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क्या मुनीर को CDF नहीं बनाना चाहते शहबाज, अचानक UK क्यों चले गए?

पाकिस्तान में एक अजीब सी स्थिति पैदा हो गई है। शहबाज शरीफ अचानक से बहरीन के बाद लंदन चले गए। एक्सपर्ट्स इसके मायने क्या निकालते हैं?

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प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: AI Generated

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पाकिस्तान में इन दिनों सेना और सरकार के बीच ज़बर्दस्त खींचतान चल रही है। मशहूर लेखक और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड (NSAB) के सदस्य तिलक देवाशर ने बड़ा दावा किया है कि प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ जान-बूझकर विदेश में रुक गए हैं ताकि उन्हें वह नोटिफ़िकेशन जारी न करना पड़े, जिससे जनरल असीम मुनीर देश के पहले चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ (CDF) बन जाएं।

 

अगर ये नोटिफ़िकेशन जारी हो गया तो फ़ील्ड मार्शल असीम मुनीर पाकिस्तान के इतिहास के सबसे ताकतवर आर्मी चीफ़ बन जाएंगे और उनका कार्यकाल पूरे पांच साल का हो जाएगा।

 

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लंदन गए शरीफ

तिलक देवाशर ने ANI को बताया, 'शहबाज़ शरीफ़ बहुत चालाकी से पहले बहरीन गए, फिर लंदन चले गए। वह बिल्कुल नहीं चाहते कि वह कागज़ पर दस्तख़त करें जिससे असीम मुनीर को पांच साल के लिए आर्मी चीफ़ और सीडीएफ दोनों बना दिया जाए। वह सोच रहे हैं कि विदेश में रहकर दस्तख़त करने से बच जाएंगे तो ज़िम्मेदारी भी उन पर नहीं आएगी। 29 नवंबर को असीम मुनीर का पुराना तीन साल का कार्यकाल ख़त्म हो गया, लेकिन सरकार अब तक नया नोटिफ़िकेशन जारी नहीं कर पाई। संविधान में 27वां संशोधन करके CDF का नया पद बनाया गया है और पुराना जॉइंट चीफ़्स ऑफ़ स्टाफ़ कमेटी चेयरमैन का पद ख़त्म कर दिया गया है।

 

परमाणु हथियार वाला देश

देवाशर ने कहा, 'पाकिस्तान इस वक़्त बहुत गड़बड़ स्थिति में है। अगर असीम मुनीर अब आर्मी चीफ़ नहीं रहे तो पूरे देश के पास कोई आर्मी चीफ़ ही नहीं बचेगा। यहां तक कि न्यूक्लियर कमांड अथॉरिटी भी बिना चीफ के रह जाएगी। एक परमाणु हथियारों वाला देश ऐसा कैसे चल सकता है? ये बहुत अजीब और ख़तरनाक हालात हैं। 

 

कुछ कानूनी जानकार कहते हैं कि शायद नया नोटिफ़िकेशन ज़रूरी ही नहीं है। 2024 में पाकिस्तान आर्मी एक्ट में संशोधन किया गया था जिसमें सर्विस चीफ़्स का कार्यकाल पांच साल कर दिया गया और अगर यह सही है तो असीम मुनीर का कार्यकाल अपने आप पांच साल का हो गया।

 

क्या हुआ है संशोधन?

हालांकि, तिलक देवाशर इस बात से सहमत नहीं हैं। उन्होंने कहा, 'यह व्याख्या बहुत विवादास्पद है। कुछ लोग कहते हैं कि तीन साल पूरे हो गए तो बाक़ी के दो साल अपने आप बचे हैं, इसके लिए नोटिफ़िकेशन की ज़रूरत नहीं है, लेकिन यह बात अदालत और सरकार कैसे देखेगी, पता नहीं। अभी असीम मुनीर की कुर्सी बहुत कमज़ोर स्थिति में है।


साथ ही ख़बरें हैं कि सेना के अंदर भी दूसरे जनरल अब आर्मी चीफ़ की कुर्सी की तरफ नजरें गड़ाए बैठे हैं। देवाशर ने चेतावनी दी, 'शहबाज़ शरीफ़ का विदेश में रहना हालात को और उलझा रहा है। लेकिन यह स्थिति ज़्यादा दिन नहीं चल सकती। एक न्यूक्लियर देश बिना आर्मी चीफ़ और बिना न्यूक्लियर कमांड के नहीं रह सकता।’

 

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पाकिस्तान की सियासत और फौज के इर्द-गिर्द घूमती है, और इस बार लग रहा है कि फौज ने सरकार को पूरी तरह किनारे लगा दिया है। आने वाले दिन बताएंगे कि असीम मुनीर की कुर्सी बचती है या पाकिस्तान में नया तख़्ता-पलट होने वाला है।



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