सियाचिन ग्लेशियर को दुनिया का सबसे ऊंचा और कठिन युद्ध क्षेत्र कहा जाता है। यहां का तापमान अक्सर -50 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है। ऐसे मुश्किल हालात में भी भारतीय सैनिक डटे रहते हैं। इस कठिन जीवन में एक नाम है जो उन्हें हिम्मत और सुरक्षा का एहसास कराता है — वह हैं ओपी बाबा। सियाचिन में तैनात सैनिकों के बीच ओपी बाबा किसी देवता से कम नहीं माने जाते।
ओपी बाबा मंदिर का इतिहास
ओपी बाबा से जुड़ी आस्था की शुरुआत करीब 1980 के दशक की बताई जाती है। कहते हैं कि जब भारतीय सेना ने सियाचिन में अपनी तैनाती शुरू की थी, तब एक सैनिक ओम प्रकाश (संक्षेप में 'ओपी') यहां तैनात थे। एक मिशन के दौरान वह लापता हो गए। उसके बाद सैनिकों को कई बार ऐसा अनुभव हुआ कि ओपी बाबा किसी न किसी रूप में उन्हें खतरों से सचेत कर रहे हैं। कई जवानों ने सपनों में ओपी बाबा को देखकर अपनी जान बचाई। तभी से सैनिकों का विश्वास बन गया कि ओपी बाबा अब सियाचिन के रक्षक बन गए हैं।
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ओपी बाबा का एक मंदिर भी सियाचिन में बनाया गया है। यह मंदिर कोई भव्य इमारत नहीं है, बल्कि एक साधारण-सी जगह है जो सैनिकों के अटूट विश्वास का प्रतीक है। यहां एक कमरा है जिसमें ओपी बाबा का चित्र, कुछ धार्मिक किताबें, और ढेर सारी घंटियां टंगी हैं। सैनिक यहां ड्यूटी पर आने से पहले बाबा से आशीर्वाद लेते हैं। उनका मानना है कि बाबा उनकी रक्षा करेंगे और उन्हें किसी भी मुसीबत से पहले संकेत देंगे।
इस स्थान से जुड़ी मान्यताएं
एक खास परंपरा भी जुड़ी है इस मंदिर से। जब कोई सैनिक ओपी बाबा से कोई मन्नत मांगता है — जैसे सुरक्षित ड्यूटी पूरी होने की या किसी कठिनाई से बचने की और उनकी मन्नत पूरी हो जाती है, तो वह बाबा के मंदिर में एक घंटी बांधते हैं। इस वजह से मंदिर में सैकड़ों घंटियां टंगी हुई दिखती हैं, जो हर एक सैनिक की श्रद्धा और अनुभव की कहानी कहती हैं।
सैनिकों का यह भी मानना है कि यदि कोई आदेश या चेतावनी समय पर नहीं मिल पाती, तो ओपी बाबा सपने में आकर उन्हें सचेत करते हैं। कई बार सैनिकों ने यह भी बताया कि कठिन ऑपरेशन से पहले उन्हें सपने में ऐसे संकेत मिले, जिससे उन्होंने समय रहते स्थिति को संभाल लिया।
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आज भी हर जवान जब सियाचिन पहुंचता है, तो सबसे पहले ओपी बाबा के मंदिर में जाकर सिर झुकाता है। चाहे कितनी भी तेज बर्फबारी हो या तूफान चले, बाबा के मंदिर में आस्था की लौ हमेशा जलती रहती है। ओपी बाबा केवल एक श्रद्धा का नाम नहीं हैं, बल्कि सियाचिन में डटे हर सैनिक के लिए अदृश्य सुरक्षा कवच बन चुके हैं।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं।