नेपाल के मस्टैंग जिले की ऊंचाइयों पर स्थित मुक्तिनाथ मंदिर हिंदू और बौद्ध दोनों धर्मों के लिए आस्था का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है। भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप को समर्पित यह धाम मोक्ष प्रदान करने वाला स्थल कहा जाता है। मंदिर परिसर में 108 जलधाराएं हैं, जिनसे लगातार बहता शीतल जल श्रद्धालुओं के लिए पापों से मुक्ति का प्रतीक माना जाता है। वहीं, यहां की सबसे अनोखी विशेषता है प्राकृतिक रूप से जलती हुई अग्नि ज्योति, जिसे 'जल-नारायण' के स्वरूप में पूजा जाता है।
पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि शालिग्राम शिला का संबंध गंडक नदी और वृंदा के श्राप से जुड़ा है, जिसकी वजह से भगवान विष्णु पत्थर रूप में प्रकट हुए। यही शालिग्राम मुक्तिनाथ में पूजा का मुख्य आधार हैं। मान्यता है कि इस धाम के दर्शन और यहां स्नान करने से न केवल पितरों की आत्मा को शांति मिलती है बल्कि भक्त को जन्म-मरण के बंधन से भी मुक्ति मिलती है।
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पौराणिक कथा
इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, मान्यता है कि जब शंखचूड़ नामक दैत्य का वध करना था, तब भगवान विष्णु ने उसकी पत्नी के पतिव्रता धर्म को तोड़ने के लिए छल किया। इससे उसकी पत्नी वृंदा ने विष्णु जी को श्राप दिया कि वह पत्थर बन जाएंगे। श्राप के फलस्वरूप भगवान विष्णु गंडक नदी में शालिग्राम शिला के रूप में प्रकट हुए। इन्हीं शालिग्राम की पूजा मुक्तिनाथ में होती है।
एक अन्य कथा के अनुसार, यहां स्नान करने और दर्शन करने से मनुष्य जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। इसलिए इसे 'मोक्षधाम' कहा जाता है।

मुक्तिनाथ मंदिर की विशेषता
- जानकारी के मुताबिक यह मंदिर समुद्रतल से हजारों मीटर की ऊंचाई पर हिमालय की गोद में स्थित है।
- यहां भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप की पूजा होती है।
- मंदिर परिसर में 108 पवित्र जलधाराएं (मुख) हैं, जिनसे लगातार जल बहता रहता है। श्रद्धालु इन धाराओं के नीचे स्नान करके पापमुक्त होने का विश्वास करते हैं।
- यहां एक प्राकृतिक अग्नि ज्योति (जलती हुई लौ) भी है, जो पृथ्वी के अंदर से निकलने वाली प्राकृतिक गैस से प्रज्वलित रहती है। इसे 'जल-नारायण' के दर्शन का प्रतीक माना जाता है।
- बौद्ध मतावलंबी इस स्थान को 'चुमिग ग्यात्सा' कहते हैं और इसे अवलोकितेश्वर बोधिसत्व का धाम मानते हैं।
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धार्मिक महत्व
- हिन्दू श्रद्धालुओं का विश्वास है कि यहां स्नान और पूजा करने से पितरों की आत्मा को शांति और भक्त को मोक्ष मिलता है।
- बौद्ध श्रद्धालु इसे 'आठ पवित्र स्थलों' में गिनते हैं। उनका मानना है कि यहां गुरु पद्मसंभव ने साधना की थी।
- इस मंदिर में हर साल नेपाल और भारत से हजारों तीर्थयात्री आते हैं।
मंदिर तक कैसे पहुंचा जा सकता है?
- मुक्तिनाथ मंदिर नेपाल के मस्टैंग जिले में जोमसोम कस्बे के पास स्थित है।
- काठमांडू या पोखरा से हवाई मार्ग के जरिए जोमसोम एयरपोर्ट पहुंचा जा सकता है। वहां से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी सड़क मार्ग या पैदल तय करके मंदिर पहुंचा जाता है।
- कुछ लोग पोखरा से बस या जीप से जोमसोम तक का सफर करते हैं और फिर वहां से मंदिर जाते हैं।
- पैदल ट्रेकिंग करके के भी इस मंदिर तक पहुंचा जा सकता हैं।