जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने शनिवार को कहा कि मुस्लिम समाज को बदनाम करने के लिए 'जिहाद' शब्द का जानबूझकर गलत इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि जिहाद का असल में मतलब ज़ुल्म के खिलाफ लड़ाई है। उन्होंने आरोप लगाया कि इस्लाम के दुश्मन जिहाद शब्द को गलत तरीके से पेश करने के लिए जिम्मेदार हैं।
मौलाना मदनी मुस्लिम समाज के बड़े धर्म गुरु हैं, जो अक्सर अपने बयानों के लिए चर्चा में रहते हैं। उन्होंने कहा कि इस्लाम और मुसलमानों के दुश्मनों ने जिहाद शब्द को गाली, झगड़े और हिंसा का दूसरा नाम बना दिया है। लव जिहाद, लैंड जिहाद, तालीम जिहाद और थूक जिहाद जैसे शब्दों का इस्तेमाल मुसलमानों के धर्म का अपमान करने के लिए किया जाता है।
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सरकार-मीडिया को बताया जिम्मेदार
उन्होंने कहा, 'दुख की बात है कि सरकार और मीडिया में जिम्मेदार लोग भी बिना शर्म के ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। इस्लाम में जिहाद कुरान में कई जगहों पर आता है। अपने फर्ज़ के लिए, समाज और इंसानियत की भलाई के लिए और जब जंग की बात आती है, तो ज़ुल्म और हिंसा को खत्म करने की लड़ाई के तौर पर जिहाद शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए जब-जब ज़ुल्म होगा, तब-तब जिहाद होगा।'
मदनी ने आगे आरोप लगाया कि अल्पसंख्यक के संवैधानिक अधिकारों को कमजोर किया जा रहा है और उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। बाबरी मस्जिद के फैसले और तीन तलाक को अपराधीकरण करने का जिक्र करते हुए, उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को सुप्रीम तभी माना जा सकता है जब वह संविधान और कानून को बनाए रखे।
बाबरी मस्जिद, तीन तलाक का किया जिक्र?
मदनी ने कहा, 'बाबरी मस्जिद, तीन तलाक और कई दूसरे मामलों पर आए फैसलों के बाद, ऐसा लगता है कि पिछले कुछ सालों से कोर्ट सरकारी दबाव में काम कर रहे हैं… हमारे पास पहले के भी ऐसे उदाहरण हैं जो कोर्ट के चरित्र पर सवाल उठाते हैं। सुप्रीम कोर्ट को ‘सुप्रीम’ तभी कहा जाना चाहिए जब वह संविधान को माने और कानून को बनाए रखे। अगर वह ऐसा नहीं करता है, तो वह इस टाइटल के लायक नहीं है।'
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जमीयत चीफ ने बुलडोजर एक्शन, मॉब लिंचिंग और वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करने की घटनाओं पर भी बात की। उन्होंने कहा कि इन घटनाओं से मुसलमान असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।
वंदे मातरम गाने वाले मुर्दा कौम
राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम का जिक्र करते हुए महमूद मदनी ने कहा कि जो समुदाय दबाव में हार मान लेते हैं वे 'मुर्दा कौम' हैं। वहीं, जो मजबूत रहते हैं और चुनौतियों का सामना करते हैं, वे जिंदा कौम हैं। उन्होंने कहा, 'मुर्दा कौम मुश्किलों से नहीं उलझतीं, वे हार मान लेती हैं। उनसे वंदे मातरम पढ़ने के लिए कहा जाएगा और वे तुरंत मान जाएंगी। यही मुर्दा कौम की निशानी है। हालांकि, एक जिंदा कौम को अपना हौसला बढ़ाना चाहिए और हालात का डटकर सामना करना चाहिए।'