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मंगला गौरी मंदिर: क्या है मंदिर से जुड़ी मान्यता और विशेषता?

बिहार के गया में स्थित देवी मंगला गौरी का मंदिर अपनी मान्यता के लिए वहां के स्थानीय लोगों में बहुत प्रसिद्ध है। यह मंदिर भस्मकूट पर्वत पर स्थित है।

Mangla gauri Mandir

मंगला गौरी मंदिर: Photo Credit: Wikipedia

बिहार के गया जिले में स्थित मंगला गौरी मंदिर न केवल देवी शक्ति का प्रमुख केंद्र है बल्कि यह प्राचीन पौराणिक कथाओं और धार्मिक मान्यताओं का जीवंत प्रमाण भी है। भस्मकूट पर्वत की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर देवी मंगला गौरी को समर्पित है, जिन्हें करुणा, कल्याण और सुख-समृद्धि की देवी माना जाता है। भक्तों की मान्यता है कि यहां पूजा-अर्चना करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

 

विवाहित महिलाएं मंगलवार के दिन मंगला गौरी व्रत रखती हैं और देवी को अड़हुल के फूल और नारियल अर्पित कर सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। मंदिर परिसर के गर्भगृह में देवी की अनुपम प्रतिमा, भगवान शिव, देवी काली, हनुमान जी और गणेश जी के मंदिर स्थित है। इस मंदिर में लगातार जलते घी के दीपक इसे धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण बनाते हैं।

 

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मंदिर की विशेषताएं

  • भस्मकूट पर्वत पर स्थित: मंदिर भस्मकूट पर्वत की चोटी पर स्थित है, जहां तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को लगभग 50 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं।
  • गर्भगृह में देवी मंगला गौरी की प्रतिमा: मंदिर के गर्भगृह में देवी मंगला गौरी की प्रतिमा स्थापित है।
  • अन्य देवी-देवताओं के मंदिर: मंदिर परिसर में भगवान शिव, देवी काली, हनुमान जी और गणेश जी के मंदिर भी स्थित हैं।
  • निरंतर जलता घी का दीपक: मंदिर में घी का दीपक लगातार जलता रहता है, जो भक्तों के लिए एक अद्वितीय दृश्य प्रस्तुत करता है।

मंदिर की मान्यता

देवी मंगला गौरी को परोपकार की देवी माना जाता है। मान्यता के अनुसार, यहां पूजा-अर्चना करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और वे सुख, समृद्धि, स्वास्थ्य और परिवार की सुरक्षा प्राप्त करते हैं। विशेष रूप से विवाहित महिलाएं मंगलवार के दिन मंगला गौरी व्रत रखती हैं। देवी को अड़हुल के फूल और नारियल अर्पित करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है। 

 

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मंदिर की वास्तुकला

भस्मकूट पर्वत पर मंगला गौरी का मंदिर स्थित है। भस्मकूट पर्वत गयाजी के पहाड़ी क्षेत्र में ब्रह्मयोनि की शृंखला का हिस्सा है। देवी का मंदिर स्थल बनने से यह पर्वत दुनियाभर में प्रसिद्ध हो गया। इस मंदिर का निर्माण मोजैक पत्थरों से हुआ है। वहीं, छत को सीमेंट से निर्मित किया गया है। देवी के दर्शन के लिए भक्तजन पंक्तिबद्ध होकर गुफा में प्रवेश कर आगे बढ़ते हैं। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए कई गलियारे बनाए गए हैं। गलियारे में चित्रकारी की गई है। प्रवेश मार्ग की पहली सीढ़ी पर 'ॐ मंगलायै नमः। वरं देहि देवि। भष्मकूटनिवासिनि...' श्लोक संस्कृत में लिखा है। तकरीबन 50 सीढ़ियां चढ़कर भक्त देवी के मंदिर तक पहुंचते हैं।

मंदिर तक पहुंचने का मार्ग

नजदीकी रेलवे स्टेशन: गया रेलवे स्टेशन मंदिर से लगभग 4.8 किलोमीटर दूर है। यहां से टैक्सी या बस के जरिए मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।

सड़क मार्ग: गया शहर से सड़क मार्ग के जरिए भी मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।

नजदीकी एयरपोर्ट: गया में स्थित गया अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा मंदिर से लगभग 9 किलोमीटर दूर है। यहां से टैक्सी या बस के जरिए मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।

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