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28 साल बाद घर वापसी, लेबनान से क्यों लौटेंगे भारत के 900 सैनिक?

भारत के सैनिक साल 1998 से लेबनान में तैनात हैं। अब अगले साल यानी 31 दिसंबर 2026 से लगभग 28 साल बाद इन सैनिकों की वतन वापसी होगी। मौजूदा समय में 7 मद्रास रेजिमेंट की टुकड़ी तैनात है।

India contribution to peace missions.

शांति मिशन में भारत का योगदान। (Photo Credit: UN)

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लगभग 28 साल बाद भारत के 900 जवान लेबनान से अपने वतन लौटेंगे। इजरायल और अमेरिका के आगे संयुक्त राष्ट्र संघ की एक नहीं चली। दबाव में आने के बाद यूएन ने दिसंबर 2026 से इजरायल-लेबनान सीमा पर गश्त करने वाले सैनकों को वापस बुलाने का फैसला किया है। रविवार से लेबनान में संयुक्त राष्ट्र के अंतरिम बल (यूनिफिल) का कार्यकाल खत्म हो रहा था। लेकिन उससे पहले गुरुवार को वोटिंग हुई। इसमें यूएन सदस्यों ने सर्वसम्मति से यूनिफिल के कार्यकाल को 16 महीने और बढ़ाने का फैसला किया।  

 

संयुक्त राष्ट्र ने 1978 में इजरायल और लेबनान सीमा पर शांति सैनिकों को तैनात किया था। इस शांति मिशन का उद्देश्य लेबनान से इजराइली सैनिकों की वापसी की निगरानी करना था। अब लगभग 47 साल बाद यूएन का यह शांति मिशन खत्म हो जाएगा। पिछले 27 साल से भारतीय सेना भी इस मिशन में अहम योगदान दे रही है। प्रस्ताव के मुताबिक दिसंबर 2026 से यूएन सुरक्षित और व्यवस्थित तरीके से अपने 10,800 शांति सैनिकों को निकालेगा।

 

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शांति मिशन में भारत का कितना योगदान?

भारत संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशनों में योगदान देने वाला चौथा सबसे बड़ा देश है। 1948 से अब तक भारत के दो लाख से अधिक सैनिक संयुक्त राष्ट्र के 49 शांति मिशनों में अपना योगदान दे चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक वर्तमान में भारत के 6,400 से अधिक सैनिक कांगो, सोमालिया, हैती, लेबनान, साइप्रस, दक्षिण सूडान, अबेई, मध्य पूर्व और पश्चिमी सहारा में तैनात हैं।

लेबनान में कितने भारतीय सैनिक?

लेबनान की राजधानी बेरुत में स्थित भारतीय दूतावास की वेबसाइट के मुताबिक भारतीय सेना साल 1998 से यूनिफिल का हिस्सा है। पिछले 27 साल से लेबनान-इजरायल सीमा पर भारतीय जवान डटे हैं। मई 2024 से लेबनान में 7 मद्रास रेजिमेंट की टुकड़ी तैनात है। यहां भारत के लगभग 900 जवान हैं। यह यूनिफिल की सबसे बड़ी टुकड़ियों में से एक है। भारतीय सेना और लेबनान के बीच रिश्ता और भी पुराना है। पहले और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बलिदान देने वाले भारत के 400 से अधिक सैनिक आज भी लेबनान के विभिन्न कब्रिस्तानों में दफन हैं।

164 भारतीय सैनिक दे चुके सर्वोच्च बलिदान

भारत ने साल 2007 में शांति मिशन के तहत लाइबेरिया में महिला सैनिकों को तैनात किया था। यह संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशन में किसी देश द्वारा महिला टुकड़ी तैनात करने का पहला मामला था। लाइबेरिया में भारत की महिला सैनिकों ने इबोला संकट के दौरान न केवल सेवा की, बल्कि दुनिया भर की महिलाओं के लिए एक मिसाल भी कायम की। अभी तक 164 भारतीय सैनिक यूएन शांति मिशन में सेवा करते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान दे चुके हैं।

संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव में क्या?

नए प्रस्ताव के मुताबिक लेबनान से लौटते वक्त शांति सेना दक्षिण सीमा पर सुरक्षा का जिम्मा लेबनान की सेना को सौंपेगी। इसमें इजरायल से अपनी सेना को हटाने की अपील भी की गई है। बता दें कि अभी लेबनान की पांच जगहों पर इजरायल का कब्जा है। पिछले साल हिजबुल्लाह के साथ लड़ाई में इजरायल ने यूनिफिल के ठिकानों पर भी हमला किया था। इसमें कई शांति सैनिक घायल भी हुए थे।

शांति मिशन से अमेरिका और इजरायल क्यों खफा? 

  • अमेरिका और इजरायल ने यूएन पर महीनों दबाव बनाया। इसके बाद यह फैसला लेना पड़ा। अमेरिका ने पहले 6 महीने में शांति मिशन को खत्म करने की मांग की। बाद में एक साल तक अंतिम विस्तार की बात कही। सत्ता में आने के बाद ट्रंप प्रशासन ने अधिक दबाव बनाना शुरू किया। शांति मिशन के बजट में कटौती की। 

 

  • ट्रंप प्रशासन का मानना है कि यह शांति मिशन सिर्फ पैसे की बर्बादी है। इसके पीछे तर्क दिया कि शांति मिशन हिजबुल्लाह के प्रभाव को खत्म नहीं कर पाया और लेबनान की सेना को पूर्ण सुरक्षा नियंत्रण सौंपने के लक्ष्य में भी देरी हुई।

 

  • उधर, इजरायल का भी मानना है कि साल 2006 के युद्ध खत्म होने के बाद से यूनिफिल दक्षिणी लेबनान में हिजबुल्लाह को हथियार विहीन बनाने में विफल रहा।

 

  • अमेरिका और इजरायल के आरोप पर संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि यूनिफिल सिर्फ एक निगरानी फोर्स है। यह आत्मरक्षा के अलावा कोई बल प्रयोग नहीं कर सकता। अगर कोई गड़बड़ी होती है तो शांति सैनिक मामले की जानकारी लेबनान की सेना को देते हैं। 

लेबनान ने क्या कहा?

संयुक्त राष्ट्र के ताजा प्रस्ताव पर लेबनान के प्रधानमंत्री नवाफ सलाम ने प्रतिक्रिया दी। उन्होंने प्रस्ताव की तारीफ की और कहा कि यह इजरायल से उन पांच स्थानों से अपने सैनिकों को वापस बुलाने की मांग दोहराता हैं, जहां अभी तक उसने कब्जा कर रखा है। यह प्रस्ताव अपने पूरे क्षेत्र में लेबनान के अधिकार की आवश्यकता पर बल देता है। 

 

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फ्रांस और इटली को आपत्ति क्यों? 

इटली और फ्रांस ने लेबनान से शांति सैनिकों की वापसी पर आपत्ति जताई है। दोनों देशों का मानना है कि अगर लेबनान सेना सीमावर्ती क्षेत्र को पूरी तरह से सुरक्षित नहीं कर पाई और उससे पहले शांति सैनिकों बुला लिया गया तो वहां एक खालीपन पैदा होगा। इसका फायदा हिजबुल्लाह आसानी से उठा सकता है। इस बीच फ्रांस के अलावा आयरलैंड, ऑस्ट्रिया और पोलैंड शांति मिशन को और बढ़ाने की दिशा में बातचीत करने में जुटे हैं।


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