4 साल से शांत चल रहे नवजोत सिंह सिद्धू आखिर क्यों उखड़ रहे हैं?
राजनीति से दूर दिख रहे नवजोत सिंह सिद्धू अचानक से चर्चा में आ गए हैं और इस बार वजह उनकी पत्नी नवजोत कौर बनी हैं। आइए समझते हैं कि सिद्धू आखिर चाहते क्या हैं।

नवजोत सिंह सिद्धू, Photo Credit: Sora AI
क्रिकेट, कॉमेंटेटर, लाफ्टर शो के जज और सांसद रहे नवजोत सिंह सिद्धू एक बार फिर चर्चा में हैं। कपिल शर्मा के शो के नए सीजन में तो वह दिख ही रहे हैं, उनकी तमन्ना पंजाब के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर दिखने की है। इस बार उनके किसी अन्य समर्थक ने नहीं उनकी पत्नी और पूर्व मंत्री नवजोत कौर ने यह ख्वाहिश जाहिर कर दी है। नवजोत कौर ने ख्वाहिश जाहिर करने के लिए जिन शब्दों का इस्तेमाल किया, उन्हीं शब्दों में कुछ शब्द बाण छिपे थे जिनका मतलब यह था कि उनके पास 500 करोड़ रुपये नहीं हैं कि वह सिद्धू को सीएम कैंडिडेट घोषित करवा लें। ऐसे बयानों का नतीजा यह हुआ कि नवजोत कौर को कांग्रेस से निलंबित कर दिया गया और अब नवजोत सिंह सिद्धू ने कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी से मिलने का समय मांगा है।
कहा जा रहा है कि नवजोत सिंह सिद्धू प्रियंका गांधी से मिलकर अपनी बात रखना चाहते हैं। सिद्धू और उनकी पत्नी के निशाने पर पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वड़िग और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुखजिंदर सिंह रंधावा है। 'डबल नवजोत' की ख्वाहिश है कि प्रदेश अध्यक्ष उनकी पसंद का हो और सिद्धू सीएम कैंडिडेट बनाए जाएं। आपको याद दिला दें कि 2022 में भी सिद्धू ही वह शख्स थे जिनके उखड़ने का नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस के ही पांव पंजाब से उखड़ गए और आम आदमी पार्टी (AAP) ने सरकार बना ली। आशंका जताई जा रही है कि अगर सिद्धू को कांग्रेस नहीं संभालती है तो वह एक बार फिर से अपनी पुरानी पार्टी यानी भारतीय जनता पार्टी (BJP) का रुख कर सकते हैं।
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अगर वह ऐसा करते भी हैं तो यह बहुत अप्रत्याशित नहीं माना जाएगा। इसकी बड़ी वजह है कि यही सिद्धू कभी BJP को अपनी मां कहते थे। यही सिद्धू कभी राहुल गांधी और सोनिया गांधी का जमकर मजाक उड़ाते थे और एक बार सार्वजनिक तौर पर उन्हें सोनिया गांधी के पैर छूते भी देखा गया। आइए जानते हैं सिद्धू की ऐसी ही गतिविधियों के बारे में जो इशारा करती हैं कि सिद्धू फिर से कभी भी उखड़ सकते हैं।
बीजेपी में सिद्धू का सफर
मशहूर क्रिकेटर रहे नवजोत सिंह सिद्धू 2004 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हुए थे। 2004 में अमृतसर लोकसभा सीट से चुनाव लड़े और सांसद बने। हालांकि, 2007 में रोडरेज केस में दोषी पाए जाने के बाद सिद्धू ने इस्तीफा दे दिया। उपचुनाव हुए तब फिर से सिद्धू ही चुनाव लड़े और जीत गए। 2009 में भी सिद्धू ही सांसद बने। हालांकि, 2014 में बात बिगड़ गई। बीजेपी ने सिद्धू की जगह अरुण जेटली को टिकट दे दिया। इसी बात से सिद्धू नाराज हो गए और अरुण जेटली के लिए प्रचार तक नहीं करने गए।
कांग्रेस ने उनके अरुण जेटली के मुकाबले कैप्टन अमरिंदर सिंह को टिकट दिया था। इस हैवीवेट मुकाबले में अरुण जेटली लगभग एक लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से चुनाव हार गए। इसके बावजूद बीजेपी ने सिद्धू को समझाने की कोशिश की। सिद्धू को मनाने के लिए 2016 में उन्हें राज्यसभा के लिए नॉमिनेट किया गया। हालांकि, सिद्धू यहां भी नहीं माने और जुलाई 2016 में राज्यसभा से भी इस्तीफा दे दिया। इसी के बाद से चर्चा थी कि वह AAP या कांग्रेस में जा सकते हैं।
