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ब्रेस्ट छूने, पैंट खोलने के आरोप लेकिन रेप केस नहीं चलेगा, आखिर क्यों?

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक नाबालिग लड़की के यौन उत्पीड़न से जुड़े केस पर एक फैसला सुनाया है, जिसकी खूब चर्चा हो रही है। पढ़ें कोर्ट में क्या-क्या कहा गया।

Allahabad High Court

इलाहाबाद हाई कोर्ट। (Photo Credit: Allahabad High Court)

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक लड़की के यौन उत्पीड़न से जुड़े केस में कहा है कि ब्रेस्ट पकड़ना, पायजामे का नाड़ा तोड़ना और पुलिया से नीचे खींचना बलात्कार और बलात्कार की कोशिश करना नहीं है। कासगंज के इस मामले पर हाई कोर्ट की टिप्पणी पर हर तरफ चर्चा हो रही है। केस के मुख्य आरोपी आकाश और पवन हैं, जिनके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धारा 376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 18 के तहत ट्रायल कोर्ट में मुकदमा चला। इस पूरे केस में चर्चा का मुख्य केंद्र हाई कोर्ट की वह टिप्पणी है जो इस मामले पर की गई है। इसको लेकर सवाल भी उठ रहे हैं कि आखिर हाई कोर्ट ने ऐसा क्यों कह दिया?

इस केस के दो मुख्य आरोपियों के अलावा एक अन्य आरोपी अशोक पर मुकदमा धारा 504 और 506 के तहत चला। हाई कोर्ट ने कहा है कि इस केस की सुनवाई 376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 18 के तहत नहीं होनी चाहिए। कोर्ट ने नए सिरे से मुकदमा चलाने के आदेश दिए हैं। यानी कोर्ट ने आकाश और पवन नाम के आरोपियों के खिलाफ रेप की धारा 376 के तहत केस चलाने से इनकार कर दिया है। आखिर यह मामला क्या है, इसे लेकर लोग चर्चा क्यों कर रहे हैं, समझिए पूरी कहानी विस्तार से।

क्या है पूरा मामला?
एक महिला ने यौन उत्पीड़न की पुलिस में शिकायत दी। महिला ने आरोप लगाया था कि 10 नवंबर 2021 को शाम 5 बजे वह अपने घर से अपनी नदद के साथ अपनी 14 साल की नाबालिग बेटी के साथ घर लौट रही थी। गांव के ही रहने वाले पवन, आकाश और अशोक सड़क पर उससे मिले। उन्होंने सवाल किया कि वह कहां से आ रही है। पीड़िता ने बताया कि वह अपनी नदद के घर से आ रही है। आरोपी पवन ने कहा कि वह शिकायतकर्ता की बेटी को घर छोड़ देगा। महिला ने भरोसा किया और उसे बाइक पर बैठने की इजाजत दे दी। 

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महिला ने अपनी शिकायत में कहा है कि जब वे गांव की ओर जा रहे थे, तभी कीचड़ भरी राह में मोटर साइकिल रोक दी और नाबालिग बच्ची का ब्रेस्ट पकड़ने लगे। आकाश ने उसे खींचा और उसे पुलिया के नीचे ले जाने की कोशिश की और पायजामे का नाड़ा तोड़ दिया। 

चीख-पुकार मचने के बाद दो गवाह वहां पहुंचे, उन्होंने विरोध किया तो आरोपियों ने पिस्तौल तान दी। आरोपी वहां से भाग गए। पीड़िता इसकी शिकायत करने पवन के पिता अशोक के पास गई, उसने जान से मारने की धमकी दी। अगले दिन वह पुलिस में FIR दर्ज कराने पहुंची, जहां कोई ऐक्शन नहीं हुआ। 21 मार्च 2022 को अदालत ने गवाहों के बयान के बाद आरोपियों को नोटिस भेजा। पवन और आकाश को धारा 376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 18 के तहत नोटिस भेजा। वहीं, अशोक को IPC की धारा 504 और 506 के तहत नोटिस भेजा। 

