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रावण से जुड़ी है मुरुदेश्वर मंदिर की कहानी, जहां है शिव की 123 फीट ऊंची मूर्ति

कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले में स्थित मुरुदेश्वर शिव मंदिर अरब सागर के किनारे स्थित है। मंदिर के प्रांगण में भगवान शिव की 123 फीट ऊंची मूर्ति स्थापित की गई है।

murudeshwar mandir

मुरुदेश्वर शिव मंदिर: Photo Credit: Social Media

कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले में अरब सागर के किनारे बसा मुरुदेश्वर शिव मंदिर अपनी भव्यता, धार्मिक आस्था और पौराणिक महत्व की वजह से देशभर में प्रसिद्ध है। समुद्र की लहरों से घिरे इस मंदिर में भगवान शिव की 123 फुट ऊंची विशाल प्रतिमा भक्तों और पर्यटकों दोनों को आकर्षित करती है। यह मंदिर काण्डुका गिरि नामक पहाड़ी पर स्थित है, जहां से सागर का दृश्य मन को मोह लेता है।

 

कहा जाता है कि इस स्थान का संबंध रावण और भगवान शिव के आत्मलिंग की कथा से है, जिससे इस मंदिर को पौराणिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। माना जाता है कि लंका नरेश रावण जब भगवान शिव से प्राप्त आत्मलिंग को अपने राज्य ले जा रहा था, तो भगवान गणेश के छल से वह इसे धरती पर रख देता है। इसी आत्मलिंग के अंश से इस स्थान की स्थापना हुई और भगवान शिव के इस स्वरूप को ‘मुरुदेश्वर’ नाम दिया गया।

 

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मुरुदेश्वर शिव मंदिर की विशेषता

मुरुदेश्वर मंदिर भारत के कर्नाटक राज्य के उत्तर कन्नड़ जिले के भटकल तहसील में स्थित एक प्रमुख शिव मंदिर है। यह मंदिर तीन ओर से अरब सागर से घिरे छोटे से टीले 'काण्डुका गिरि पर बना है। 

  • मंदिर परिसर में 123 फुट ऊंची भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित है, जो दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची शिव प्रतिमाओं में गिनी जाती है। 
  • मंदिर परिसर में 20-मंजिला (लगभग 72 मीटर) का राजा-गोपुरम है, जिसके शीर्ष से समुंदर और भगवान शिव की प्रतिमा का अद्भुत दृश्य दिखता है। 
  • यह मंदिर हिन्दू स्थापत्य शैली (द्रविड़ शैली) में बना है, जिसमें चालुक्य और काम्बा राजवंश की मूर्तिकला-शैली और ग्रेनाइट निर्माण देखने योग्य है। 
  • समुद्र के किनारे की वजह यह न केवल तीर्थस्थल है बल्कि प्रमुख पर्यटन आकर्षण भी है। 

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मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा

मुरुदेश्वर मंदिर की मान्यता मुख्य रूप से आत्मलिंग और रावण की कथा से जुड़ी है। प्रचलित कथा के अनुसार, रावण ने भगवान शिव की कृपा से आत्मलिंग प्राप्त किया था, जो उसे अमरत्व और अदम्य शक्ति प्रदान कर सकती थी। 

 

प्रचलित कथा के अनुसार, इस आत्मलिंग को रावण लंका ले जा रहा था पर भगवान गणेश ने ब्राह्मण के वेश में उसकी सहायता करने का प्रस्ताव दिया। जैसे ही रावण ने आत्मलिंग को जमीन पर रखा, वह वहां स्थिर हो गया। आत्मलिंग के टूटने पर इसके टुकड़े अलग-अलग जगहों पर गिर गए जिसमें एक टुकड़ा काण्डुका गिरि पर गिरा था। उस टुकड़े के स्थान पर आज यह मंदिर स्थित है और इसलिए इसे मृदेश्वरा क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है।

मंदिर तक पहुंचने का रास्ता

नजदीकी रेलवे स्टेशन: इस मंदिर से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन भटकल है, जिसे बाद में मुरुदेश्वर पहुंचने के लिए सड़क के रास्ते जाना पड़ता है।

सड़क मार्ग: राष्ट्रीय राजमार्ग ‎NH-66 (पहले NH-17) के किनारे मुरुदेश्वर स्थित है, प्रमुख शहरों जैसे मैंगलोर, बेंगलुरु, करवार से बस-कार के जरिए पहुंचा जा सकता है। 

नजदीकी एयरपोर्ट: मैंगलोर हवाई अड्डा यहां का नजदीकी एयरपोर्ट है , वहां से मुरुदेश्वर तक सड़क मार्ग के जरिए 2-3 घंटे में पहुंचा जा सकता है।

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