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हिंदू, सिख, जैन और बुद्ध की होली में अंतर क्या होता है?

भारत में जैन, सिख और बौद्ध धर्म के लोग भी होली मनाते हैं। इन धर्मों की शाखाएं एक रही हैं लेकिन क्या होली में अंतर होता है? समझिए।

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सांकेतिक तस्वीर| Photo Credit: Freepik

होली का त्योहार भारत के हर शहर में अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। रंगों के इस त्योहार का इंतजार बच्चों से लेकर बड़ों तक को रहता है। होली यहां के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। होली का त्योहार मूल रूप से हिंदू कैलेंडर के अनुसार, हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस बार होली मार्च मे 14 तारीख को मनाया जाएगा। होली का महत्व हिंदू धर्म के अलावा जैन धर्म, सिख धर्म और बौद्ध धर्म में भी माना जाता है। इस त्योहार को सभी धर्म के लोग एक ही दिन मनाते हैं पर इन सभी के मनाने का तरीका अलग-अलग है। 

 

सभी धर्मों के होली मनाने का तरीका अलग होता है, जैसे हिन्दू धर्म से जुड़े लोग होली के एक दिन पहले होलिका दहन करते हैं। उसके अगले  दिन रंग और गुलाल के साथ होली मनाते हैं। वही जैन धर्म के लोग उसी दिन भगवान ऋषभदेव के मोक्ष का उत्सव मनाते हुए शांति का संदेश देते हैं। बौद्ध धर्म के लोग होली के दिन आटे की होली खेलते हैं। सिख धर्म के लोग होली के दिन होला मोहल्ला मनाते हैं। इसके पीछे का मकसद दुनिया भर में एकता, प्रेम, वीरता और बन्धुत्व को फैलाना है।

 

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हिंदू कैसे मनाते हैं होली?

हिन्दू धर्म में होली का महत्व बहुत बड़ा है। हिन्दू धर्म में होली का त्योहार बहुत महत्वपूर्ण है। यह वसंत ऋतु का त्योहार है और इसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। हिन्दू धर्म में होली मनाने के एक दिन पहले शाम के समय होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन भक्त प्रह्लाद की याद में मनाया जाता है। मान्यता के अनुसार, होलिका प्रह्लाद की बुआ और हिरण्यकश्यप की बहन थी। होलिका जिस दिन अग्नि में भस्म हुई थीं, वह दिन फाल्गुन महीने की चतुर्दशी तिथि और प्रदोष काल का था। होलिका दहन की अग्नि को बहुत पवित्र माना जाता है। सनातन धर्म में मान्यता है कि होलिका दहन और होली के दिन भगवान कृष्ण, श्री हरि और कुल देवी-देवताओं की पूजा करने से नकारात्मक शक्तियां नष्ट होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। सनातन धर्म में होली के दिन लोग आपसी मतभेद भुलाकर एक-दूसरे को रंग लगाते हैं। एकता और अखण्डता का संदेश पूरे समाज को देते हैं।

जैन धर्म में कैसे मनाते हैं होली

हिन्दू धर्म में जिस तरह होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। उसी तरह जैन धर्म में होली का त्योहार भगवान ऋषभदेव के मोक्ष और भगवान महावीर के जन्म से जुड़ा हुआ है। जैन धर्म के अनुसार, महावीर भगवान का जन्म चैत्र कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को हुआ था। इसलिए जैन धर्म के लोग होली का दिन भगवान महावीर के जन्मदिन और भगवान ऋषभदेव के मोक्ष के रूप में माना जाता है। 

 

होली के दिन ये लोग सुबह उठ कर स्नान करके साफ कपड़ा पहनते हैं। उसके बाद भगवान महावीर और भगवान ऋषभदेव की पूजा करते हैं। जैन धर्म में होली के दिन गीले रंगों का प्रयोग नहीं किया जाता है। इस दिन जैनी लोग धार्मिक गीत गाते हुए अपने तीर्थंकरों का नाम लेते हैं।

 

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बौद्ध धर्म में कैसे मनाते हैं होली

होली के दिन कुछ जगहों पर बौद्ध धर्म के लोग आटे से होली खेलते हैं। होली से 15 दिन पहले से आटे की बोरियां रख ली जाती हैं। पूजा-अर्चना के बाद सुबह से ही यह लोग आटे की होली खेलते हैं। बौद्ध धर्म के लोग इस दिन फाल्गुनउत्सव भी मनाते हैं। मान्यताओं के अनुसार, बोधी प्राप्त होने के बाद तथागत बुद्ध पहली बार अपने घर कपिलवस्तु गए थे। वहां उनका स्वागत करने के लिए लोगों ने घरों और रास्तों को साफ किया था और बुद्धत्व प्राप्ति की खुशी में उत्सव मनाया था, जो आगे चलकर 'फाल्गुन उत्सव' बन गया। इस दौरान खुशी में कपिलवस्तु के शाक्यों ने एक साथ मिलकर चावल पकाया और सभी  लोगों में उसे बांटा था। चावल पकाने को 'होलका' कहा जाता था, इसलिए बुद्ध के इस स्वागतोत्सव को बाद में 'होलकोत्सव' कहा जाने लगा था।

सिख धर्म में कैसे मनाते हैं होली

सिख धर्म के लोग होली के दिन होला मोहल्ला का त्योहार मनाते हैं। यह त्योहार तीन दिन तक मनाया जाता है। सिख धर्म में इस त्योहार की मान्यता और महत्व बहुत ज्यादा है। ये लोग इस त्योहार को बड़े धुम-धाम से मनाते हैं। बता दें कि सिख समुदाय में होला मोहल्ला मनाने की शुरुआत 17वीं शताब्दी में सिखों के 10वें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने की थी। इस त्योहार को मनाने के पीछे उनका उद्देश्य एक ऐसे समुदाय का निर्माण करना था, जिसमें आत्म-अनुशासन काबिल योद्धा वाली गुणवत्ता और आध्यत्मिकता में कुशलता हो। होला मोहल्ला दो शब्दों से मिलकर बना है होला और मोहल्ला। जिसमें होला का अर्थ होली और मोहल्ला का अर्थ मय और हल्ला से लिया गया है। इसमें मय का अर्थ होता है बनावटी और मोहल्ला का अर्थ होता है हमला। मान्यताओं के अनुसार, गुरु गोबिंद सिह जी ने सिखों में वीरता और साहस के जज्बे को बढ़ाने के लिए होली पर इस त्योहार को मनाने की शुरुआत की थी। तभी से इस दिन निहंग सिख दो गुटों पर बंटकर एक दूसरे पर बनावटी हमला करते हुए अपना शक्ति प्रदर्शन करते हैं। 

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