हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले की खूबसूरत वादियों में स्थित चामुंडा देवी मंदिर श्रद्धालुओं के लिए गहरी आस्था का केंद्र है। मां दुर्गा के उग्र रूप चामुंडा को समर्पित यह मंदिर शक्तिपीठों में गिना जाता है। मान्यता है कि यहां दर्शन और पूजा करने से भक्तों के सभी संकट दूर होते हैं और देवी भगवती की कृपा से भय और विघ्न का नाश होता है। देवी महात्म्य की कथा के अनुसार, चामुंडा देवी ने चंड और मुण्ड नामक राक्षसों का संहार कर धर्म की रक्षा की थी। तभी से यह स्थान शक्ति साधना का प्रमुख केंद्र बन गया।
मंदिर का ऐतिहासिक महत्व इतना गहरा है कि दूर-दराज से आने वाले श्रद्धालु यहां स्नान, तर्पण और पूजा-अर्चना करके आत्मिक शांति और पितृ तृप्ति की कामना करते हैं। भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी की मौत को भी इस मंदिर से जोड़ा जाता है। मशहूर जर्नलिस्ट नीरजा चौधरी ने अपनी नई किताब 'हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड' में बताया है कि इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री पद के शपथ ग्रहण के बाद चामुंडा देवी दर्शन करने जाने वाली थी लेकिन बाद में मंदिर में सारी तैयारियां हो जाने के बाद उन्होंने वहां जाने का कार्यक्रम निरस्त कर दिया था। नीरजा की किताब के मुताबिक, 'जब पुजारी ने सुना कि वह नहीं आ रही है, तो उसने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए उनके सचिव बाली से कहा आप इंदिरा गांधी से कहिए, यह चामुंडा हैं। अगर कोई साधारण प्राणी नहीं आ सकेगा तो मां क्षमा कर देगी लेकिन अगर शासक अपमान करेगा तो देवी माफ नहीं करेंगी।'
किताब के मुताबिक, 'बाली ने पुजारी को शांत करने की कोशिश की। उन्होंने कहा देखिए पंडितजी कोई जरूरी वजह होगी, जिसकी वजह से वह नहीं आ पा रही हैं। बाली ने 22 जून को तय कार्यक्रम के तहत चामुंडा मंदिर में कीर्तन और प्रार्थना आदि करवाया। 23 तारीख की सुबह बाली का पूरा ग्रुप वहां से निकल गया। नीरजा की किताब के मुताबिक, बाली याद करते हैं कि हम 50 किलोमीटर दूर ज्वाला मुखी मंदिर पहुंचे थे, तभी मेरा सचिव दौड़ता हुआ मेरे पास आया और उसने कहा, संजय गांधी का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया है।'

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चामुंडा देवी मंदिर की पौराणिक कथा
चामुंडा देवी मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा भक्तों बीच प्रचलित है। प्रचलित कथा के अनुसार, एक समय की बात है जब दो शक्तिशाली असुर शुंभ और निशुंभ ने तीनों लोकों पर अपना अधिकार कर लिया था। उन्होंने देवताओं को परास्त कर स्वर्गलोक तक जीत लिया। पराजित देवताओं ने हिमालय पर जाकर आदिशक्ति मां दुर्गा की तपस्या की और उनसे रक्षा की प्रार्थना की।
देवी दुर्गा ने देवताओं की प्रार्थना स्वीकार की और अपने विविध रूपों में असुरों का विनाश करना शुरू किया। इन्हीं असुरों में दो भयानक सेनापति थे, जिनका नाम चंड और मुंड था। कथा के अनुसार, ये दोनों बहुत बलवान और क्रूर थे। उन्होंने दुर्गा जी को देखकर शुंभ-निशुंभ के पास जाकर कहा कि इतनी सुंदरी देवी को आपसे विवाह करना चाहिए।
जब शुंभ-निशुंभ ने संदेश भेजकर देवी को अपने साथ विवाह करने के लिए कहा, तो देवी ने कहा कि वे केवल उसी वीर से विवाह करेंगी जो युद्ध में उन्हें परास्त कर सके। इस पर चंड और मुंड ने अपनी विशाल सेना के साथ देवी पर आक्रमण कर दिया।
देवी दुर्गा ने अपने क्रोध से काली का भयानक रूप धारण किया, जो विकराल, कराल और प्रचंड था। इस रूप में देवी ने चंड और मुंड दोनों राक्षसों का वध कर दिया। तभी से इस मंदिर में देवी दुर्गा की चामुंडा रूप की पूजा की जाती है।
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चामुंडा देवी मंदिर की विशेषता
- इस मंदिर में मां चामुंडा को मां काली और मां दुर्गा के उग्र रूप में पूजा जाता है।
- यहां देवी के साथ भगवान शिव को भी पूजित माना गया है, जिन्हें इस स्थान पर 'नंदीकेश्वर' कहा जाता है।
- मंदिर के पास बहने वाली नदी को पवित्र माना जाता है। भक्त यहां स्नान करके मां के दर्शन करते हैं।
- यह मंदिर केवल श्रद्धा का स्थल नहीं बल्कि तंत्र साधना के लिए भी प्रसिद्ध है। माना जाता है कि यहां साधना करने से देवी तुरंत प्रसन्न होती हैं।