देशभर में तरह-तरह से होली का त्योहार मनाया जाता है। जैसे बरसाने में खेली जाने वाली लठ्ठमार होली। ऐसे ही उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित दाऊजी मंदिर अपनी अनूठी हुरंगा होली के लिए प्रसिद्ध है। यह परंपरा हर साल होली के दूसरे दिन बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। इस उत्सव की खास बात यह है कि इस महिलाएं पुरुषों पर कपड़े की रस्सियों (कोड़ों) से प्रहार करती हैं और पुरुष खुद को रंग और पानी से बचाने की कोशिश करते हैं।
हुरंगा होली की पौराणिक कथा
हुरंगा होली की यह परंपरा भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी (दाऊजी) से जुड़ी हुई है। माना जाता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण नंदगांव और बरसाना में राधा और गोपियों संग होली खेलते थे, तब बलराम जी भी अपनी रसिक प्रवृत्ति के कारण इस उत्सव में शामिल होते थे। बलराम जी की प्रेयसी रेवती और उनकी सखियां भी उनके साथ होली खेलने के लिए आगे आईं।
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एक दिन होली खेलते समय बलराम जी और उनकी सखियों के बीच हंसी-मजाक बढ़ गया। सखियों ने बलराम जी पर रंग डाल दिया, जिससे बलराम जी भी प्रसन्न हो गए और उन्होंने अपनी गदा को एक तरफ रखकर उनके साथ होली खेलना शुरू कर दिया। खेल-खेल में बलराम जी ने सखियों को रंगों से सराबोर कर दिया।
इस परंपरा से जुड़ी एक लोक मान्यता यह भी है कि बलराम जी बहुत बलशाली थे और वे अपनी शक्तियों से गोपियों पर हावी हो सकते थे। इसलिए गोपियों ने उन्हें काबू में रखने के लिए कपड़े से बनी रस्सियों से प्रहार किया। तब से यह परंपरा चली आ रही है, जिसे आज भी दाऊजी मंदिर में बड़े उत्साह के साथ निभाया जाता है।
दाऊजी मंदिर का पौराणिक इतिहास
दाऊजी मंदिर बलदेव क्षेत्र में स्थित है और इसे भगवान बलराम का प्रमुख मंदिर माना जाता है। यह मंदिर करीब 5000 वर्ष पुराना बताया जाता है और इसका निर्माण द्वारकाधीश मंदिर की ही तरह हुआ है। मान्यता है कि यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण के वंशजों द्वारा बनवाया गया था।
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मंदिर में स्थापित बलराम जी की मूर्ति काले रंग की है और यह उनके दिव्य स्वरूप को दर्शाती है। बलराम जी को यहां हलधर (हल धारण करने वाले) के रूप में पूजा जाता है, जो कृषि और बलशक्ति के देवता माने जाते हैं।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।