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गोपेश्वर महादेव: भगवान शिव ने इसी स्थान पर कामदेव को किया था भस्म

उत्तराखंड के चमोली क्षेत्र में स्थित गोपेश्वर महादेव मंदिर का एक खास इतिहास और मान्यताएं हैं। आइए जानते हैं इस स्थान से जुड़ी खास बातें।

Image of Gopeshwar Mahadev Temple

गोपेश्वर महादेव मंदिर, चमोली(Photo Credit: Wikimedia Commons)

सावन का महीना भगवान शिव की उपासना के लिए समर्पित है। इस पवित्र महीने में भगवान शिव को समर्पित विभिन्न धार्मिक स्थलों पर लाखों की संख्या में शिव भक्तों की भीड़ उमड़ती है। भगवान शिव को समर्पित प्रसिद्ध और पौराणिक मंदिर उत्तराखंड में भी स्थित हैं। यहां चमोली जिले में मौजूद भगवान गोपेश्वर(भगवान के अनन्य नामों में से एक) का गोपीनाथ मंदिर भी लोगों की आस्था का एक प्रमुख केंद्र है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इससे जुड़ी कई पौराणिक कथाएं, मान्यताएं और ऐतिहासिक घटनाएं हैं, जो इसे और भी खास बनाती हैं।

गोपीनाथ मंदिर का पौराणिक महत्व

गोपीनाथ मंदिर से जुड़ी एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा यह है कि एक बार कामदेव ने भगवान शिव का ध्यान भंग करने की कोशिश की। तब महादेव ने क्रोधित होकर कामदेव को भस्म कर दिया, जिसके बाद उनकी पत्नी रति ने इसी स्थान पर घोर तपस्या की थी। देवी रति की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया कि कामदेव प्रद्युम्न के रूप में भगवान श्री कृष्ण के पुत्र बनकर जन्म लेंगे और फिर आपकी भेंट उनसे होगी। यही कारण है कि यहां मौजूद कुंड को रति कुंड के नाम से जाना जाता है।

 

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एक और पौराणिक कथा इस स्थान के लिए यह प्रचलित है कि एक बार भगवान शिव को श्री कृष्ण के महारास में शामिल होने की इच्छा उत्पन्न हुई लेकिन इसमें केवल महिला भक्तों को ही प्रवेश की अनुमति थी। ऐसे में भगवान शिव ने गोपी रूप धारण कर महारास में शामिल हुए। जिस वजह से भी महादेव को गोपेश्वर या गोपीनाथ के नाम से जाना जाने लगा।

मंदिर का ऐतिहासिक पहलू

गोपीनाथ मंदिर का निर्माण लगभग 12वीं से 13वीं शताब्दी के बीच माना जाता है। यह मंदिर कटवां पत्थर से बना हुआ है, और इसकी बनावट देखने पर स्पष्ट होता है कि यह शैली केदारनाथ और उत्तराखंड के अन्य प्राचीन मंदिरों से मिलती-जुलती है। मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है, जो स्वयंभू (स्वतः प्रकट हुआ) माना जाता है। इसके अलावा, मंदिर परिसर में कई छोटे-छोटे मंदिर भी हैं, जो विभिन्न देवी-देवताओं को समर्पित हैं।

त्रिशूल की रहस्यमयी शक्ति

गोपीनाथ मंदिर की एक और खास बात है – यहां स्थित भगवान शिव का त्रिशूल, जो मंदिर के सामने स्थापित है। यह त्रिशूल लगभग 5 मीटर ऊंचा है और पूरी तरह धातु का बना है। माना जाता है कि यह त्रिशूल धरती में इतनी गहराई तक धंसा हुआ है कि इसे आज तक कोई हिला नहीं पाया। यह भी मान्यता है कि यदि कोई पवित्र हृदय वाला व्यक्ति है यदि इस त्रिशूल को अपनी छोटी ऊंगली से भी छूता है तो उसमें कंपन महसूस होती है।

 

लोगों का विश्वास है कि यह वही त्रिशूल है जिससे भगवान शिव ने कामदेव को भस्म किया था जब उन्होंने शिव को तप से विचलित करने का प्रयास किया था।

 

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मंदिर में पूजा और उत्सव

यहां प्रतिदिन भगवान शिव की रूद्राभिषेक पूजा, आरती और भजन होते हैं। महाशिवरात्रि, श्रावण मास और कार्तिक पूर्णिमा जैसे पर्वों पर यहां भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। श्रावण माह में गोपीनाथ मंदिर का विशेष महत्व होता है क्योंकि इस समय शिवभक्त जलाभिषेक और विशेष पूजा करते हैं। गोपीनाथ मंदिर का वातावरण अत्यंत शांत, पवित्र और आध्यात्मिक होता है। जो भी व्यक्ति यहां आता है, उसे एक अद्भुत शांति और ईश्वर की निकटता का अनुभव होता है। यह मंदिर न केवल एक ऐतिहासिक धरोहर है, बल्कि मन की स्थिरता और आत्मिक संतुलन पाने का भी एक माध्यम बन चुका है।

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