडता के बारे में बात करते हैं - तो क्यों न हम अपनी सीमाओं की अखंडता से बात की शुरुआत करें?'
रूस से रिश्तों पर बोले विदेश मंत्री
उन्होंने कहा कि यहीं से मेरी दुनिया शुरू होती है। लेकिन हमें हमेशा यही कहा गया है कि हमें इसका समाधान खुद ही करना होगा। जयशंकर से पूछा गया था कि जब रूस ने यूक्रेन के खिलाफ युद्ध छेड़ा, तब 'लोकतांत्रिक' भारत बड़े पैमाने पर तेल खरीद के मामले में तानाशाही व्यवस्था वाले रूस को समर्थन क्यों दे रहा था। रूस से भारत के तेल खरीदने पर जयशंकर ने कहा कि यूरोप पश्चिम एशिया से कच्चा तेल खरीदकर भारत समेत सभी विकासशील देशों के लिए ऊर्जा की कीमतें बढ़ा रहा है।
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यूरोप को सुनाई खरी-खरी
उन्होंने कहा, 'संपन्न यूरोप ने पश्चिम एशिया की ओर रुख किया क्योंकि उसे रूस से परेशानी थी। यूरोप ने तेल के लिए ज्यादा कीमत की पेशकश की।' जयशंकर ने कहा कि इसका नतीजा हुआ कि भारत समेत कई देश इन बढ़ी हुई कीमतों को वहन नहीं कर सके। प्रमुख तेल कंपनियों ने खरीद प्रस्तावों पर प्रतिक्रिया भी नहीं दी क्योंकि वे यूरोप को बेचने में बहुत व्यस्त थीं।
उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा, 'बाकी दुनिया को क्या करना चाहिए था? यह कि हम ऊर्जा के बिना ही काम चला लेंगे, क्योंकि यूरोपीय लोगों को इसकी हमसे ज्यादा जरूरत है।' जयशंकर ने आतंकवाद को भी एक बड़ी वैश्विक चुनौती बताया। उन्होंने कहा कि आज की प्रमुख सामूहिक चुनौतियों में, मैं आतंकवाद को जलवायु परिवर्तन, बढ़ती गरीबी और ‘ग्लोबल साउथ’ में कोविड-19 महामारी के दुष्परिणामों के साथ शीर्ष पर रखूंगा।