• GUWAHATI
31 Dec 2025, (अपडेटेड 31 Dec 2025, 10:57 AM IST)
कामाख्या देवी में दर्शन करने वाले बहुत से श्रद्धालु मानते हैं कि बिना उमानंद मंदिर में दर्शन किए कामाख्या देवी का दर्शन नहीं पूरा होता है। आइए जानते हैं कि क्या यह करना जरुरी होता है।
ब्रह्मपुत्र नदी के बीचो-बीच बसे पीकॉक आइलैंड पर स्थित उमानंद मंदिर अपनी मान्यताओं की वजह से हमेशा चर्चा में रहता है। गुवाहाटी आने वाले श्रद्धालुओं के मन में यह सवाल हमेशा बना रहता है कि क्या कामाख्या देवी के दर्शन के बाद उमानंद मंदिर जाना जरूरी होता है या फिर यह केवल आस्था और परंपरा से जुड़ा विषय है। खासतौर पर नवरात्रि, अंबुबाची मेले और सावन जैसे धार्मिक अवसरों पर कामाख्या मंदिर में भारी भीड़ उमड़ने के बाद बड़ी संख्या में भक्त नावों के जरिए उमानंद मंदिर पहुंचते हैं।
कामाख्या देवी में दर्शन के बाद उमानंद मंदिर (पीकॉक आइलैंड) में दर्शन करना अनिवार्य नहीं है लेकिन इसके बावजूद बड़ी संख्या में श्रद्धालु वहां जाना धार्मिक रूप से अत्यंत शुभ और पूर्णता देने वाला मानते हैं। इसके पीछे आस्था, परंपरा और पौराणिक मान्यताओं का गहरा संबंध है।
शास्त्रों या किसी आधिकारिक धार्मिक नियम में यह नहीं कहा गया है कि कामाख्या देवी के दर्शन के बाद उमानंद मंदिर जाना अनिवार्य है। कामाख्या देवी स्वयं 51 शक्तिपीठों में से एक हैं और उनके दर्शन मात्र से ही तीर्थ यात्रा पूर्ण मानी जाती है।
उमानंद मंदिर में जाने का रास्ता
फिर लोग कामाख्या के बाद उमानंद क्यों जाते हैं?
इसके पीछे कई धार्मिक और पौराणिक वजह मानी जाती हैं, जिनमें-
शक्ति और शिव का संतुलन
कामाख्या देवी शक्ति स्वरूपा हैं, जबकि उमानंद मंदिर में भगवान शिव (भस्मधारी उमानंद) की पूजा होती है। हिंदू मान्यता के अनुसार, शक्ति के बिना शिव अधूरे हैं और शिव के बिना शक्ति अपूर्ण। इसीलिए श्रद्धालु मानते हैं कि कामाख्या (शक्ति) के दर्शन के बाद उमानंद (शिव) के दर्शन करने से यात्रा संतुलित और पूर्ण होती है।
तंत्र साधना से जुड़ी मान्यता
कामाख्या देवी तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र हैं। तांत्रिक परंपरा में साधना की पूर्णता के लिए शिव उपासना को आवश्यक माना गया है। उमानंद मंदिर को तांत्रिक दृष्टि से शिव की शांत और मोक्षदायी शक्ति का प्रतीक माना जाता है, इसलिए साधक वहां जाते हैं।
पौराणिक कथा
मान्यता है कि भगवान शिव ने इसी स्थान पर उमानंद के रूप में तपस्या की थी। यह भी कहा जाता है कि देवी पार्वती (उमा) ने शिव को यहां प्रसन्न किया, इसलिए इस द्वीप का नाम उमानंद पड़ा। इस वजह से इस स्थान को शिव-पार्वती के मिलन का प्रतीक स्थल भी माना जाता है।
गुवाहाटी में तीन प्रमुख धार्मिक केंद्र माने जाते हैं-
कामाख्या देवी (शक्ति)
उमानंद मंदिर (शिव)
नवग्रह मंदिर (ग्रह शांति)
बहुत से श्रद्धालु मानते हैं कि इन तीनों के दर्शन से शक्ति, शांति और संतुलन की प्राप्ति होती है।
आस्था और परंपरा
समय के साथ यह एक लोक-परंपरा बन गई है कि कामाख्या दर्शन के बाद ब्रह्मपुत्र नदी पार कर उमानंद में शिव के दर्शन किए जाएं। हालांकि यह परंपरा है, कोई नियम नहीं है।