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भूरी, काली और नीली, इंसानों की आंखों का रंग इतना अलग-अलग कैसे होता है?

आंखें सिर्फ देखने का जरिया नहीं हैं, बल्कि हमारी पहचान और सुंदरता का भी हिस्सा हैं। आइए साइंस की एक रिपोर्ट से समझते हैं कि कितने रंग की आंखे होती हैं और आंखों के रंग कैसे बदलते हैं?

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प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo Credit: AI

आंखों का रंग सिर्फ सुंदरता ही नहीं, बल्कि विज्ञान और आनुवंशिकी का जादू है। दुनिया में आंखों के कई रंग होते हैं, जैसे भूरी, नीली, हरी और हेजल। साइंस के मुताबिक, इन रंगों का रहस्य मेलेनिन और लाइट से जुड़ा हुआ है। साइंस की एक रिसर्च में बताया गया है कि कुछ मामलों में दोनों आंखों के रंग अलग-अलग भी हो सकते हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि जिसके अंदर पिगमेंट ज्यादा होता है, उनकी आंखें भूरी दिखती हैं। वहीं, जिसके अंदर पिगमेंट कम होता है उनकी आंखें नीली होती हैं।

 

साइंस की रिपोर्ट के मुताबिक, जिनकी दोनों आंखों के रंग अलग-अलग होते हैं, उसे हेटरोक्रोमिया कहते हैं। आइए इस रिपोर्ट के जरिए समझते हैं कि कैसे एक ही इंसान की दोनों आंखों के रंग अलग-अलग हो सकते हैं? आंखों के हर रंग के पीछे की वैज्ञानिक वजह क्या होती है? 

 

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मेलेनिन क्या होता है? 

मेलेनिन एक प्राकृतिक रंगद्रव्य (पिगमेंट) होता है, जो मेलानोसाइट्स नामक विशेष त्वचा कोशिकाओं में उत्पन्न होता है। यह त्वचा, बालों और आंखों को रंग देता है।

दुनिया में कितने रंग की होती हैं आंखें?

  • भूरी आंखें: इस रंग की आंखों को साधारण रंग की आंख का दर्जा दिया गया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस रंग की आंखें खासकर एशिया और अफ्रीका के लोगों में पाई जाती हैं।
  • नीली आंखें: इस रंग की आंखें सबसे ज्यादा उत्तरी और पूर्वी यूरोप के लोगों में पाई जाती हैं।
  • हरी आंखें: हरे रंग की आंखें आमतौर पर नहीं देखने को मिलती हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, इस रंग की आंखें दुनिया की केवल 2% आबादी में ही है।
  • हेजल आंखें: इस रंग की आंखों को अनोखी आंख भी कहा जाता है। रिपोर्ट की मानें तो जिनकी आंखों का रंग रोशनी के हिसाब से बदलता है, उसे हेजल रंग की आंख कहा जाता है।

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आंखों का रंग कैसे तय होता है?

  • आंखों का रंग मुख्य रूप से मेलेनिन नामक पिगमेंट से तय होता है।
  • भूरी आंखों में मेलेनिन की मात्रा सबसे ज्यादा होती है।
  • नीली आंखों में मेलेनिन बहुत कम होता है। रिपोर्ट के मुताबिक, यह रंग वास्तव में प्रकाश के टिंडल प्रभाव से दिखता है, जैसे आसमान नीला दिखाई देता है।
  • रिपोर्ट में बताया गया है कि हरी आंखें मेलेनिन की मध्यम मात्रा और प्रकाश बिखराव का नतीजा होती हैं।
  • रिसर्च के अनुसार, हेजल आंखें असमान रूप से फैले मेलेनिन और रोशनी की वजह से अलग-अलग रंग में नजर आती हैं।

आनुवंशिकी से गहरा रिश्ता

पहले वैज्ञानिक मानते थे कि आंखों का रंग साधारण नियम से तय होता है। जैसे भूरी आंखों का जीन, नीली आंखों के जीन पर हावी होता है। दरअसल पहले वैज्ञानिक मानते थे कि अगर किसी बच्चे को माता से भूरी आंखों का जीन और पिता से नीली आंखों का जीन मिले, तो उसकी आंखों का रंग भूरा होगा लेकिन अब रिसर्च से पता चला है कि यह प्रक्रिया कहीं ज्यादा कठिन होती है और इसमें कई जीन शामिल होते हैं।

बदलता हुआ रंग

  • रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार,  जन्म के समय कई यूरोपीय बच्चों की आंखें नीली या स्लेटी होती हैं लेकिन समय के साथ मेलेनिन बढ़ने पर उनकी आंखें हरी या भूरी हो जाती हैं।
  • रिपोर्ट के बताया गया है कि यंग ऐज होने पर आंखों का रंग स्थिर रहता है। हालांकि रोशनी, कपड़ों और पुतली के आकार के आधार पर हल्का-फुल्का बदलाव दिख सकता है।
  • उम्र बढ़ने या कुछ बीमारियों से स्थायी बदलाव भी संभव होता है।
  • हेटरोक्रोमिया: रिसर्च के मुताबिक, यह रेयर कंडीशन में देखने को मिलता है, जिसमें दोनों आंखों का रंग अलग होता है या फिर एक ही आंख में दो रंग दिखाई देते हैं। यह जन्मजात, चोट या हेल्थ की वजह  से हो सकता है।

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