WHO को ट्रंप का जोरदार झटका! समझिए कितने जरूरी हैं अमेरिका के पैसे
डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका की सत्ता संभालते ही फैसला किया है कि अमेरिका अब WHO का हिस्सा नहीं होगा। इस फैसले से WHO को बड़ा झटका लगा है।

WHO से अमेरिका बाहर, Photo Credit: Khabargaon
अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सत्ता संभालते ही कई अहम फैसले लिए हैं। इनमें से एक बड़ा फैसला अमेरिका को विश्व स्वास्थ्य संगठन से बाहर करने का है। अब अमेरिका वैश्विक स्तर के इस संगठन का हिस्सा नहीं होगा। इसका सीधा मतलब यह है कि अमेरिका की ओर से WHO को मिलने वाली भारी-भरकम रकम भी अब नहीं मिलेगी। डोनाल्ड ट्रंप ने इस फैसले पर दस्तखत करते हुए कहा है कि अमेरिका इस संगठन को ज्यादा पैसे दे रहा था जबकि चीन जैसे ज्यादा जनसंख्या वाले देश कम पैसे दे रहे थे। इसी के चलते उन्होंने यह फैसला लिया। ट्रंप के इस फैसले से WHO की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं क्योंकि पैसों की कमी की स्थिति में उसके लिए ज्यादा देशों में काम कर पाना मुश्किल हो जाएगा।
इस फैसले के बारे में डोनाल्ड ट्रंप का कहना है, 'जब मैं इस पद पर था तब हमने WHO को 500 मिलियन डॉलर दिए। 140 करोड़ की जनसंख्या वाले चीन ने सिर्फ 39 मिलियन डॉलर दिए। वहीं, लगभग 35 करोड़ की आबादी वाले अमेरिका ने 500 मिलियन डॉलर दिए। यह मुझे थोड़ा गलत लगा। उन्होंने मुझे ऑफर दिया कि 39 मिलियन डॉलर देकर अमेरिका वापस आ जाए लेकिन बाइडेन के आने पर अमेरिका ने फिर 500 मिलियन डॉलर दिए।'
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साल 2020 में डोनाल्ड ट्रंप ने WHO पर आरोप लगाए थे कि कोरोना महामारी के मामले में वह चीन का पक्ष ले रहा है। WHO की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा था कि अमेरिका इससे बाहर होगा। हालांकि, ट्रंप के सत्ता से बाहर होने और बाइडेन के आने से एक बार फिर अमेरिका ने वैश्विक स्तर पर चलने वाले स्वास्थ्य अभियानों में खूब पैसे बहाए। अब डोनाल्ड ट्रंप इन सब पर नकेल कसते दिख सकते हैं। आइए समझते हैं कि इससे WHO और उससे जुड़े देशों पर क्या आसर पड़ सकता है।
#WATCH | Washington, DC: US President Donald Trump signs executive order to withdraw US from World Health Organization
— ANI (@ANI) January 21, 2025
"We paid 500 million dollars to World Health Organization when I was here and I terminated it. China with 1.4 billion people, they were paying 39 million. We… pic.twitter.com/xpbPGWNJ0K
WHO को जानिए
जैसा कि नाम ही बताता है कि WHO एक विश्वस्तरीय स्वास्थ्य संगठन है। दुनिया के कई देशों में इसके दफ्तर हैं, उनमें लोग काम करते हैं। इस संगठन से हजारों डॉक्टर, स्वास्थ्य अधिकारी, मेडिकल रिसर्चर और अन्य लोग जुड़े हैं। दुनिया के 194 देश इस संगठन का हिस्सा हैं। यही 194 देश मिलकर एक डायरेक्टर जनरल चुनते हैं। मौजूदा समय में डॉ. टेड्रोस एधनॉम गेब्रेयेसस WHO के डायरेक्टर जनरल हैं। डायरेक्टर जनरल के अलावा, वेस्टर्न पैसिफिक, साउथ ईस्ट एशिया, यूरोप, ईस्टर्न मेडिटेरेनियन, अमेरिका और अफ्रीका के लिए एक-एक यानी कुल 6 रीजनल डायरेक्टर भी होते हैं। इसके अलावा वैज्ञानिकों की टीम भी होती है और कई अन्य लोग भी WHO के लिए काम करते हैं और इस संस्था को पूरी दुनिया में चलाते हैं।
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WHO का लक्ष्य है कि दुनियाभर के लोग स्वस्थ रहें, बीमारियों से बचे रहें और एक बेहतर जिंदगी जिएं। इसके लिए WHO की ओर से कई अभियान चलाए जाते हैं। आर्थिक रूप से पिछड़े देशों में WHO की ओर से कई अभियान मुफ्त में चलाए जाते हैं। महामारी की स्थिति में या युद्ध जैसे हालात में भी WHO की ओर से मेडिकल मदद पहुंचाई जाती है। यह सब काम सुचारु रूप से हो इसके लिए WHO ने दुनियाभर में लगभग 150 दफ्तर खोल रखे हैं। कैंसर जैसी गंभीर बीमारी हो, कोविड जैसी महामारी हो या कोई अन्य समस्या, WHO की टीम अपने पैसों, रिसर्च और अन्य तरीकों से लोगों की मदद करने की कोशिश करती है।
पैसों का हिसाब-किताब?
