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ट्रंप के इस प्लान के खिलाफ भारत, चीन और पाकिस्तान एक साथ कैसे आए?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बगराम प्लान के खिलाफ दुनिया के 10 देश एकजुट हैं। खास बात यह है कि भारत, चीन और पाकिस्तान का रुख भी अमेरिका के खिलाफ है। जानते हैं पूरा मामला क्या है?

Moscow Format Meeting.

मॉस्को फॉर्मेट में पहुंचे विभिन्न देशों के प्रतिनिधि। (Photo Credit: Russian Foreign Ministry)

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की निगाह अफगानिस्तान के बगराम एयरबेस पर टिकी है। वह किसी भी हाल पर अपना कब्जा चाहते हैं। ट्रंप का मानना है कि यह एयरबेस चीन से बेहद नजदीक है। इसकी मदद से चीन के मिसाइल प्रोग्राम पर निगाह रखी जा सकती है। अफगानिस्तान की तालिबान सरकार दो टूक कह चुकी है कि वह एयरबेस को अमेरिकी कंट्रोल में नहीं देगी। ट्रंप की इस मंशा का न केवल चीन बल्कि भारत और पाकिस्तान ने विरोध किया। मतलब साफ है कि बगराम एयरबेस मामले में भारत, चीन और पाकिस्तान की प्रतिक्रिया एक जैसी है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बहुत कम मौके ऐसे हैं जब भारत, चीन और पाकिस्तान ने एक जैसा रुख अपनाया हो। 
 
भारत ने रूस और ईरान समेत मॉस्को फॉर्मट में शामिल 10 देशों के साथ मिलकर अफगानिस्तान में अमेरिका की वापसी का विरोध किया। रूसी विदेश मंत्रालय ने अपने संयुक्त बयान में कहा, 'उन्होंने (मॉस्को फॉर्मेट में मौजूद देशों) अफगानिस्तान और पड़ोसी देशों में सैन्य बुनियादी ढांचे को तैनात करने के अन्य देशों की कोशिश को अस्वीकार्य बताया, क्योंकि यह क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के हितों की पूर्ति नहीं करता है।' सभी देशों ने एक सुर में कहा कि इस तरह के कदम क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के हितों की पूर्ति नहीं करेंगे। हालांकि बयान में बगराम शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया, लेकिन इसका सीधा इशारा वही पर था। 

 

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भारत और अमेरिका के बीच रिश्ते अभी तनाव भरे हैं। टैरिफ के बाद दोनों देशों के रिश्तों में खटास आई है। डोनाल्ड ट्रंप बार-बार भारत के खिलाफ सख्त कदम उठाने से हिचक नहीं रहे हैं। एच-1बी वीजा पर भारी भरकम फीस लगाने के बाद अमेरिका अब पाकिस्तान को एडवांस्ड मिसाइल बेचने जा रहा है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद से ही पाकिस्तान और अमेरिका के बीच नजदीकियां बढ़ने लगी है। विशेषज्ञों का मानना है कि अफगानिस्तान मुद्दे पर भारत ने अमेरिका के खिलाफ विरोध जताकर स्पष्ट कर दिया है कि वह हमेशा अपनी स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करेगा और क्षेत्रीय हितों से कोई समझौता नहीं किया जाएगा।

भारत ने ट्रंप को दिया बड़ा मैसेज

मॉस्को फॉर्मेट में अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी ने हिस्सा लिया। भारत से मॉस्को में नई दिल्ली के दूत विनय कुमार बैठक में पहुंचे। पाकिस्तान की तरफ से विशेष दूत मोहम्मद सादिक मौजूद रहे। रूस के बाद मुत्तकी अपनी अगली विदेश यात्रा भारत की करेंगे। गुरुवार यानी 9 अक्तूबर को वह नई दिल्ली पहुंचेंगे। बगराम एयरबेस पर अमेरिका विरोधी रुख के बाद मुत्तकी को नई दिल्ली बुलाना भारत का बड़ा कदम माना जा रहा है। खास बात यह है कि भारत आने की विशेष छूट मुत्तकी को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद समिति से मिली है।

भारत लगातार अफगानिस्तान से बढ़ा रहा नजदीकियां?

