भगवान शिव को सृष्टि के संहारक के रूप में पूजा जाता है लेकिन वे केवल विनाश के देवता ही नहीं बल्कि सृष्टि, पालन और संहार तीनों के अधिपति हैं। वे समय से परे हैं और समय के भी स्वामी हैं, इसलिए उन्हें 'महाकाल' कहा जाता है। महाकाल का अर्थ है – ‘महान काल’ यानी वह जो स्वयं समय से भी परे हो, जो जन्म और मृत्यु की सीमाओं में न बंधा हो। शिव का यह स्वरूप न केवल उनकी शक्ति को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि वे ही ब्रह्मांड के वास्तविक शासक हैं।
भगवान महाकाल का प्राकट्य
भगवान महाकाल का उल्लेख शिव पुराण और स्कंद पुराण में मिलता है। पुराणों में एक कथा मिलती है कि उज्जैन में एक बार दुष्ट असुर 'दूषण' का अत्याचार बढ़ गया था। उसने वहां के लोगों को धर्म से विमुख करने की चेष्टा की और ऋषि-मुनियों पर अत्याचार किया। भक्तों की पीड़ा को देखकर भगवान शिव ने क्रोध में अपने महाकाल स्वरूप को धारण किया। यह स्वरूप इतना प्रचंड था कि दुष्ट दूषण और उसके साथी महादेव के इस विकराल रूप को देखकर भयभीत हो गए। भगवान शिव ने अपने तांडव और तीसरे नेत्र की अग्नि से दूषण का अंत कर दिया।
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जब उज्जैन के भक्तों ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे सदैव उनकी रक्षा करें, तब शिव ने महाकाल के रूप में वहां स्थित रहने का वरदान दिया। तभी से उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर स्थापित हुआ, जो बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और जहां देवधिदेव'महाकाल' के रूप में विराजमान हैं।
समय के रक्षक क्यों माने जाते हैं महाकाल?
शिव को महाकाल इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे काल यानी समय को भी नियंत्रित कर सकते हैं। वे समय के आरंभ और अंत, दोनों के साक्षी हैं। मृत्यु के देवता यमराज भी शिव के आदेशों का पालन करते हैं। यह माना जाता है कि जो भी भक्त महाकाल की शरण में आता है, उसे समय की बाधाएं प्रभावित नहीं कर सकतीं।
शास्त्रों में बताया गया है कि महादेव का यह रूप इस बात का भी प्रतीक है कि समय के चक्र में हर चीज नश्वर है- चाहे वह सुख हो या दुख, जन्म हो या मृत्यु। शिव हमें यह संदेश देते हैं कि समय के प्रवाह में हमें धैर्य रखना चाहिए, क्योंकि हर कठिनाई अपने समय के साथ समाप्त हो जाती है।
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महाकाल की उपासना का महत्व
धर्म-ग्रंथों में यह बताया गया है कि भगवान महाकाल की उपासना करने से भक्तों को समय की अनिश्चितताओं से मुक्ति मिलती है। विशेष रूप से कालसर्प दोष, पितृ दोष और अकाल मृत्यु के भय से बचने के लिए महाकाल की पूजा की जाती है। उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर मंदिर में भक्त महाकाल की विशेष 'भस्म आरती' भी इसका प्रतीक है कि मृत्यु और जीवन दोनों भगवान शिव के अधीन हैं।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।