बैन के बावजूद तेल बेच ले रहा रूस, क्या है 'ग्रे फ्लीट' की पूरी कहानी?
भारत और रूस के बीच कारोबार लगातार बढ़ रहा है। एक रिपोर्ट बताती है कि अब भारत का सबसे बड़ा तेल सप्लायर रूस बन गया है। हालांकि, रूस इस तेल की सप्लाई ग्रे फ्लीट के जरिए कर रहा है। यह ग्रे फ्लीट क्या है? कैसे काम करती है? समझते हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर। (AI Generated Image)
भारत अपनी जरूरत का 85 फीसदी कच्चा तेल बाहर से खरीदता है। अब तक भारत की इस जरूरत को सऊदी अरब और UAE जैसे खाड़ी देश पूरा करते थे लेकिन दो साल से रूस सबसे बड़ा सप्लायर बन गया है। पहले रूस का सबसे ज्यादा तेल चीन जाता था लेकिन अब भारत के पास आ रहा है। ऐसा इसलिए, क्योंकि रूस बाकी देशों की तुलना में भारत को सस्ता तेल दे रहा है।
इस तेल को रूस से भारत सप्लाई करने के लिए 'ग्रे फ्लीट' का इस्तेमाल किया जा रहा है। ग्रे फ्लीट का इस्तेमाल प्रतिबंधों से बचने के लिए किया जाता है।
फाइनेंशियल एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि 2024 में भारत को रूस से 6.4 करोड़ टन कच्चा तेल 'ग्रे फ्लीट' के जरिए मिला है। रिपोर्ट में Kpler के डेटा के हवाले से बताया गया है कि दुनियाभर में कच्चे तेल की जितनी सप्लाई ग्रे फ्लीट के जरिए हुई है, उसमें से 9.5% भारत को मिली है। इसके साथ ही ग्रे फ्लीट के जरिए सबसे ज्यादा तेल खरीदने में भारत अब पहले नंबर पर पहुंच गया है। इससे पहले चीन सबसे ज्यादा तेल ऐसे ही खरीदता था।
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बढ़ रही ग्रे फ्लीट से सप्लाई!
ग्रे फ्लीट से तेल की सप्लाई करना न तो गैर-कानूनी है, न ही कानूनी। रूस, ईरान और वेनेजुएला जैसे देश तेल की सप्लाई के लिए ग्रे फ्लीट का इस्तेमाल करते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 में 10.9 करोड़ टन से ज्यादा कच्चा तेल ग्रे फ्लीट के जरिए सप्लाई किया गया। इसका मतलब हुआ कि दुनियाभर में 10 फीसदी कच्चे तेल की सप्लाई ग्रे फ्लीट से की गई। कुछ ग्रे फ्लीट के जरिए वेनेजुएला से चीन और ईरान से UAE को कच्चा तेल सप्लाई किया गया।
अनुमान है कि अमेरिका और पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के कारण ग्रे फ्लीट से तेल की सप्लाई बढ़ी है। Kpler का मानना है कि इस साल दुनियाभर में 13 फीसदी कच्चे तेल की सप्लाई ग्रे फ्लीट से हो सकती है।
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मगर यह ग्रे फ्लीट क्या है?
कारोबार की भाषा में ग्रे फ्लीट उन जहाजों या टैंकरों को कहा जाता है, जिनका इस्तेमाल अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों से बचने के लिए किया जाता है। यह जहाज अक्सर उन देशों के तेल या सामान की सप्लाई करते हैं, जिनपर अमेरिका या पश्चिमी देशों ने प्रतिबंध लगाए हैं। इसे 'शेडो फ्लीट' या 'डार्क फ्लीट' या 'ग्रे फ्लीट' कहा जाता है।
अमेरिका अगर किसी पर प्रतिबंध लगाता है तो वह बाकी देशों को भी उसके साथ कारोबार करने से रोक देता है। इससे बचने के लिए ग्रे फ्लीट का इस्तेमाल किया जाता है। इससे बेचने और खरीदने वाले, दोनों देशों को फायदा होता है।
ग्रे फ्लीट वाले जहाज या टैंकरों के असली मालिक का कुछ अता-पता नहीं होता है। इसके लिए शेल कंपनियां बनाई जाती हैं और इन्हें अक्सर ऐसे देशों में रजिस्टर किया जाता है, जहां नियम थोड़े ढीले होते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि प्रतिबंधित देश अपना सामान या तेल दूसरे देश को बेच सके।
ईरान, वेनेजुएला, नॉर्थ कोरिया और रूस जैसे देश ग्रे फ्लीट का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि इन पर अमेरिका ने सख्त प्रतिबंध लगा रखे हैं। 2022 में यूक्रेन के साथ जंग शुरू होने के बाद रूस पर कई प्रतिबंध लग गए हैं, जिसके बाद वह ग्रे फ्लीट के जरिए ही अपना सामान बेच रहा है।
दिसंबर 2022 में यूरोपियन यूनियन और ऑस्ट्रेलिया ने रूस के तेल पर प्राइस कैप लगा दी थी। इसके तहत, समुद्री रास्ते से रूस अपना तेल 60 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा की कीमत पर नहीं बेच सकता। हालांकि, ग्रे फ्लीट के जरिए रूस अपना तेल 77 डॉलर प्रति बैरल के हिसाब से बेच रहा है। एक रिपोर्ट की मानें तो प्रतिबंध लगने के बावजूद ग्रे फ्लीट के जरिए रूस ने हर दिन 14 करोड़ बैरल कच्चा तेल बेचा है। इससे करीब रूस को 1.5 अरब डॉलर का मुनाफा हुआ था।
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कैसे काम करता है यह सारा सिस्टम?
