सुप्रीम कोर्ट ने 4 महीने के भीतर सभी राज्यों को 'आनंद कारज' से जुड़े नियमों की अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया है। साल 2012 में कानून में संसोधन होने के बाद भी कई राज्यों ने अभी तक आनंद विवाह से जुड़े नियमों को अधिसूचित नहीं किया है। शीर्ष अदालत का कहना है कि मानदंडों का अभाव समानता के अधिकार का उल्लंघन है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दशकों से आनंद मैरिज एक्ट को लागू न करने से भारत में सिखों के साथ असमान व्यवहार हुआ है। यह समानता के सिद्धांत का उल्लंघन है। कोर्ट ने 17 राज्यों और 7 केंद्र शासित प्रदेशों को आनंद विवाह अधिनियम 1909 के तहत आनंद कारज रजिस्ट्रेशन से जुड़े नियमों को बनाने का निर्देश दिया है। राज्यों को चार महीने का समय मिला है।
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शीर्ष अदालत ने कहा कि एक धर्मनिरपेक्ष ढांचा धार्मिक पहचान का सम्मान करता है और नागरिक समानता सुनिश्चित करता है। कानून को अन्य विवाहों के जैसे 'आनंद कारज' को प्रमाणित और पंजीकरण का एक तटस्थ और व्यावहारिक मार्ग प्रदान करना चाहिए। अमनजोत सिंह चड्ढा ने अदालत में याचिका दाखिल की है। उन्होंने तर्क दिया है कि नियमों के अभाव में सिख दंपतियों को विवाह प्रमाण पत्र हासिल करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि रजिस्ट्रेशन सिस्टम का न होना आधा वादा पूरा करने जैसा है।
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आनंद विवाह अधिनियम क्या है?
देश में आनंद विवाद अधिनियम 1909 से अस्तित्व में है। सिख समुदाय के विवाह को 'आनंद कारज' के नाम से जाना जाता है। तीसरे गुरु अमरदासजी ने इसकी शुरुआत की थी। आनंद कारज का अर्थ 'सुखी जीवन की दिशा में कार्य करना' होता है। 'लावन' इस विवाह का मूल है। इसमें दूल्हा-दुल्हन श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की परिक्रमा करते हैं और कीर्तन गाते हैं।
आनंद विवाह अधिनियम भले ही 1909 में बना, लेकिन 2012 तक यह लागू नहीं हो सका। 2012 में केंद्र सरकार ने इसमें संशोधन किया। इसमें सिख विवाह को आनंद कारज के तौर पर पंजीकृत कराने की सुविधा मिल गई।संशोधन से पहले सिखों के विवाह हिंदू विवाद अधिनियम के तहत पंजीकृत होते थे। 2012 में कानून में संशोधन के बाद सभी राज्यों को इससे जुड़े नियम बनाने थे। मगर एक दशक तक अधिक समय बीत चुका है, लेकिन कई राज्यों ने नियम बनाने में शिथिलता दिखाई है।