मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में स्थित भोजपुर शिव मंदिर अनोखे शिवलिंग की वजह से पूरे देश में प्रसिद्ध है। यह मंदिर न सिर्फ धार्मिक आस्था का बड़ा केंद्र है, बल्कि अपने रहस्यमय इतिहास, अद्भुत स्थापत्य कला और अधूरे निर्माण की वजह से भी आकर्षण का विषय बना रहता है। हाल के समय में सोशल मीडिया, धार्मिक पर्यटन और ऐतिहासिक धरोहरों पर बढ़ती रुचि के चलते भोजपुर शिव मंदिर को लेकर देश-भर में जिज्ञासा बढ़ी है। सावन माह, महाशिवरात्रि और अन्य शिव पर्वों पर यहां लाखों श्रद्धालु भगवान भोलेनाथ के दर्शन के लिए पहुंचते हैं, जिससे यह स्थल धार्मिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र बन जाता है।
भोजपुर शिव मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यहां स्थापित विश्व के सबसे विशाल शिवलिंगों में से एक है, जिसे देखने के लिए न केवल भक्त बल्कि इतिहासकार और वास्तुकला के विशेषज्ञ भी आते हैं। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में परमार वंश के महान शासक राजा भोज ने करवाना शुरू किया था लेकिन किसी वजह से यह मंदिर अधूरा रह गया। मंदिर के आसपास आज भी बिखरे हुए पत्थर, अधूरी नक्काशी और निर्माण के अवशेष उस दौर की उन्नत इंजीनियरिंग और शिल्पकला की कहानी बयां करते हैं।
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भोजपुर शिव मंदिर की विशेषता
भोजपुर शिव मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यहां स्थापित विशालकाय शिवलिंग है। यह शिवलिंग लगभग 18 फीट ऊंचा और 7.5 फीट व्यास का है, जिसे एक ही चट्टान से तराशा गया है। इसे भारत के सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक माना जाता है। मंदिर का गर्भगृह चौकोर है और इसकी छत बिना किसी खंभे के बनाई गई थी, जो उस समय की अद्भुत वास्तुकला को दर्शाती है। मंदिर का निर्माण अधूरा रह गया, फिर भी इसकी भव्यता आज भी लोगों को आकर्षित करती है। आसपास बिखरे विशाल पत्थर, अधूरे स्तंभ और शिलाखंड उस युग की उन्नत निर्माण तकनीक की गवाही देते हैं।
भोजपुर शिव मंदिर से जुड़ी मान्यता
मान्यता है कि इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग स्वयंभू है और यहां सच्चे मन से की गई पूजा जल्दी फल देती है। विशेष रूप से सावन महीने और महाशिवरात्रि पर यहां पूजा-अर्चना का अत्यधिक महत्व माना जाता है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि यहां भगवान शिव की आराधना करने से मानसिक शांति, रोगों से मुक्ति और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
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मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा
ऐतिहासिक मान्यता के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण परमार वंश के महान राजा भोज ने 11वीं शताब्दी में करवाया था। कहा जाता है कि राजा भोज एक गंभीर रोग से पीड़ित थे। विद्वानों ने उन्हें शिवलिंग की स्थापना की सलाह दी, जिसके बाद उन्होंने इस भव्य मंदिर का निर्माण आरंभ कराया।
एक पौराणिक कथा यह भी कहती है कि मंदिर का निर्माण एक ही रात में किया जा रहा था लेकिन किसी कारणवश कार्य अधूरा रह गया। कुछ कथाओं में प्राकृतिक आपदा या राजा भोज की मृत्यु को इसके अधूरे रहने की वजह माना जाता है।
भोजपुर शिव मंदिर तक पहुंचने का रास्ता
भोजपुर शिव मंदिर मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 28–30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
सड़क मार्ग: भोपाल से भोजपुर तक टैक्सी, बस या अपनी गाड़ी से आसानी से पहुंचा जा सकता है। सड़क मार्ग सबसे सुविधाजनक है।
नजदीकी रेलवे स्टेशन: नजदीकी रेलवे स्टेशन भोपाल जंक्शन है। वहां से सड़क मार्ग के जरिए मंदिर पहुंचा जा सकता है।
नजदीकी एयरपोर्ट: नजदीकी हवाई अड्डा राजा भोज एयरपोर्ट, भोपाल है। एयरपोर्ट से टैक्सी के जरिए भोजपुर शिव मंदिर जाया जा सकता है।
धार्मिक और पर्यटन महत्व
भोजपुर शिव मंदिर न केवल एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, बल्कि इतिहास, पुरातत्व और वास्तुकला में रुचि रखने वालों के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण स्थान है। यह मंदिर भारतीय स्थापत्य कला, शिव भक्ति और मध्यकालीन इतिहास का अनूठा संगम प्रस्तुत करता है।
आज भी भोजपुर शिव मंदिर श्रद्धा, रहस्य और गौरवशाली इतिहास का प्रतीक बनकर भक्तों और पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।