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बीजेपी छोड़ने और कांग्रेस में शामिल होने से पहले सिद्धू और परगट सिंह ने मिलकर आवाज-ए पंजाब की स्थापनी की थी। उस समय चर्चा थी कि सिद्धू आम आदमी पार्टी में जा सकते हैं। हालांकि, सिद्धू की शर्त वहां भी यही थी कि उन्हें सीएम कैंडिडेट घोषित किया जाए। कहा जाता है कि AAP इस बात पर राजी नहीं थी।
कांग्रेस में सिद्धू का सफर
कांग्रेस में एंट्री और मंत्री पद
बीजेपी से नाराजगी के बाद तमाम विकल्पों को तलाशने का समय लेने के बाद साल 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जनवरी के महीने में नवजोत सिंह सिद्धू कांग्रेस में शामिल हो गए थे। कांग्रेस ने नवजोत सिंह सिद्धू को उसी अमृतसर ईस्ट सीट से टिकट दे दिया जहां से उनकी पत्नी नवजौत कौर सिद्धू बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीतती आ रही थीं। सिद्धू ने 40 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से जीत हासिल की। सरकार बनी और कैप्टन अमरिंदर सिंह एक बार फिर से पंजाब के मुख्यमंत्री बने।
पंजाब में सरकार बनी तो सिद्धू को मंत्री बनाया गया। अब सिद्धू तो सिद्धू रहे। 2 ही साल में उन्होंने पंजाब सरकार में ही 'खड़काने' वाला काम शुरू कर दिया। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान बठिंडा में प्रचार करने गए सिद्धू ने अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री यानी अमरदिंर सिंह पर आरोप लगाए दिए कि उनकी बादल परिवार से नजदीकियां हैं और वह बादल परिवार को बचाते रहते हैं।
कैप्टन से अदावत और मंत्रिमंडल से इस्तीफा
कैप्टन अमरिंदर और सिद्धू के बीच यहां से तनातनी शुरू हो गई। कैप्टन ने सिद्धू का मंत्रालय बदल दिया। सिद्धू पहले स्थानीय निकाय मंत्री थे लेकिन कैप्टन ने उन्हें ऊर्जा विभाग दे दिया। सिद्धू को भी गुस्सा आया और उन्होंने मंत्री पद से ही इस्तीफा दे दिया। 2017 में मंत्री बने सिद्धू 2019 में मंत्री पद छोड़ चुके थे और उन्होंने राहुल गांधी को एक चिट्ठी लिखी। रोचक बात है कि सिद्धू ने मंत्री पद से इस्तीफे के लिए जो चिट्ठी लिखी थी वह मुख्यमंत्री के बजाय तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए लिखी गई। हालांकि, लोकसभा चुनाव के बाद ही राहुल गांधी भी कांग्रेस अध्यक्ष के पद से इस्तीफे की पेशकश कर चुके थे।
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कहा जाता है कि इस वाकये के बाद सिद्धू कई बार दिल्ली गई और राहुल गांधी के अलावा प्रियंका गांधी के भी करीबियों में शामिल हो गए। ऐसी ही एक मुलाकात के बाद सिद्धू ने एक तस्वीर पोस्ट की। इस तस्वीर में सिद्धू के साथ राहुल और प्रियंका के अलावा अहमद पटेल भी थे जो उस वक्त कांग्रेस के सबसे बड़े क्राइसिस मैनेजर थे। अहमद पटेल अब इस दुनिया में नहीं हैं और शायद यह कमी सिद्धू भी महसूस कर पा रहे हैं।
सिद्धू की ताजपोशी और बदल गए CM
खैर, कांग्रेस की सरकार चलती रही और सिद्धू अपनी गोटियां सेट करते रहे। हाईकमान से मिले आश्वासन के आधार पर सिद्धू ने खुद को मजबूत करना शुरू किया। मंत्रालय छोड़कर संगठन में उतरे सिद्धू की गोटियां सेट हुईं 8 जुलाई 2021 को और उस समय पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष रहे सुनील जाखड़ को हटाकर नवजोत सिद्धू को बिहार कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया। जाहिर बात है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह को यह स्वीकार्य नहीं था।
