विष्णु जी ने पृथ्वी पर किन रूपो में लिया था अवतार, क्या था उद्देश्य?
धर्म-कर्म
• NEW DELHI 04 Sept 2025, (अपडेटेड 05 Sept 2025, 6:17 AM IST)
आमतौर पर लोग भगवान विष्णु के दशावतार की चर्चा करते हैं लेकिन भागवत पुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों में उनके कुल 24 अवतारों का उल्लेख किया गया है।

प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo Credit: AI
धर्मग्रंथों के अनुसार जब-जब धरती पर अधर्म बढ़ा और धर्म संकट में पड़ा, तब-तब भगवान विष्णु ने अलग-अलग रूपों में अवतार लेकर संसार का संतुलन बनाया है। आमतौर पर लोग भगवान विष्णु के दशावतार की चर्चा करते हैं लेकिन भागवत पुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों में उनके कुल 24 अवतारों का उल्लेख किया गया है। इन अवतारों के पीछे का उद्देश्य मुख्य रूप से धर्म की रक्षा, अधर्म का नाश और लोककल्याण को बताया गया है।
पुराणों की मान्यता के अनुसार,सृष्टि की शुरुआत में भगवान ने सनकादि मुनियों के रूप में अवतार लेकर ध्यान और मोक्षमार्ग का महत्व बताया था। उसके बाद वराह रूप धारण करके देवी पृथ्वी को बचाया। नारद के रूप में भक्ति का प्रचार किया, कपिल मुनि बनकर सांख्य दर्शन दिया और दत्तात्रेय रूप में योग और अध्यात्म की शिक्षा दी। इसी तरह से धर्म को बचाने और पृथ्वी का संतुलन बनाए रखने के लिए भगवान विष्णु ने 23 बार अवतार लिया है।
भगवान विष्णु के 24 अवतार और उनके उद्देश्य
सनकादि मुनि
सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मा की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने सनक, सनंदन, सनातन और सनतकुमार नाम के चार कुमारों के रूप में अवतार लिया। ये चारों प्रारंभ से ही मोक्षमार्ग परायण, ध्यानमग्न और नित्यसिद्ध थे। इन्हें भगवान विष्णु का प्रथम अवतार माना जाता है।
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वराह अवतार
दैत्य हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को समुद्र में छिपा दिया था। तब विष्णु वराह रूप में प्रकट हुए और पृथ्वी को अपने दांतों पर उठाकर सुरक्षित किया। युद्ध में उन्होंने हिरण्याक्ष का वध किया और पृथ्वी को जल पर स्थापित किया।
नारद अवतार
नारद मुनि भी विष्णु के ही अवतार माने जाते हैं। उन्होंने लोककल्याण और भक्ति मार्ग के प्रचार के लिए अवतार लिया। गीता में स्वयं कृष्ण ने उन्हें देवर्षियों में अपना रूप कहा है।
नर-नारायण
धर्म की स्थापना और तपस्या का आदर्श स्थापित करने के लिए विष्णु ने नर और नारायण के रूप में अवतार लिए।
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कपिल मुनि
कर्दम ऋषि और देवहूति के पुत्र रूप में जन्म लेकर कपिल मुनि ने सांख्य दर्शन का प्रचार किया। इन्हें भागवत धर्म का प्रमुख आचार्य माना जाता है।
दत्तात्रेय
अत्रि ऋषि और अनुसूइया के यहां त्रिदेव के अंश से जन्मे। विष्णु जी के अंश से दत्तात्रेय प्रकट हुए और योग, अध्यात्म का संदेश दिए।
यज्ञ
स्वायम्भुव मन्वंतर में आकूति और ऋषि रुचि के घर जन्मे। इन्हें यज्ञों और लोककल्याण का प्रतीक माना जाता है।
ऋषभदेव
महाराज नाभि और मेरुदेवी के पुत्र रूप में जन्मे। उन्होंने संयम और वैराग्य का महत्व बताया। जैन परंपरा में इन्हें प्रथम तीर्थंकर भी माना जाता है।
पृथु
राजा वेन की भुजा से उत्पन्न हुए। उन्होंने धरती को उर्वर बनाकर कृषि का प्रारंभ किए।
मत्स्य अवतार
राजा सत्यव्रत को प्रलय से बचाने और वेदों की रक्षा के लिए मछली का रूप लिए।
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कूर्म अवतार
समुद्र मंथन के समय मंदराचल पर्वत को आधार देने के लिए कछुए का रूप लिए।
धन्वंतरि
समुद्र मंथन से अमृत कलश लेकर प्रकट हुए और आयुर्वेद का ज्ञान दिए।
मोहिनी
असुरों को छलकर अमृत देवताओं को पिलाने के लिए मोहिनी रूप धारण किए।
नरसिंह
हिरण्यकशिपु के वध और भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए आधा सिंह-आधा मानव रूप धारण करके अवतार लिए।
वामन
बलि के यज्ञ में तीन पग भूमि मांगकर समस्त लोकों को नाप लिए और असुरराज का अहंकार तोड़ा।
हयग्रीव
मधु-कैटभ से वेदों की रक्षा के लिए घोड़े-मुख वाले रूप में प्रकट हुए।
गजेंद्र मोक्ष (श्रीहरि अवतार)
गजेंद्र को मगरमच्छ से मुक्त करने और भक्ति का महत्व दिखाने के लिए प्रकट हुए।
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परशुराम
अत्याचारी क्षत्रियों का नाश कर धर्म की पुनर्स्थापना की।
वेदव्यास
वेदों का विभाजन और महाभारत की रचना कर ज्ञान का प्रसार किए।
हंस अवतार
सनकादि मुनियों के प्रश्नों का समाधान करने के लिए हंस रूप धारण किए।
राम
त्रेतायुग में रावण का वध कर धर्म और मर्यादा की स्थापना की।
कृष्ण
द्वापरयुग में जन्म लेकर कंस का वध किया, गीता का उपदेश दिया और धर्म की रक्षा की।
बुद्ध
दैत्य और असुरों को वैदिक आचार से विमुख कर देवताओं को विजय दिलाने हेतु अहिंसा और करुणा का उपदेश दिए।
कल्कि
पुराणों के अनुसार, कलियुग के अंत में जन्म लेंगे। इस अवतार में पापियों का विनाश कर सत्ययुग की स्थापना करेंगे।
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