भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई ने गुरुवार को 6 अक्टूबर को हुई जूता फेंकने की घटना पर अपनी चुप्पी तोड़ी। उन्होंने कहा कि उनके लिए यह 'भूला हुआ अध्याय' हो चुका है। हालांकि, साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जब यह घटना हुई तो वह काफी चौंक गए थे क्योंकि उन्हें इसकी बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी.
71 साल के वकील राकेश किशोर ने कोर्ट में जजों की ओर जूता फेंकने की कोशिश की थी। इससे पहले कि वह जूता फेंक पाते सुरक्षाकर्मियों ने तुरंत उन्हें रोक लिया। घटना के बाद CJI गवई शांत रहे और उन्होंने वकीलों से कहा, 'इस तरह की चीजों से प्रभावित होने की जरूरत नहीं है। इसका कोई असर नहीं है। ये बातें मुझे प्रभावित नहीं करतीं।' इसके बाद उन्होंने कोर्ट की कार्यवाही सामान्य रूप से जारी रखी थी।
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दिल्ली पुलिस ने किया रिहा
दिल्ली पुलिस ने राकेश किशोर को छोड़ दिया क्योंकि सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री ने उनके खिलाफ कोई शिकायत दर्ज नहीं की। पुलिस के अनुसार, राकेश को तीन घंटे तक पूछताछ के बाद रिहा कर दिया गया। मीडिया के मुताबिक, राकेश ने कोर्ट से बाहर निकलते समय कहा था, 'सनातन का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान।'
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कई अन्य नेताओं ने इस घटना की निंदा की। उन्होंने इसे हर भारतीय और 'देश की आत्मा' पर हमला बताया। पीएम मोदी ने CJI गवई से इस घटना के बाद बात भी की।
बार काउंसिल ने किया निलंबित
कानून से जुड़े लोगों ने भी इस कृत्य की कड़ी निंदा की। बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने राकेश किशोर को देशभर में वकालत करने से निलंबित कर दिया। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने उन्हें निष्कासित कर दिया और सुप्रीम कोर्ट परिसर में उनके प्रवेश पर रोक लगा दी।
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कहा- ‘सनातन का सिपाही हूं’
इस घटना के बाद काफी लोगों ने विरोध किया था। कई आंबेडकरवादी संगठनों ने गुरुवार को महाराष्ट्र के थाणे में विरोध प्रदर्शन किया था। उनका कहना था कि यह 'ज्युडिशियरी और संवैधानिक मूल्यों का अपमान है।' हमले के एक दिन बाद राकेश किशोर ने कहा था, 'मैं सनातन का एक सामान्य सा सिपाही हूं और मैंने जो किया है वह दैवीय निर्देशों पर किया है।' उन्होंने अपने इस कदम के लिए कोई भी खेद प्रकट नहीं किया।