सुनवाई के बाद क्या हुआ?
ट्रायल कोर्ट में दोनों आरोपियों के खिलाफ सुनवाई IPC की धारा 376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 18 के तहत हो रही थी। इस फैसले के खिलाफ ही बचाव पक्ष हाई कोर्ट पहुंचा। धारा 376 रेप और पॉक्सो एक्ट की धारा 18 रेप करने की कोशिश करने की सजा से संबंधित है। हाई कोर्ट ने दोनों आरोपियों के खिलाफ लगी इन धाराओं को हटा दिया है।

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कोर्ट ने क्या किया?
हाई कोर्ट ने निर्देश दिया कि आरोपियों के खिलाफ सुनवाई धारा 354-बी के तहत होनी चाहिए। यह महिला की शील भंग की कोशिश से जुड़ी धारा है, वहीं पॉक्सो एक्ट की धारा 9/10 यौन हमले से जुड़ी है। आईपीसी की धारा 354 बी के तहत, किसी महिला को बलपूर्वक निर्वस्त्र करने के लिए उकसाने या मजबूर करने के मामले में मुकदमा दर्ज किया जाता है। यह एक जमानती, संज्ञेय अपराध है। इस अपराध में तीन से सात साल की जेल हो सकती है। पॉक्सो एक्ट की धारा 10 में भी 7 साल की सजा का प्रावधान है।

कोर्ट के किस बयान पर हो रही है चर्चा?
हाई कोर्ट ने कहा, 'आरोपी पवन और आकाश के खिलाफ आरोप यह है कि उन्होंने पीड़िता के स्तनों को पकड़ा और आकाश ने पीड़िता की पायजामे को खींचने की कोशिश की। इसके लिए उन्होंने पायजामे का नाड़ा तोड़ दिया। उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की। गवाहों के आने की वजह से वे पीड़िता को छोड़कर भाग गए। मौजूदा तथ्य यह अनुमान लगाने के लिए काफी नहीं हैं कि आरोपी पीड़िता के साथ बलात्कार करने का फैसला कर चुके थे। इन तथ्यों के अलावा उनकी इच्छा को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने कोई और काम नहीं किया है।'

कोर्ट ने निचली अदालत को आदेश क्या दिया?
कोर्ट ने निचली अदालत से कहा है कि नए सिरे से आरोपियों को समन दिया जाए। एडवोकेट अजय कुमार वशिष्ठ आरोपी की ओर से पेश हुए थे। एडवोकेट इंद्र कुमार सिंह पीड़ित पक्ष की ओर से थे। 


कोर्ट ने क्यों इसे रेप नहीं माना है?
सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड विशाल अरुण मिश्र ने कहा, 'रेप की परिभाषा IPC की धारा 375 में दी गई है। रेप किसे कहा जाएगा, इसे लेकर नियम साफ हैं। पेनेट्रेशन, शरीर के किसी हिस्से में उंगली या यौनांगों का प्रवेश, प्राइवेट पार्ट में डालने की कोशिश, ओरल सेक्स की कोशिश जैसे कृत्यों को रेप माना गया है। इस केस में कोर्ट ने इन तथ्यों की कमी पाई है, इसलिए इसे रेप के दायरे में नहीं माना है। आरोपियों के खिलाफ इसी वजह से 376 और 18 के तहत ट्रायल नहीं चलाया जा रहा है।'

सवाल क्या उठ रहे हैं?
सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट रुपाली पंवार ने कहा, 'इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तकनीकी आधार पर यह फैसला सुनाया है। यह हरकत रेप है लेकिन कानूनी जटिलताओं की वजह से इसे रेप नहीं कहा जा सकता है। अपराधी ऐसी कानूनी बारीकियों का लाभ लेकर कड़ी सजाओं से बच जाते हैं। रेप और यौन उत्पीड़न से जुड़े मामलों में नए सिरे से कानून तैयार करने की जरूरत है।'

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