भारत में अमीर और अमीर होता जा रहा है। गरीब अब भी गरीबी के दुष्चक्र में फंसा है। देश में अमीर और गरीब के बीच खाई बढ़ती जा रही है। साल 2000 के बाद यह गैप तेजी से बढ़ा है। पड़ोसी देश चीन की हालात में काफी सुधार हुआ है। उसकी अधिकांश आबादी मध्य 40% में आ गई है। 1980 में भारत की आबादी का बड़ा हिस्सा मध्य 40% में आता था। मगर आज लगभग सभी निचले 50% में आते हैं। भारत के मध्यम वर्ग का 40% हिस्सा निचले स्तर पर है, जबकि चीन का मध्यम वर्ग का हिस्सा अधिक बढ़ रहा है। इस बात का खुलासा वैश्विक असमानता रिपोर्ट 2026 में हुआ है।
विश्व असमानता डेटाबेस के मुताबिक 1951 से 1980 तक भारत की कुल आय में टॉप 10% अमीरों का हिस्सा करीब 33 से 35% के बीच रहा। 29 वर्षों में इसमें मामूली अंतर देखने को मिला। 1980 से 2000 के बीच यह हिस्सेदारी 35 से बढ़कर 40 फीसद तक पहुंच गया। साल 2000 के बाद अमीरों की दौलत खूब बड़ी। अमीर और अमीर होता गया। आंकड़ों के मुताबिक 2000 से 2019 तक महज 19 साल में 10% अमीरों की देश की आय में हिस्सेदारी 40 से बढ़कर 58 फीसद तक बढ़ गई।
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देश की कुल आय में सबसे गरीब 50% लोगों की हिस्सेदारी लगातार घटती जा रही है। मतलब साफ है कि देश की संपत्ति सिर्फ कुछ हाथों तक सीमित रह गई है। विश्व असमानता डेटाबेस के अनुसार 1951 से 1980 तक सबसे गरीब लोगों की देश की आय में लगभग 19 से 22% के बीच हिस्सेदारी रही। 1980 से 2000 के बीच इसमें गिरावट आई। उनकी हिस्सेदारी घटकर 21% से 20% तक रह गई। 2000 से 2019 के बीच गरीबों की आय में बड़ी गिरावट आई। अब सबसे गरीब 50 फीसद लोगों की देश की आय में हिस्सेदारी 20 प्रतिशत से घटकर करीब 13–14% तक सिमट गई है।
वैश्विक असमानता रिपोर्ट 2026 के मुताकि भारत के सबसे अमीर 10 फीसद लोग कुल राष्ट्रीय आय का 58% कमाते हैं। वहीं सबसे गरीब 50% लोगों के हिस्से सिर्फ 15% आय ही आती है। देश के सबसे रईस 10 फीसद लोगों के पास कुल संपत्ति का 65 प्रतिशत और टॉप एक प्रतिशत के पास करीब 40% संपत्ति है।
- सबसे निचले 50%: इस श्रेणी में दुनिया के सबसे गरीब और सबसे कम कमाने वाले लोग आते हैं। इस आबादी के पास सबसे कम संसाधन है। इनकी जनसंख्या तो खूब है, लेकिन धन का अभाव होता है। विश्व की मौजूदा 8.2 अरब जनसंख्या में लगभग 2.8 अरब लोग इसी श्रेणी का हिस्सा है। यह आंकड़ा चीन, भारत, अमेरिका, इंडोनेशिया, नाइजीरिया, ब्राजील और रूस की संयुक्त आबादी के बराबर है।
- मध्य 40%: इस श्रेणी में दुनियाभर का मध्य वर्ग आता है। यह वर्ग गरीबों से ऊपर, लेकिन धनाढ्यों से नीचे होता है। यह वर्ग इतना कमाता है कि उनकी गिनती गरीबों में नहीं होती है। दुनियारभर के करीब 2.2 अरब लोग मध्य 40% वाली श्रेणी में आते हैं।
- सबसे अमीर 10%: दुनिया की 10 फीसद आबादी सबसे अमीर है। इनके पास संसाधन, आय और संपत्ति आकूत है। विश्व असमानता रिपोर्ट 2026 के मुताबिक 10 फीसद लोगों के पास दुनिया की आधी आबादी से करीब 18 गुना अधिक पैसा है। दुनियाभर में सिर्फ 55.6 करोड़ लोग ही सबसे अमीर 10% क्लब का हिस्सा हैं। अमेरिका, ब्राजील और पाकिस्तान की संयुक्त आबादी के बराबर दुनियाभर में सबसे रईस है।
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225 साल में कहां से कहां तक पहुंची दुनिया?
साल 1800 में दुनिया की जनसंख्या 1 अरब थी। 2025 में यह आठ अरब तक पहुंच गई। मतलब 225 साल में वैश्विक जनसंख्या में आठ गुना का इजाफा हुआ। मगर इस बीच प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक आय करीब 16 गुना बढ़ी। साल 1800 में प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक आय करीब 900 यूरो थी। 2025 में यह करीब 14,000 यूरो तक पहुंच गई।
टॉप 10 फीसद अमीर वैश्विक आय का 53 फीसद हिस्सा हासिल करते हैं। वहीं सबसे गरीब 50% को 8 फीसद ही आय मिलती है। दुनिया के टॉप 1 फीसद अमीर सबसे गरीब 50 फीसद की तुलना में ढाई गुना अधिक कमाते हैं। दुनिया भर में अमीर और गरीब के बीच खाई इतनी गहरी है कि इसे आसानी से समझा भी नहीं जा सकता है। दुनिया के आधे वयस्क 500 यूरो प्रति माह से कम कमाते हैं। वहीं सबसे अमीर 10% लोग उनसे 31 गुना अधिक कमाते हैं। अगर सबसे अमीर 1 फीसद लोगों की बात करें तो वह करीब 50,000 गुना अधिक कमाते हैं।