पंजाब में राजनीतिक सरगर्मियां तेज थीं और गुटबाजी चरम पर थी। कैप्टन अमरिंदर प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों तरीके से नाराजगी जता चुके थे। इसी बीच पंजाब के कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत ने 18 सितंबर 2021 को ट्वीट किया कि 19 सितंबर 2021 को कांग्रेस के विधायक दल की बैठक बुलाई गई है। कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए अब पानी सिर से ऊपर चला गया था। उन्होंने तत्काल मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। सिद्धू को लगा कि अब उनके दोनों हाथ में लड्डू आ गए हैं। कांग्रेस ने कैप्टन की जगह सिद्धू नहीं चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया।
सिद्धू को लगा था कि चन्नी सिर्फ डमी सीएम रहेंगे और अब 'गुरु की सरकार' चलेगी। हालांकि, ऐसा नहीं हुआ। 20 सितंबर को चरणजीत सिंह चन्नी ने सीएम पद की शपथ ली। सिद्धू एक बार फिर उखड़े और 28 सितंबर को पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि, हाईकमान के हस्तक्षेप के बाद उन्होंने इस्तीफा वापस ले लिया। 2022 का चुनाव सिद्धू और चरणजीत सिंह चन्नी की अगुवाई में लड़ा गया। पंजाब की सरकार चली रही कांग्रेस 117 में से सिर्फ 18 सीटें जीत पाई। सीएम चरणजीत सिंह चन्नी और सिद्धू अपनी सीट से भी चुनाव हार गए और आम आदमी पार्टी सत्ता में आ गई।
सिद्धू की रुखसती और कोल्ड पीरियड की शुरुआत
चुनाव में हार के चलते नवजोत सिंह सिद्धू से इस्तीफा ले लिया गया। उनकी जगह मिली युवा नेता नेता अमरिंदर सिंह राजा वड़िग को। राजा वड़िंग ने काम संभाला और कुछ ही महीने में 34 साल पुराने रोडरेज के मामले में सिद्धू को 1 साल की सजा सुना दी गई। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के चलते सिद्धू जेल गए और राजनीति से उनकी दूरी बन गई। 1 अप्रैल 2023 को जब सिद्धू जेल से बाहर आए तब तक पंजाब के दरियाओं में काफी पानी बह चुका था। कांग्रेस छोड़कर नई पार्टी बनाने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह ने साल 2022 के सितंबर महीने में अपनी पार्टी का विलय बीजेपी में कर दिया था और खुद भी बीजेपी में शामिल हो गए थे। चरणजीत सिंह चन्नी भी बहुत कम सक्रिय थे।
जेल से निकलकर सिद्धू राजनीति में सक्रिय होते, इससे पहले उन्हें पता चला कि उनकी पत्नी नवजौत कौर को कैंसर हो गया है। जेल से निकले सिद्धू ने अपना पूरा समय पत्नी की देखभाल में लगाया और राजनीति से बिल्कुल दूर रहे। 2024 का लोकसभा चुनाव आया तो कांग्रेस चाहती थी कि सिद्धू पटियाला लोकसभा सीट से कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी परनीत कौर के खिलाफ चुनाव लड़ें। हालांकि, सिद्धू ने दोटूक कह दिया कि वह लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे।
लोकसभा चुनाव में सिद्धू के न रहने का कांग्रेस को फायदा ही मिला। पंजाब की कुल 13 में से 7 सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की। सुखजिंदर सिंह रंधावा, अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग और चरणजीत सिंह चन्नी जैसे नेता लोकसभा का चुनाव लड़े और जीतकर सांसद बन गए। राज्य का स्पेस फिर से खाली हुआ लेकिन सिद्धू फिर भी सक्रिय नहीं हुए। अब पंजाब के चुनाव में जब लगभग एक साल से ज्यादा का ही समय बाकी है तब सिद्धू की पत्नी ने बैटिंग शुरू कर दी है।
ठीक वैसी ही घटनाएं हो रही हैं जैसी 2017 में हुई थीं लेकिन इस बार निशाने पर कैप्टन अमरदिंर की जगह पर अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग और सुखजिंदर सिंह रंधावा है। इन दोनों को निशाने पर लेने की वजह है कि दोनों ही बड़े नेताओं में गिने जाते हैं। सुखजिंदर सिंह रंधावा संगठन पर पकड़ रखते हैं तो राजा वड़िंग उन नेताओं में हैं जिनमें पंजाब कांग्रेस अपना भविष्य देखती है। ऐसे में जाहिर है कि सीएम पद की लालसा लिए घूम रहे नवजोत सिंह सिद्धू के लिए वही निशाना हैं।
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