अब इतना सारा काम करने के लिए ढेर सारे पैसे भी चाहिए। संस्था किसी एक देश की नहीं है तो एक देश के पैसे से यह काम चल भी नहीं सकता है। यहीं से आता है सहयोगी देशों की मदद वाला फॉर्मूला। WHO की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, पैसों के लिए उसके पास दो मुख्य स्रोत हैं। पहला- सदस्य देश, दूसरा- ऐसे देश या लोग जो खुद से पैसे देना चाहें।
सदस्य देश असेस्ड कंट्रीब्यूशन (AC) के जरिए पैसा देते हैं। यह असेस्ड कंट्रीब्यूशन किसी देश की जीडीपी के हिसाब से होता है। इस पर संयुक्त राष्ट्र महासभा की भी सहमति होती है। हर दूसरे साल पर वर्ल्ड हेल्थ असेंबली होती है और WHO के सदस्य देश इसका फैसला करते हैं। इसके जरिए WHO को जो पैसा मिलता है वह कुल पैसे का 20 पर्सेंट से कम होता है। बाकी का जो पैसा मिलता है, वह वॉलन्टरी कंट्रीब्यूशन (VC) के जरिए आता है। सदस्य देश VC के जरिए भी पैसे दे सकते हैं। इन देशों के अलावा संयुक्त राष्ट्र के संगठन, अन्य सरकारी, गैर सरकारी, निजी और अन्य तरह से संगठन या व्यक्ति भी WHO को पैसे दे सकते हैं।
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यहां यह समझना जरूरी है कि असेस्ड कंट्रीब्यूशन के तहत तय की गई रकम देना अनिवार्य होता है। यानी अगर आप WHO के सदस्य हैं और आगे भी सदस्य बने रहना चाहते हैं तो आपको तय रकम देनी होगी। WHO ने अपनी वेबसाइट पर लिखा है कि पिछले कुछ समय से असेस्ड कंट्रीब्यूशन में कमी आई है और इसके जरिए आने वाले पैसों से बहुत कम काम ही हो पाते हैं। बाकी के पैसों के लिए वॉलन्टरी कंट्रीब्यूशन से ही काम चलाया जाता है।
मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक, WHO को 75 पर्सेंट पैसे वॉलन्टरी कंट्रीब्यूशन से, 12 पर्सेंट पैसे असेस्ड कंट्रीब्यूशन से, 5.35 पर्सेंट पैसे वॉलन्टरी कंट्रीब्यून (थीमैटिक) और 4.85 पर्सेंट पैसे कोर वॉलन्टरी कंट्रीब्यूशन के जरिए मिलते हैं। देशों और संस्थाओं के हिसाब से देखें तो अमेरिका की ओर से 15.59 पर्सेंट, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन से 12.7 पर्सेंट, जर्मनी से 11.11 पर्सेंट, GAVI अलायंस से 7.39 पर्सेंट, यूरोपियन कमीशन से 7.17 पर्सेंट, रोटरी इंटरनेशनल से 2.71 पर्सेंट और कनाडा से 2.68 पर्सेंट फंडिंग मिलती है। भारत की ओर से WHO को 1.19 पर्सेंट फंडिंग मिलती है।
अमेरिका कितने पैसे देता है?
WHO की वेबसाइट पर सबसे ज्यादा पैसे देने वाले देशों की एक लिस्ट है। इस लिस्ट के मुताबिक, सबसे ज्यादा पैसे अमेरिका ने ही दिए हैं। यह लिस्ट 2022-23 के आंकड़ों पर आधारित है। इस डेटा के मुताबिक, अमेरिका ने साल 2022-23 में WHO को 128.4 करोड़ अमेरिकी डॉलर यानी लगभग 11 हजार करोड़ रुपये दिए। प्रतिशत के हिसाब से WHO को लगभग 15 पर्सेंट की फंडिंग अमेरिका से ही मिलती है। देशों के हिसाब से कनाडा की ओर से 85.6 करोड़ डॉलर, बिल एंड मेलिंडा गेट्स से 83 करोड़ डॉलर और GAVI अलायंस से 48.1 करोड़ डॉलर की फंडिंग मिलती है।
डोनाल्ड ट्रंप के इस फैसले से WHO पर बड़ा असर पड़ सकता है। इसको इस तरह समझें कि WHO का सालाना बजट लगभग 1041 करोड़ का है। इसमें लगभग दो सौ करोड़ रुपये कम भी पड़ जाते हैं। WHO हर साल लगभग 496 करोड़ रूटीन ऑपरेशन के लिए, 124 करोड़ पोलियो के खिलाफ ऑपरेशन के लिए 399 करोड़ इमरजेंसी ऑपरेशन के लिए और 199 करोड़ रुपये स्पेशल प्रोग्राम पर खर्च किए जाते हैं। इसमें से 128.4 करोड़ तो अमेरिका ही देता है। अब अगर WHo को ये पैसे नहीं मिलेंगे तो उसके लिए समस्या हो सकती है।
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