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जिसे अमेरिका ने आतंकी बताकर भेजा जेल, अब ट्रंप ने बनाया सलाहकार

डोनाल्ड ट्रंप सरकार में पूर्व जिहादियों इस्माइल रॉयर और शेख हमजा यूसुफ को अहम जिम्मेदारी दी गई है। आरोप है कि उन्होंने 2000 में लश्कर-ए-तैयबा के पाकिस्तानी ट्रेनिंग कैंप का दौरा किया था।

White House Advisory Board of Lay Leaders

ट्रंप, Photo Credit: PTI

डोनाल्ड ट्रंप सरकार ने इस्माइल रॉयर और शेख हमजा यूसुफ को व्हाइट हाउस सलाहकार बोर्ड ऑफ ले लीडर्स में नियुक्त किया है। रॉयर ने वर्ष 2000 में इस्लाम कबूल किया था और उसी साल पाकिस्तान में लश्कर-ए-तैयबा के ट्रेनिंग कैंप में शामिल हो गया था। इसके अलावा यह कश्मीर में आतंकी गतिविधियों, जैसे भारतीय ठिकानों पर गोलीबारी में शामिल था। वर्ष 2003 में रॉयर को एफबीआई ने जांच के दायरे में लिया और 2004 में आतंकवाद से संबंधित आरोपों के लिए दोषी ठहराया। उन्हें 20 साल की सजा सुनाई गई लेकिन लगभग 13 साल बाद रिहा कर दिया गया। उनके दोषसिद्धि में यह स्वीकार किया गया कि उन्होंने सह-आरोपी व्यक्तियों को लश्कर-ए-तैयबा के ट्रेनिंग कैंप में प्रवेश दिलाने में सहायता की थी। 

 

अमेरिकी जर्नलिस्ट ने उठाए सवाल

अमेरिकी खोजी पत्रकार लारा लूमर ने रॉयर और जायतुना कॉलेज के सह-संस्थापक शेख हमजा यूसुफ की नियुक्तियों पर सवाल उठाए हैं, जिन्हें इस्लामी जिहादी समूहों और एलईटी, अल-कायदा और हमास जैसे प्रतिबंधित आतंकी संगठनों से संबंधों के लिए जाना जाता है। दोनों की नियुक्ति पर सवाल उठाए जा रहे है, क्योंकि लश्कर-ए-तैयबा को संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, भारत और कई अन्य देशों द्वारा आतंकी संगठन घोषित किया गया है। 

 

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कौन है इस्माइल रॉयर और शेख हमजा यूसुफ?

इस्माइल रॉयर एक अमेरिकी नागरिक हैं, जिन्होंने 2000 में इस्लाम कबूल किया था। वह उसी साल पाकिस्तान में लश्कर-ए-तैयबा के ट्रेनिंग कैंप में शामिल हुए थे औक कश्मीर में आतंकी गतिविधियों में संलिप्त थे। 2003 में, एफबीआई ने उनकी जांच शुरू की और 2004 में उन्हें आतंकवाद से संबंधित आरोपों के लिए दोषी ठहराया। 20 साल की सजा मिली लेकिन लगभग 13 साल बाद उसे रिहा कर दिया गया। अब ट्रंप प्रशासन ने रॉयर को व्हाइस हाउस सलाहकार बोर्ड ऑफ ले लीडर्स में नियुक्त कर दिया है, जिससे विवाद बढ़ गया है। पत्रकार लारा लूमर ने इसकी आलोचना करते हुए अमेरिकी सुरक्षा के लिए खतरा बताया। 

 

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अल-कायदा, हमास से संबंध

शेख हमजा यूसुफ भी एक अमेरिकी इस्लामी विद्वान, नव-परंपरावादी, और जायतुना कॉलेज के सह-संस्थापक हैं। उनका जन्म आयरिश कैथोलिक परिवार में हुआ था और 18 साल की उम्र में 1977 में एक कार दुर्घटना के बाद उनकी इस्लाम में रुचि जगी, जिसके बाद उन्होंने इस्लाम धर्म अपना लिया। उन्होंने मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में एक दशक से अधिक समय तक इस्लामी विद्वानों से शिक्षा ग्रहण की। यूसुफ बर्कले के ग्रेजुएट थियोलॉजिकल यूनियन में सेंटर फॉर इस्लामिक स्टडीज के सलाहकार और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के इस्लामी अध्ययन कार्यक्रम में सलाहकार हैं।

 

इसके अलावा, वह यूएई-आधारित फोरम फॉर प्रोमोटिंग पीस इन मुस्लिम सोसाइटीज के उपाध्यक्ष हैं, जिसे अब्दुल्ला बिन बय्या ने स्थापित किया है। उनकी इस फोरम से जुड़ाव और यूएई सरकार के साथ संबंधों ने विवाद को जन्म दिया है, क्योंकि कुछ लोग इसे अरब क्रांतियों के बाद क्षेत्र में स्थिरता के लिए पश्चिमी समर्थन से जोड़ते हैं। हालांकि, अमेरिकी पत्रकार लारा लूमर, ने दावा किया है कि यूसुफ का संबंध लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी), अल-कायदा, और हमास जैसे आतंकी संगठनों से है।

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