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'भारत-चीन को धमकाने से कुछ नहीं होगा', रूस की ट्रंप को वॉर्निंग

रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने अमेरिका को वॉर्निंग देते हुए कहा कि भारत और चीन जैसी पुरानी सभ्यताओं को धमकाने से कुछ होने वाला नहीं है।

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रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव। (Photo Credit: PTI)

रूस से तेल खरीदने का हवाला देते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के इम्पोर्ट पर 50% टैरिफ बढ़ा दिया है। इसे लेकर भारत और अमेरिका के बीच तनाव बरकरार है। रूसी तेल को लेकर अमेरिकी सरकार चीन को भी धमका रही है। इस बीच रूस ने अमेरिका को निशाना साधते हुए साफ कर दिया कि भारत और चीन को धमकाने से कुछ नहीं होगा। 


रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा कि भारत और चीन जैसी 'प्राचीन सभ्यताएं' किसी भी अल्टीमेटम के आगे नहीं झुकेंगी। रूस के न्यूज चैनल 1 TV के प्रोग्राम में बात करते हुए सर्गेई लावरोव ने कहा कि रूसी तेल खरीदना बंद कर देने की मांग सिर्फ देशों को नए बाजारों की तलाश करने और ज्यादा भुगतान करने के लिए मजबूर कर रही है।

 

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सर्गेई लावरोव ने क्या कहा?

कार्यक्रम में सर्गेई लावरोव ने ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी का विरोध करते हुए इसे नैतिक और राजनीतिक रूप से गलत बताया। उन्होंने कहा कि भारत और चीन को रूसी तेल खरीदने से अमेरिका नहीं रोक सकता।

 


उन्होंने कहा, 'चीन और भारत दोनों प्राचीन सभ्यताएं हैं, और उनके साथ ऐसी भाषा इस्तेमाल करना 'या तो वह करना बंद करो जो मुझे पसंद नहीं, या फिर मैं तुम पर टैरिफ लगा दूंगा', खैर यह काम नहीं करेगा।' 


लावरोव ने आगे कहा, 'इससे उन देशों के आर्थिक हितों को नुकसान पहुंचता है। साथ ही साथ उनके लिए परेशानी भी पैदा करता है। इससे वह न सिर्फ नए बाजार और नए संसाधन तलाशने के लिए मजबूर होते हैं, बल्कि उन्हें ज्यादा कीमत भी चुकानी पड़ती है। इससे भी बढ़कर ज्यादा जरूरी बात यह है कि यह नैतिक और राजनीतिक रूप से भी सही नहीं है।'

 

प्रतिबंधों की धमकी पर क्या बोले?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बार-बार रूस को धमका रहे हैं कि अगर यूक्रेन में जंग खत्म नहीं की तो और ज्यादा प्रतिबंध लगा दिए जाएंगे।


इस सवाल के जवाब में लावरोव ने कहा, 'ईमानदारी से कहूं, तो मुझे कोई समस्या नहीं दिखती। ट्रंप के पहले कार्यकाल में बहुत सारे प्रतिबंध लगाए गए थे। बाद में, बाइडेन के कार्यकाल में भी खूब प्रतिबंध लगे। समझौते की कोई तलाश नहीं की गई।'


लावरोव ने कहा कि प्रतिबंधों को कूटनीति के तौर पर इस्तेमाल किया गया। उनका कहना है कि प्रतिबंधों को कूटनीति के तौर पर इस्तेमाल करने की बजाय किसी समझौते पर बात करनी चाहिए थी।

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