किसी राज्य को कब माना जाता है 'बीमारू'? UP ने ऐसा क्या कि आ गया बाहर
हाल ही में जारी कैग की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश ने 37 हजार करोड़ रुपये का रेवेन्यू सरप्लस दर्ज किया है। इस लेख में जानेंगे कि इसके पीछे क्या वजह है?

प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: AI Generated
सोमवार को कैग की रिपोर्ट आई तो जाहिर हुआ कि यूपी ने 37 हजार करोड़ का रेवेन्यू सरप्लस दर्ज किया है। इसके बाद यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने घोषणा की कि यूपी अब बीमारू राज्य नहीं रहा। भारत में काफी सालों से 'बीमारू राज्य' का कॉन्सेप्ट चला आ रहा है। 1980 और 1990 के दशक में बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश को इस श्रेणी में रखा गया था। इसका आशय था कि इन राज्यों में गरीबी, कम विकास दर, कमजोर स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था, तथा वित्तीय घाटा इतना गहरा था कि ये देश के समग्र विकास में बाधा बन रहे थे। खासकर उत्तर प्रदेश (यूपी) को हमेशा पिछड़ेपन और अव्यवस्थित प्रशासनिक ढांचे का उदाहरण माना जाता रहा।
हालांकि हाल की घटनाएं इस धारणा को बदलने का संकेत दे रही हैं। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि वित्त वर्ष 2024-25 में उत्तर प्रदेश ने ₹37,000 करोड़ का रेवेन्यू सरप्लस दर्ज किया। यह न सिर्फ राज्य की आर्थिक प्रगति का सबूत है बल्कि गुजरात जैसे पारंपरिक औद्योगिक राज्य से भी दोगुना है। इस रिपोर्ट ने निवेशकों, नीति-निर्माताओं और आर्थिक विश्लेषकों को चौंका दिया है।
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इस उपलब्धि का अर्थ सिर्फ इतना नहीं कि यूपी की कमाई खर्च से ज़्यादा है, बल्कि यह भी कि राज्य का राजस्व आधार मजबूत हो रहा है और प्रशासनिक सुधार कारगर साबित हो रहे हैं। सवाल यह है कि इस बदलाव के पीछे कौन से कारक हैं, क्या यह उपलब्धि टिकाऊ है, और क्या यूपी अब वाकई 'बीमारू' की छवि से बाहर निकल चुका है? खबरगांव इस लेख में इसी बात की पड़ताल करेगा।
किन्हें कहते हैं बीमारू राज्य?
‘बीमारू राज्य’ शब्द का प्रयोग सबसे पहले 1980 के दशक में अर्थशास्त्री अशोक लाहिड़ी और बाद में प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अशोक गुप्ता व अरविंद पनगढ़िया आदि ने किया था। यह शब्द उन राज्यों के लिए इस्तेमाल हुआ था जिनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी और विकास दर राष्ट्रीय औसत से काफी कम थी।
बीमारू का आशय था – बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश। बाद में कभी-कभी छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तराखंड (जो इन्हीं राज्यों से बने) को भी इसमें शामिल किया गया।
इन राज्यों को ‘बीमारू’ कहने के पीछे मुख्य कारण थे:
- प्रति व्यक्ति आय बहुत कम होना।
- शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की खराब स्थिति।
- उच्च शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर।
- तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या और कम औद्योगिकीकरण।
- कृषि पर अत्यधिक निर्भरता और उत्पादन में अस्थिरता।
हालांकि, पिछले दो दशकों में इन राज्यों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है। यूपी और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों ने बुनियादी ढांचे, निवेश और उद्योगों में प्रगति की है। लेकिन फिर भी ‘बीमारू राज्य’ शब्द प्रायः उस दौर को दर्शाने के लिए उपयोग होता है, जब ये राज्य विकास की दौड़ में काफी पीछे थे।
रेवेन्यू सरप्लस का मतलब