नवंबर 2024 में यूरोपियन संसद की एक रिपोर्ट आई थी। इसमें बताया गया था कि मार्च 2022 के बाद से रूस ने अपनी ग्रे फ्लीट को बढ़ाने के लिए 10 अरब डॉलर का निवेश किया है। रूस ने एक बड़ा नेटवर्क तैयार किया है, जिसके लिए पुराने जहाजों, शेल कंपनियां और गैर-पश्चिमी देशों की मदद ली गई है।
इस रिपोर्ट में दावा किया गया था कि दिसंबर 2022 से पहले-पहले रूसी सरकार के मालिकाना हक वाले 90 टैंकरों का मैनेजमेंट दूसरी कंपनियों को दे दिया गया। इनमें से ज्यादातर कंपनियां संयुक्त अरब अमीरात (UAE) में खोली गई थीं। इतना ही नहीं, रूस ने 15 साल से ज्यादा पुराने 100 से ज्यादा जहाज भी खरीदे हैं, जिनका इस्तेमाल ग्रे फ्लीट के तौर पर किया जा रहा है। पुराने हो चुके जहाजों को ग्रे फ्लीट के तौर पर इस्तेमाल करना इसलिए भी फायदेमंद है क्योंकि अगर यह पकड़े भी जाते हैं और इन्हें कबाड़ में भी फेंका जाता है तो बहुत ज्यादा नुकसान नहीं होता।
इन टैंकरों का मालिक कौन होता है, इसका पता नहीं चल पाता, क्योंकि इनके लिए अक्सर फर्जी कंपनियां या शेल कंपनियां बनाई जाती हैं। मालिकाना हक बार-बार बदलता रहता है ताकि इन्हें ट्रेस न किया जा सके। ऐसे टैंकर ऑटोमैटिक आईडेंटिफिकेशन सिस्टम यानी ट्रांसपोंडर को बंद कर देते हैं, जिससे उनकी लोकेशन को ट्रैक करना मुश्किल हो जाता है।
ग्रे फ्लीट से कारोबार खतरनाक भी
रूस के पास सैकड़ों जहाज हैं, जिनका इस्तेमाल ग्रे फ्लीट के तौर पर किया जा रहा है। यूरोपियन संसद की रिपोर्ट के मुताबिक, मई 2024 में रूस का 95% कच्चा तेल भारत, चीन और तुर्की को ग्रे फ्लीट के जरिए सप्लाई किया गया था। रूस की ग्रे फ्लीट से 9.24 करोड़ बैरल कच्चा तेल बाल्टिक सागर के रास्ते सप्लाई किया गया था।
यूरोपियन संसद के दस्तावेज के मुताबिक, रूस की ग्रे फ्लीट में 72 फीसदी से ज्यादा जहाज या टैंकर 15 साल से ज्यादा पुराने हैं। ग्रे फ्लीट के जरिए कारोबार करना काफी जोखिम भरा भी हो सकता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि पुराने टैंकरों से तेल लीक होने का खतरा भी रहता है। इससे दुर्घटना हो सकती है।
यूरोपियन संसद ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि रूस की ग्रे फ्लीट के 50 से ज्यादा जहाजों में दुर्घटनाएं हुईं हैं। इनमें आग लगने, तेल लीक होने और इंजन फेल होने जैसी दुर्घटनाएं हुई हैं।
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