भारत ने अभी तक अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है। 2021 में अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जे के बाद यह तालिबान के विदेश मंत्री की पहली भारत यात्रा है। 10 अक्टूबर को उनकी मुलाकात हैदराबाद हाउस में विदेश मंत्री एस जयशंकर से होगी। भारत आने से पहले मुत्तकी को पाकिस्तान जाना था। मगर उनके कई दौरे रद्द हो चुके हैं। माना जा रहा है कि तालिबान नेता हिबातुल्लाह अखुंदजदा पाकिस्तान से खफा है। उनके विरोध के बाद मुत्तकी का पाकिस्तान दौरा रद्द किया गया है।

 

तालिबान और भारत के बीच क्या-क्या हुआ?

  • तालिबान के कई अधिकारी कर चुके भारत का दौरा।
  • मई में मुत्तकी और जयशंकर के बीच हुई थी बातचीत।
  • जनवरी में विदेश सचिव विक्रम मिसरी से मिले थे मुत्तकी।
  • तालिबान के खाद्य मंत्री ने सितंबर में किया था भारत का दौरा।
  • भूकंप पर भारत ने अफगानिस्तान को भेजी थी मदद।

क्या है मॉस्को फॉर्मेट?

साल 2017 में मॉस्को फॉर्मेट की स्थापना की गई। इसके तहत रूस अफगानिस्तान के मुद्दे पर क्षेत्रीय देशों कों संवाद का एक मंच उपलब्ध कराता है। इस साल मॉस्को फॉर्मेट का यह 7वां आयोजन था। इसमें भारत, चीन और पाकिस्तान के अलावा अफगानिस्तान, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिजस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। रूस के सहयोगी बेलारूस को अतिथि के तौर पर शामिल किया गया।

 

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बगराम एयरबेस पर ट्रंप की निगाह क्यों?

डोनाल्ड ट्रंप का आरोप है कि चीन बगराम एयरबेस पर अपना कब्जा चाहता है। हालांकि समय-समय पर तालिबान ने इसका खंडन किया। अभी तक बगराम में चीन की मौजूदगी के कोई सबूत नहीं मिल है। ट्रंप का कहना है कि बगराम एयरबेस पश्चिम देश करीब 500 मील की दूरी पर है। अमेरिका की सेना को अपना कब्जा कर लेना चाहिए, क्यों कि यह जगह चीन के परमाणु हथियार बनाने वाले कार्यक्रम स्थल के नजदीक है। पिछले महीने अपने ब्रिटेन यात्रा के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि अमेरिका बेस वापस पाना चाहता है। अगर तालिबान ने हमारी बात नहीं मानी तो बुरा होगा। उन्होंने बेस हासिल करने के पीछे तर्क दिया कि यह चीन के परमाणु हथियार स्थल से सिर्फ एक घंटे की दूरी पर है।

बगराम एयरबेस की लोकेशन क्या है?

अफगानिस्तान के बगराम एयरबेस की स्थापना 1950 में सोवियत युग में हुआ। 2000 के दशक में अमेरिका ने कब्जा जमाया। 20 साल बाद 2021 में जब अमेरिकी सेना ने अफगानिस्तान छोड़ा तब से बगराम पर तालिबान का कब्जा है। आतंक के खिलाफ लड़ाई में बगराम ने अहम भूमिका निभाई। अमेरिकी सेना ने कई बड़े ऑपरेशन को यही से अंजाम दिया। यह अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना का सबसे बड़ा एयरबेस था। अगर लोकेशन की बात करें तो राजधानी काबुल से करीब 44 किमी उत्तर में स्थित है।

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