तमिलनाडु के ऐतिहासिक शहर मदुरै में स्थित मीनाक्षी अम्मन मंदिर दक्षिण भारत की सबसे भव्य और प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर देवी मीनाक्षी (देवी पार्वती का अवतार) और भगवान सुंदरश्वर (भगवान शिव का रूप) को समर्पित है। इस मंदिर की नींव कई शताब्दी पहले पांड्य वंश के शासनकाल में रखी गई थी। बाद में विजयनगर साम्राज्य और नायक वंश के राजाओं ने इसे और भी विशाल और सुंदर रूप दिया था।
कहा जाता है कि राजा विश्वनाथ नायक ने मंदिर के कई भागों का पुनर्निर्माण करवाया था, जिसकी वजह से यह पहले से ज्यादा सुंदर दिखने लगा। इस मंदिर पर कई बार मुगलों ने आक्रमण भी किया था, जिसकी वजह से मंदिर के कई भाग क्षतिग्रस्त हो गए थे। बाद में नायक वंश के राजा ने मंदिर का पुर्निर्माण करवाया था। करीब 14 एकड़ क्षेत्र में फैला यह मंदिर अपनी ऊंची और रंगीन गोपुरमों (मुख्य द्वारों के टावरों) के लिए मशहूर है।
यह भी पढ़ें: होयसल दरबार के दृश्य से सजे चेन्नाकेशव मंदिर की खूबियां क्या हैं?

मंदिर का इतिहास और निर्माण काल
मीनाक्षी अम्मन मंदिर की जड़ें पाण्ड्य वंश से जुड़ी मानी जाती हैं। प्रारंभिक रूप से पाण्ड्य शासकों ने इसका निर्माण किया था। समय के साथ कई बार मुगलों ने इस मंदिर पर आक्रमण किया था, जिसकी वजह से मंदिर के कई भाग क्षतिग्रस्त हो गए थे। बाद में नायक वंश के राजा तिरुमलै नायक ने मंदिर का पुनर्निर्माण, मरम्मत और विस्तार करवाया था। मौजूदा हालत में जिस स्वरूप में यह मंदिर देखा जाता है, वह मुख्य रूप से 16वीं और 17वीं शताब्दी में नायक वंश के शासकों के माध्यम से किया गया विस्तार और सुधार है।
यह भी पढ़ें: अनोखी है कोणार्क के सूर्य मंदिर की बनावट, पढ़िए इसकी खूबियां

स्थापत्य शैली और बनावट
- यह मंदिर द्रविड़ शैली में बना है, जिसमें दक्षिण भारत के मंदिरों की विशेष संरचनाएं स्पष्ट रूप से देखी जा सकती हैं। गोपुरम (महाशिखर प्रवेश द्वार), मंडपम (स्तंभदार हॉल), गर्भगृह और बाह्य प्रांगण इस शैली के प्रमुख आकर्षण केंद्र माने जाते हैं।
- मंदिर परिसर करीब 14 एकड़ से ज्यादा बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है।
- मंदिर की दीवारों से घेरे गए प्रांगण में कई प्रवेश द्वार-टावर (गोपुरम) हैं। मंदिर परिसर में कुल मिलाकर 14 गोपुरम हैं। इनमें से दक्षिण दिशा का गोपुरम सबसे ऊंचा है, जिसकी ऊंचाई लगभग 50 मीटर से ज्यादा है।
- मंदिर के मुख्य द्वार पर बारीक नक्काशी की गई है। मुख्य द्वार के पिलर पर मूर्तिकला और जीवंत रंगों से डिजाइन बनाई गई है। देवी-देवता, सिद्ध, राक्षस, पशु-पक्षी, मिथक कथाएं और पौराणिक पात्रों की मूर्तियां भी इन स्तंभों पर उकेरी गई हैं।

शिल्पकला की विशेषताएं

हजार स्तंभ हॉल: इस मंदिर में एक मंडप स्थित है, जिसमें करीब 985 स्तंभ (पिलर) हैं, हर स्तंभ पर कलात्मक नक्काशी की गई है। इन स्तंभों पर याल-यानी, नर्तक-नर्तकी रूप, फूल-पक्षी आदि को उकेरा गया है।
मंडपम: मंदिर प्रांगण में कई मंडप भी स्थित हैं, जिनमें कंबाथडी मंडपम, अष्टशक्ति मंडपम, किलिकोंडु मंडपम, कम्बतादि मंडपम, वीर वसंत राय मंडपम आदि का नाम शामिल है। जहां लोगों के विश्राम, आयोजन और पूजा-क्रियाएं होती हैं।
स्वर्ण कमल तालाब: मंदिर परिसर में एक पवित्र जलाशय है, जिसे तालाब कहा जाता है, जिसका इस्तेमाल धार्मिक अनुष्ठानों और त्योहारों के समय किया जाता है। इस तालाब के चारों ओर मंडप और प्रांगण स्थित हैं।
वास्तुशास्त्र और मण्डल-प्लान: मंदिर का लेआउट वास्तुशास्त्र और शिल्पा शास्त्रों के अनुसार, बनाया गया है, जो सिमेट्री, केंद्र-केन्द्रित प्लान और मण्डल सिद्धांतों पर आधारित है।