रेवेन्यू सरप्लस का सीधा अर्थ है कि किसी राज्य की राजस्व आय (Revenue Receipts) उसकी राजस्व व्यय (Revenue Expenditure) से अधिक हो। यह स्थिति वित्तीय अनुशासन, मजबूत टैक्स कलेक्शन और संतुलित खर्च की नीति का संकेत मानी जाती है। राजस्व आय में राज्य सरकार द्वारा जुटाए गए कर जैसे GST, VAT, एक्साइज ड्यूटी, स्टाम्प ड्यूटी आदि आते हैं। इसके अलावा गैर-कर आय जैसे फीस, जुर्माने, माइनिंग रॉयल्टी और केंद्र सरकार से मिलने वाला अनुदान या हिस्सा भी इसमें शामिल होता है।
दूसरी ओर, राजस्व व्यय में सरकारी कर्मचारियों का वेतन, पेंशन, ब्याज भुगतान, सब्सिडी और रोज़मर्रा के संचालन खर्च आते हैं। यदि इन खर्चों के बाद भी राज्य की आय बची रहती है, तो उसे रेवेन्यू सरप्लस कहा जाता है।
यह सरप्लस किसी राज्य की वित्तीय सेहत का सकारात्मक संकेत है, क्योंकि इसके चलते राज्य के पास पूंजीगत खर्च यानी इंफ्रास्ट्रक्चर, शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास और नई योजनाओं में निवेश करने की अतिरिक्त क्षमता होती है। उदाहरण के तौर पर, उत्तर प्रदेश का हालिया लगभग ₹37,000 करोड़ का रेवेन्यू सरप्लस दर्शाता है कि उसकी आय संरचना और वित्तीय प्रबंधन पहले से कहीं बेहतर हो चुके हैं, जिससे राज्य को विकास परियोजनाओं पर अधिक खर्च करने का अवसर मिलेगा।
सरप्लस के पीछे कारण
उत्तर प्रदेश के राजस्व अधिशेष के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण जुड़े हुए हैं, जिनमें टैक्स कलेक्शन में वृद्धि, इंफ्रास्ट्रक्चर पर निवेश, नीतिगत सुधार और केंद्र सरकार से मिलने वाले ट्रांसफर प्रमुख हैं। सबसे पहले बात करें टैक्स कलेक्शन की तो वित्त वर्ष 2024-25 में यूपी ने औसतन हर महीने ₹16,000 करोड़ से अधिक का जीएसटी (GST) संग्रह किया, जिसने राज्य की आय को एक स्थिर आधार प्रदान किया। जीएसटी के साथ-साथ स्टाम्प ड्यूटी और प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन से भी राजस्व में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। रियल एस्टेट सेक्टर का विस्तार और बेहतर डिजिटल रजिस्ट्रेशन सिस्टम ने इस क्षेत्र को अधिक पारदर्शी और सक्षम बनाया। इसके अलावा वाहन पंजीकरण और एक्साइज ड्यूटी ने भी सरप्लस में अहम योगदान दिया। वाहन बिक्री में आई तेजी और शराब तथा पेट्रोल-डीजल पर टैक्स कलेक्शन की मजबूती ने राज्य की आय को और अधिक मजबूत किया।
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दूसरा बड़ा कारण इंफ्रास्ट्रक्चर पर निवेश है। यूपी ने हाल के वर्षों में पूर्वांचल, बुंदेलखंड और गंगा एक्सप्रेसवे जैसे बड़े प्रोजेक्ट्स शुरू किए, जिन्होंने निवेश आकर्षित करने और औद्योगिक गतिविधियों को गति देने में मदद की। साथ ही, जेवर एयरपोर्ट और डिफेंस कॉरिडोर जैसे मेगा प्रोजेक्ट्स ने भी उद्योगों और निवेशकों के लिए नए अवसर पैदा किए, जिससे आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ीं और टैक्स बेस विस्तृत हुआ।
तीसरा पहलू नीतिगत सुधारों का है। यूपी ने 'Ease of Doing Business' रैंकिंग में लगातार टॉप-3 में जगह बनाई है। ऑनलाइन परमिट और सिंगल-विंडो सिस्टम जैसी सुविधाओं ने निवेशकों का भरोसा बढ़ाया और प्रक्रियाओं को सरल बनाया। साथ ही, एमएसएमई सेक्टर को सब्सिडी और आसान लोन उपलब्ध कराने से छोटे और मध्यम उद्योगों का विस्तार हुआ, जिसने रोजगार और आय दोनों में वृद्धि की।
अंतिम और महत्वपूर्ण पहलू केंद्र सरकार से मिलने वाला सहयोग है। 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर यूपी को केंद्रीय करों में बड़ा हिस्सा मिला। इसके अलावा, पीएम आवास योजना, जल जीवन मिशन और पीएम गति शक्ति जैसी योजनाओं ने राज्य के राजस्व खर्च को संतुलित करने में मदद की।
इन सभी कारणों का संयुक्त प्रभाव यह रहा कि यूपी ने न केवल अपने खर्चों को संभाला, बल्कि अधिशेष अर्जित कर विकास परियोजनाओं और सामाजिक योजनाओं पर अतिरिक्त निवेश करने की क्षमता भी हासिल की।
किन राज्यों में कितना सरप्लस
