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गंडक नदी का महात्म्य, क्यों होती है इस नदी से निकले पत्थर की पूजा?

पुराणों में गंडक नदी का धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से बहुत बड़ा महत्व बताया गया है। मान्यता है कि इस नदी के तट पर आज भी भगवान शालिग्राम की शिलाएं मिलती है।

gandak river

गंडक नदी: Photo Credit: Wikipedia

पुराणों में गंडक नदी का धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से बहुत बड़ा महत्व बताया गया है। इसका उद्गम नेपाल के हिमालय से माना जाता है और यह उत्तर प्रदेश और बिहार से होकर गंगा में मिलती है। इस नदी को गंडकी, नारायणी और सालग्रामी गंडकी भी कहा जाता है। इसका सबसे बड़ा महात्म्य्य यह है कि इसके तट पर शालिग्राम शिलाएं मिलती हैं, जिन्हें भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है। यही वजह है कि गंडक का जल बहुत पवित्र और मोक्षदायी माना गया है।

 

पुराणों में गंडक नदी से जुड़ी कई कथाएं मिलती हैं। स्कंद पुराण के अनुसार, एक बार कुछ जीव नदी के किनारे मिट्टी खोदते हुए गलती से नदी में गिर गए। गंडक का जल विष्णु जी और भगवान शिव की शक्ति से युक्त होने की वजह उन जीवों को मोक्ष प्राप्त हो गया था। इस घटना के बाद से गंडक को पवित्र माना जाने लगा।

 

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गंडक नदी से जुड़ी महात्म्य

  • गंडक नदी का उद्गम नेपाल के हिमालय क्षेत्र से माना जाता है और यह बिहार और उत्तर प्रदेश से होकर गंगा में मिलती है।
  • इसे नारायणी या सालग्रामी गंडकी भी कहा जाता है, क्योंकि इसके किनारे सालग्रामी शिला (शालिग्राम शिला) पाई जाती है।
  • यह शिला भगवान विष्णु का प्रतीक मानी जाती हैं।
  • गंडक का जल बहुत पवित्र माना जाता है और मान्यता है कि इसके जल का स्पर्श करने मात्र से पापों का नाश होता है।
  • गंडक/गंडकी नदी में शालिग्राम शिला मिलती हैं, जिन्हें भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है। ये शिलाएं (पत्थर) देवशिला (विष्णु-शिला) के नाम से प्रसिद्ध हैं। 
  • कहा जाता है कि ये शिलाएं करोड़ों वर्ष पुरानी होती हैं।
  • मान्यता के अनुसार, नौ दिव्य क्षेत्र में से एक स्थान गंडक घाटों के आसपास है।

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गंडक में मिले पत्थर क्यों पूजे जाते हैं?

भगवान विष्णु के पत्थर बनने की कथा गंडक नदी से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि शंखचूड़ नाम का एक राक्षस था जिसकी पत्नी वृंदा बहुत ही पतिव्रता और भगवान विष्णु की बड़ी भक्त थी। जब शंखचूड़ का अंत करना जरूरी हुआ तो भगवान विष्णु ने महादेव के साथ मिलकर छल से वृंदा का पतिव्रता धर्म तोड़ दिया, जिससे उसके पति की शक्ति नष्ट हो सके और उसका वध हो सके।

 

इस घटना से वृंदा बहुत दुखी और क्रोधित हो गई। उसने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि वह पत्थर बन जाएंगे और कीटाणु उन्हें काटते रहेंगे। अपने भक्त के श्राप को सत्य करने के लिए भगवान विष्णु पत्थर के रूप में गंडक नदी में विराजमान हो गए। इन्हीं पत्थरों को शालिग्राम कहा जाता है और यह आज भी गंडक नदी में पाए जाते हैं। शालिग्राम रूप में भगवान विष्णु की पूजा विशेष रूप से की जाती है।

 

तुलसी और शालिग्राम की कथा भी गंडक से जुड़ी है। मान्यता है कि तुलसी जी का विवाह विष्णु जी के शालिग्राम स्वरूप से हुआ था। इसी वजह से गंडक नदी में पाई जाने वाली शालिग्राम शिलाओं की पूजा का विशेष महत्व है और तुलसी के बिना शालिग्राम की पूजा अधूरी मानी जाती है। हिंदू धर्म में, देवी वृंदा कई अलग-अलग भूमिकाओं में दिखाई देती हैं, मान्यता है कि देवी वृंदा को मुख्य रूप से तुलसी के पौधे के रूप में जाना जाता है।

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