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चीन पर चाहकर भी क्यों नहीं किया जा सकता भरोसा? ये रहे कारण

आर्मी चीफ जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने एक कार्यक्रम में कहा है कि चीन पर भरोसा नहीं किया जा सकता। ऐसे में जानते हैं कि चीन पर आखिर भारत भरोसा क्यों नहीं कर सकता?

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प्रतीकात्मक तस्वीर। (AI Generated Image)

चीन ने हाल ही में भारत को दोस्ती की पेशकश की है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग यी ने कहा था कि चीन और भारत का एक-दूसरे की सफलता में सहयोग करना दोनों के संबंधों के लिए सही विकल्प है।


इसके पीछे भी फायदा चीन का ही था। चीन पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने टैरिफ लगा दिया है। इससे चीन मुश्किल में पड़ गया है। इसलिए अब भारत की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा रहा है। चीन की इस पेशकश के बाद आर्मी चीफ जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने एक कार्यक्रम में कहा कि चीन पर कभी भरोसा नहीं किया जा सकता। 


कुछ महीनों में चीन नरम जरूर पड़ा है लेकिन उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। चीन पर इसलिए भी भरोसा नहीं किया जा सकता है, क्योंकि बातें तो वह शांति की करता है लेकिन सीमा पर उकसाने वाली हरकतें भी उसकी तरफ से ही होती हैं। यह चीन ही है जो 1914 में दोनों देशों के बीच तय मैकमोहन लाइन को बॉर्डर नहीं मानता। और तो और भारत के 90 हजार वर्ग किलोमीटर की जमीन पर दावा ठोकता है। लद्दाख की 38 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर पहले से ही चीन ने कब्जा कर रखा है। 

 

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नाम बदलता है, नक्शे जारी करता है

भारत और चीन के बीच वैसे तो 1950 से राजनयिक संबंध हैं लेकिन दोनों देश एक बड़ी जंग लड़ चुके हैं। दोनों के बीच सीमा पर जबरदस्त तनाव बना रहता है। चीन उस नीति पर काम करता है, जिसे दुनिया विस्तारवादी कहती है।


चीन ने 1954 में एक किताब 'अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ मॉडर्न चाइना' छापी, जिसमें भारतीय इलाकों को अपना बताया। इसके बाद 1958 में भी चीन से छपने वालीं दो मैग्जीनें 'चाइना पिक्टोरियल' और 'सोवितत वीकली' में भी भारतीय इलाकों को अपने नक्शे में दिखाया। 


इसके बाद से अब तक चीन साल-दो साल में नक्शे जारी करता है और भारतीय इलाकों पर दावा करता है। आखिरी बार अगस्त 2023 में चीन ने नया नक्शा जारी किया था, जिसमें अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताया था। 


इतना ही नहीं, चीन अरुणाचल प्रदेश के 90 हजार वर्ग किलोमीटर इलाके पर दावा करता है। चीन उसे दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताता है और उसके लिए 'जंगनान' नाम का इस्तेमाल करता है। चीन ने पिछले साल ही अप्रैल में अरुणाचल की 30 जगहों के नाम बदल दिए थे। इन नामों को चीन अपने आधिकारिक दस्तावेजों और नक्शों में इस्तेमाल करता है। चीन अरुणाचल के पहाड़ों, नदियों, झीलों और रिहायशी इलाकों के नाम बदलता रहता है।

 

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भारतीय इलाके में बना दी थी सड़क

1950 के दशक में चीन ने भारतीय इलाके में बिना बताए ही सड़क बना दी थी। भारत को अखबार के माध्यम से पता चला कि चीन ने शिनजियांग से लेकर तिब्बत तक एक हाईवे बनाया है। इसकी सड़क अक्साई चिन से भी गुजरी जो भारतीय इलाका है। 


जब भारत ने चीन की इस हरकत को कंफर्म करने के लिए एक टीम को भेजा तो चीन ने उसे कैद कर लिया। इसके बाद 1958 में दूसरी टीम भेजी, जिसने बताया कि शिनजियांग-तिब्बत हाईवे बनकर तैयार हो गया है। 18 अक्टूबर 1958 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस पर आपत्ति जताई तो चीन ने कहा कि जो सड़क बनी है, वह चीन के हिस्से में आती है।


23 जनवरी 1959 को चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री झोउ एन-लाई ने प्रधानमंत्री नेहरू को चिट्ठी लिखकर दावा किया कि उनका करीब 13 हजार वर्ग किलोमीटर का इलाका भारतीय सीमा में हैं। 


इसके बाद जून 2017 में भी भारत और चीन के बीच सड़क को लेकर ही डोकलाम में 76 दिन तक तनाव रहा था। डोकलाम में चीन सड़क बना रहा था, जिस पर भारतीय सेना ने आपत्ति जताई थी।

 

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दबाव बनाकर समझौता करने की कोशिश?

