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'दोस्ती रहे लेकिन आत्मनिर्भर,' विजयादशमी पर बोले मोहन भागवत

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि दुनिया के साथ कूटनीतिक संबंध सुधारने की जरूरत है लेकिन भारत को आत्मनिर्भरता पर जोर देने की जरूरत है।

Mohan Bhagwat

संघ प्रमुख मोहन भागवत। (Photo Credit: PTI)

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना के 100 साल पूरे होने पर मोहन भागवत ने देश की नई पीढ़ी और सरकार से स्वदेशी अपनाने की अपील की है। उन्होंने कहा है कि भारत को स्वदेशी राह पर बढ़ना होगा। उन्होंने कहा है कि भारत को आत्मनिर्भरता पर ध्यान देना चाहिए, लेकिन वैश्विक देशों के साथ आपसी सहयोग बनाए रखना भी जरूरी है। उन्होंने कहा कि कोई भी देश अकेले नहीं चल सकता, लेकिन यह सहयोग मजबूरी में नहीं बदलना चाहिए। 

स्थापना दिवस के शताब्दी वर्ष में संघ ने नागपुर के रेशमबाग मैदान में एक कार्यक्रम आयोजित किया, जिसमें पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी शामिल हुए। संघ के विजयादशमी उत्सव की शुरुआत सरसंघचालक मोहन भागवत की शस्त्र पूजा से शुरू हुई है।  मोहन भागवत ने कहा, 'भारत को अपने देश के उत्पादों पर भरोसा करना चाहिए और दोस्त देशों के साथ स्वेच्छा से कूटनीतिक संबंध बनाए रखने चाहिए।'

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मोहन भागवत, सर संघ संचालक:-
विश्व परस्पर निर्भरता पर जीता है । परंतु स्वयं आत्मनिर्भर होकर, विश्व जीवन की एकता को ध्यान में रखकर हम इस परस्पर निर्भरता को अपनी मजबूरी न बनने देते हुए अपने स्वेच्छा से जिएं, ऐसा हमको बनना पड़ेगा। स्वदेशी तथा स्वावलंबन को कोई पर्याय नहीं है। 

मोहन भागवत ने कहा, 'संपूर्ण हिंदू समाज का बल संपन्न, शील संपन्न संगठित स्वरूप इस देश के एकता, एकात्मता, विकास व सुरक्षा की गारंटी है। हिंदू समाज इस देश के लिए उत्तरदायी समाज है, हिंदू समाज सर्व-समावेशी है।'

मोहन भागवत, संघ प्रमुख:-
हमें अपनी समग्र व एकात्म दृष्टि के आधार पर अपना विकास पथ बनाकर, विश्व के सामने एक यशस्वी उदाहरण रखना पड़ेगा । अर्थ व काम के पीछे अंधी होकर भाग रही दुनिया को पूजा व रीति रिवाजों के परे, सबको जोड़ने वाले, सबको साथ में लेकर चलने वाले, सबकी एक साथ उन्नति करने वाले धर्म का मार्ग दिखाना ही होगा।

जेन जी पर क्या बोले मोहन भागवत?

मोहन भागवत ने कहा, 'अपने देश में सर्वत्र तथा विशेषकर नई पीढ़ी में देशभक्ति की भावना अपने संस्कृति के प्रति आस्था व विश्वास का प्रमाण निरंतर बढ़ रहा है। संघ के स्वयंसेवकों सहित समाज में चल रही विविध धार्मिक, सामाजिक संस्थाएं तथा व्यक्ति समाज के अभावग्रस्त वर्गों की निस्वार्थ सेवा करने के लिए अधिकाधिक आगे आ रहे हैं। इन सब बातों के कारण समाज का स्वयं सक्षम होना और स्वयं की पहल से अपने सामने की समस्याओं का समाधान करना व अभावों की पूर्ति करना बढ़ा है। संघ के स्वयंसेवकों का यह अनुभव है कि संघ और समाज के कार्यों में प्रत्यक्ष सहभागी होने की इच्छा समाज में बढ़ रही है।'

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नेपाल आंदोलन पर क्या बोले मोहन भागवत?

मोहन भागवत ने कहा, 'गत वर्षों में हमारे पड़ोसी देशों में बहुत उथल-पुथल मची है। श्रीलंका में, बांग्लादेश में और हाल ही में नेपाल में जिस प्रकार जन-आक्रोश का हिंसक उद्रेक होकर सत्ता का परिवर्तन हुआ वह हमारे लिए चिंताजनक है। अपने देश में तथा दुनिया में भी भारतवर्ष में इस प्रकार के उपद्रवों को चाहने वाली शक्तियां सक्रिय हैं।'

 

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