उत्तर प्रदेश के बाद जिन राज्यों का सबसे अधिक रेवेन्यू सरप्लस दर्ज हुआ है, उनमें गुजरात (₹19,865 करोड़), ओडिशा (₹19,456 करोड़), झारखंड (₹13,564 करोड़), कर्नाटक (₹13,496 करोड़), छत्तीसगढ़ (₹8,592 करोड़), तेलंगाना (₹5,944 करोड़), उत्तराखंड (₹5,310 करोड़), मध्य प्रदेश (₹4,091 करोड़) और गोवा (₹2,399 करोड़) शामिल हैं। पूर्वोत्तर के राज्य अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिज़ोरम, नागालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम भी सरप्लस वाले राज्यों में शामिल हैं। कुल 16 अधिशेष राज्यों में से कम से कम 10 पर बीजेपी का शासन है।
वहीं कैग की रिपोर्ट में बताया गया कि 2022-23 में 12 राज्यों को राजस्व घाटे का सामना करना पड़ा। इनमें आंध्र प्रदेश (-₹43,488 करोड़), तमिलनाडु (-₹36,215 करोड़), राजस्थान (-₹31,491 करोड़), पश्चिम बंगाल (-₹27,295 करोड़), पंजाब (-₹26,045 करोड़), हरियाणा (-₹17,212 करोड़), असम (-₹12,072 करोड़), बिहार (-₹11,288 करोड़), हिमाचल प्रदेश (-₹6,336 करोड़), केरल (-₹9,226 करोड़), महाराष्ट्र (-₹1,936 करोड़) और मेघालय (-₹44 करोड़) शामिल हैं।
क्षेत्रीय असमानता भी
एक और अहम कारक है यूपी की विशाल जनसंख्या, जो उसके लिए एक बड़ा टैक्स बेस तैयार करती है। बड़ी जनसंख्या का मतलब है अधिक उपभोग, अधिक लेनदेन और परिणामस्वरूप जीएसटी और अन्य करों से ज्यादा राजस्व। यह जनसंख्या लाभांश सही नीतियों और निवेश के जरिये राजस्व वृद्धि का आधार बन गया है।
हालांकि, यह सरप्लस क्षेत्रीय असमानता को भी उजागर करता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश औद्योगिक और शहरीकरण के मामले में आगे है, जबकि पूर्वांचल और बुंदेलखंड जैसे क्षेत्र अभी भी पिछड़े हैं। यह अंतर दिखाता है कि राज्य के पास विकास की बड़ी संभावनाएं हैं, लेकिन संतुलित वृद्धि सुनिश्चित करना अभी भी एक चुनौती है।
क्या यह लंबे समय तक टिकेगा?
यह सवाल बेहद अहम है कि उत्तर प्रदेश का यह रेवेन्यू सरप्लस लंबे समय तक टिकाऊ रहेगा या फिर यह सिर्फ अस्थायी उपलब्धि है। सकारात्मक पक्ष देखें तो टैक्स कलेक्शन में लगातार वृद्धि हो रही है, जिससे राज्य की आय संरचना और मजबूत हो रही है। साथ ही, बड़े पैमाने पर चल रहे इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स निवेशकों को आकर्षित कर रहे हैं और औद्योगिक गतिविधियों में तेजी ला रहे हैं। इससे भविष्य में राजस्व स्रोत और विविध तथा स्थिर होने की संभावना है।
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लेकिन इसके साथ ही कुछ गंभीर चुनौतियाँ भी हैं। राज्य पर कुल कर्ज़ का बोझ अभी भी ₹7 लाख करोड़ से अधिक है, जो वित्तीय लचीलापन कम करता है। शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च अभी भी राष्ट्रीय औसत से कम है, जिससे मानव पूंजी के विकास में बाधा आती है। इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी और बेरोज़गारी जैसी समस्याएँ अब भी व्यापक स्तर पर मौजूद हैं। यदि इन क्षेत्रों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया तो अधिशेष से मिलने वाला लाभ लंबे समय तक बरकरार नहीं रह पाएगा।
कुल मिलाकर, यूपी का अधिशेष टिकाऊ बन सकता है, बशर्ते राज्य अपनी आय के साथ-साथ सामाजिक और मानवीय विकास पर भी पर्याप्त निवेश करे और ऋण प्रबंधन को संतुलित रखे।
हालांकि यह सरप्लस स्थायी रहेगा या नहीं, यह इस पर निर्भर करेगा कि राज्य शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और ग्रामीण विकास पर कितना ध्यान देता है। अगर वित्तीय अनुशासन और निवेशक-अनुकूल नीतियां जारी रहीं, तो आने वाले दशक में यूपी न केवल 'बीमारू' की छवि से पूरी तरह बाहर निकल जाएगा, बल्कि भारत की आर्थिक वृद्धि में सबसे बड़ा योगदानकर्ता भी बन सकता है।
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