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दोस्त को बचाया, खुद शहीद हो गए; कौन थे लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी

23 साल के लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी नॉर्थ सिक्किम में ऑपरेशन के दौरान अपने साथी की जान बचाते हुए शहीद हो गए। सिर्फ 6 महीने पहले सेना में शामिल हुए थे।

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शहीद लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी, Photo Credit: X/Social Media

भारतीय सेना के युवा अधिकारी लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी ने बहादुरी, नेतृत्व और अपने साथियों के प्रति समर्पण की ऐसी मिसाल पेश की, जो हर किसी को भावुक कर देती है। 23 साल के शशांक नॉर्थ सिक्किम में एक ऑपरेशन के दौरान अपने साथी की जान बचाते हुए शहीद हो गए। उन्होंने सिर्फ 6 महीने पहले ही सेना ज्वाइन की थी लेकिन इतने कम समय में भी उन्होंने अपने साहस से सभी का दिल जीत लिया। वह सेना की सिक्किम स्काउट्स यूनिट में तैनात थे। 

 

कब हुई घटना?

लेफ्टिनेंट शशाक तिवारी ने 14 दिसंबर 2024 को भारतीय सेना में कमीशन लिया था। हादसा 22 मई को हुआ,जब वह एक टेक्टिकल ऑपरेटिंग बेस की ओर जा रही गश्ती टीम का नेतृत्व कर रहे थे। यह बेस भविष्य में सेना की तैनाती के लिए एक अहम चौकी बनने वाला था। 

 

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कैसे हुआ हादसा?

22 मई की सुबह करीब 11 बजे गश्ती दल एक लकड़ी के पुल से गुजर रहे थे, तभी एक जवान अग्निवीर स्टीफन सुब्बा का संतुलन बिगड़ गया और वह तेज बहाव वाली पहाड़ी नदी में गिर गया। यह देखते ही लेफ्टिनेंट तिवारी ने बिना कोई देर किए और अपनी जान की परवाह किए बिना पानी में छलांग लगा दी ताकि अपने साथी को बचा सकें। 

 

 

लेफ्टिनेंट तिवारी का मिला पार्थिव शरीर

लेफ्टिनेंट शशांक के पीछे नायक पुकार कटेल भी नदी में कूद गए थे। दोनों ने मिलकर अग्निवीर स्टीफन सुब्बा की जान तो बचा ली लेकिन लेफ्टिनेंट तिवारी खुद तेज बहाव में बह गए। उनकी टीम ने उन्हें ढूंढने की पूरी कोशिश की और आखिरकार करीब 11:30 बजे उनका पार्थिव शरीर घटनास्थल से करीब 800 मीटर दूर मिला। 

 

लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी का बलिदान सिर्फ एक साथी की जान बचाने की कहानी नहीं है, बल्कि यह भारतीय सेना की उस परंपरा की मिसाल है जहां अफसर और जवान हर मुश्किल में एक साथ खड़े रहते हैं। चाहे हालात युद्ध के हों या शांति के, वे एक परिवार की तरह एक-दूसरे के लिए जान तक देने से पीछे नहीं हटते।

 

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महज 23 साल के थे शशांक

लेफ्टिनेंट शशांक महज 23 साल के थे। भारतीय सेना ने कहा कि हमने एक बहादुर जवान खोया है, लेकिन लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी की शहादत, उनका साहस और साथियों के लिए उनका बलिदान हमेशा याद रखा जाएगा। 

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