सितंबर 1956 में चीन के सैनिक शिपकी-ला (लद्दाख) में घुस आए। जुलाई 1958 में चीनी सैनिकों ने लद्दाख के पास खुरनाक किले पर कब्जा कर लिया। अक्टूबर 1958 में उसके सैनिक अरुणाचल के लोहित फ्रंटियर डिविजन के अंदर तक आ गया। भारत की आपत्ति के बावजूद चीनी सैनिक पीछे नहीं हटे।


दिसंबर 1961 में चीन ने भारत के सामने एक नया कारोबारी समझौते के प्रस्ताव रखा। भारत ने साफ कर दिया कि जब तक चीनी सैनिक पीछे नहीं हटते, तब तक कोई समझौता नहीं होगा। 8 सितंबर 1962 को चीन के सैनिकों ने फिर घुसपैठ की। उसी महीने चीन ने फिर प्रस्ताव दिया कि भारत अगर समझौता करता है तो चीनी सैनिक 20 किलोमीटर पीछे चले जाएंगे। भारत ने मना कर दिया।


20 सितंबर 1962 को चीनी और भारतीय सैनिकों में झड़प हो गई। महीनेभर तक तनातनी रही और आखिरकार 20 अक्टूबर को जंग शुरू हो गई। एक महीने बाद 22 नवंबर 1962 को युद्धविराम हुआ।

वीजा और भारतीय नेताओं के दौरों पर भी आपत्ति

चीन अरुणाचल प्रदेश को अपना बताता है। इस पर अपना दावा मजबूत करने के लिए अरुणाचल के लोगों को वीजा नहीं देता है। सितंबर 2023 में चीन ने अरुणाचल की तीन खिलाड़ियों- नेमान वांग्सु, ओनिलु टेगा और मेपुंग लाम्गु को वीजा नहीं दिया था। इस कारण तीनों एशियन गेम्स में हिस्सा नहीं ले पाई थीं। जुलाई 2023 में भी चीन ने इन तीनों खिलाड़ियों को वीजा नहीं दिया था। 


इससे पहले 2016 में भी चीन ने भारतीय बैडमिंटन टीम के मैनेजर बेमांग टैगो को वीजा देने से इनकार कर दिया था। 2011 में भी 45 सदस्यों की भारतीय कराटे टीम को चीन जाना था। अरुणाचल के 5 खिलाड़ियों को छोड़कर बाकी सभी को चीन ने वीजा दे दिया था। बाद में इन पांचों को स्टेपल वीजा जारी किया गया था।


2007 में चीन ने अरुणाचल के एक आईएएस अफसर गणेश कोयू को वीजा नहीं दिया था। चीन का कहना था कि वे अरुणाचल के हैं और वह चीन का ही हिस्सा है, इसलिए वीजा की जरूरत नहीं है।


और तो और भारतीय नेताओं के दौरों पर भी चीन आपत्ति जताता है। मार्च 2023 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अरुणाचल गए थे तो चीन ने कहा था कि इससे दोनों देशों के बीच सीमा विवाद और बढ़ेगा। फरवरी 2019 में भी पीएम मोदी के अरुणाचल दौरे पर चीन ने आपत्ति जताई थी। अक्टूबर 2021 में तत्कालीन उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के अरुणाचल दौरे का भी चीन ने विरोध किया था। तब भारत ने जवाब देते हुए कहा था, 'भारतीय राजनेता के भारतीय राज्य के दौरे का विरोध करना समझ और तर्क से परे है।'

 

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पर चीन ऐसा क्यों करता है?

सीमा पर तनाव बढ़ाने की वजह खुद चीन ही है। दरअसल, 1914 में शिमला समझौता हुआ था। इस समझौते से ही भारत और चीन के बीच सीमाएं तय हुईं। इसे मैकमोहन लाइन भी कहा जाता है। चीन मैकमोहन लाइन को नहीं मानता है। चीन का कहना है कि 1914 में ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच जब समझौता हुआ था, तब वह मौजूद नहीं था। 


चीन के कारण ही दोनों देशों के बीच कोई आधिकारिक सीमा नहीं है। 1962 की जंग में चीनी सैनिक लद्दाख और अरुणाचल के तवांग में कई किलोमीटर तक अंदर घुस आए थे। जब युद्धविराम हुआ तो तय हुआ कि दोनों देशों की सेनाएं जहां तैनात हैं, उसे ही लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) कहा गया।


सीमा पर शांति के लिए तीन दशकों में भारत और चीन के बीच 5 अहम समझौते हुए हैं। दोनों के बीच 1993, 1996, 2005, 2012 और 2013 में समझौते हुए थे। 


23 नवंबर 1996 को हुए समझौते को सबसे अहम माना जाता है। इसी समझौते में तय हुआ था कि दोनों देश एक-दूसरे के खिलाफ सैन्य शक्ति का इस्तेमाल नहीं करेंगे। इस समझौते का अनुच्छेद 6 कहता है कि कोई भी देश LAC के दो किलोमीटर के दायरे में न तो गोलीबारी करेंगे और न ही किसी तरह के हथियार का इस्तेमाल करेंगे। 


हालांकि, इन तमाम समझौतों के बावजूद चीन के सैनिक सीमा पर आए दिन घुसपैठ करते हैं, झड़प करते हैं और उकसाने वाली हरकतें करते हैं। शायद यही कारण है कि चीन भरोसे लायक नहीं है।

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