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पंच निर्मोही अखाड़ा: जहां रानी लक्ष्मीबाई ने पाई थी शरण, ये है इतिहास

भारत में अखाड़ों का इतिहास प्राचीन काल से चला आ रहा है। इन्हीं में से एक है पंच निर्मोही अखाड़ा, जिसने दिया था रानी लक्ष्मीबाई को शरण।

Image of Sadhu in Kumbh Mela

कुंभ में अखाड़े।(Photo Credit: PTI)

महाकुंभ में देश के हर हिस्से 13 प्रमुख अखाड़े और उनके साधु-संत पवित्र स्नान के लिए एक स्थान पर आते हैं। बात दें कि भारत में साधु-संतों की परंपरा और अखाड़ों का इतिहास बहुत प्राचीन है, जिनकी शुरुआत आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा की गई थी। इन अखाड़ों ने समय-समय पर सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन्हीं प्रमुख अखाड़ों में से एक है श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा, जो नाथ संप्रदाय से जुड़ा हुआ है और अपने विशेष इतिहास, धार्मिक परंपराओं, और गौरवशाली विरासत के लिए प्रसिद्ध है।

श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा का इतिहास

निर्मोही अनी अखाड़ा की स्थापना का इतिहास 18वीं शताब्दी से कहा जाता है। 'निर्मोही' शब्द का अर्थ 'जिसे किसी भी प्रकार के सांसारिक मोह का बंधन न हो' है और यही इस अखाड़े के संतों का जीवन दर्शन है। इस अखाड़े रामानंदी संप्रदाय के नियमों का पालन किया जाता है, जिसमें भगवान राम की उपासना प्रमुख रूप से की जाती है। रामानंदी संतों का यह अखाड़ा वैष्णव परंपरा को मानता है, जो मुख्य रूप से अहिंसा, भक्ति और सात्विक जीवन के सिद्धांतों पर आधारित है।

 

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हालांकि, जहां एक तरफ अहिंसा इनके लिए महत्वपूर्ण है, वहीं इस अखाड़े का इतिहास धर्म की रक्षा और सामाजिक आंदोलनों के लिए प्रसिद्ध रहा है। 18वीं और 19वीं शताब्दी में जब भारत पर विदेशी आक्रमण और संघर्ष चल रहे थे, तब निर्मोही अनी अखाड़े के संतों ने जरूरत पड़ने पर हथियार उठाकर धर्म और देश की रक्षा भी की थी।

रानी लक्ष्मीबाई और निर्मोही अनी अखाड़ा

निर्मोही अनी अखाड़ा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से भी जुड़ी हुई है। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जब रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ा था, तब उन्होंने इस अखाड़े में शरण ली थी। निर्मोही अनी अखाड़ा के संतों ने रानी लक्ष्मीबाई को न केवल आश्रय दिया, बल्कि अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में उनका समर्थन भी किया था।

निर्मोही अनी अखाड़ा के इष्ट देव

निर्मोही अनी अखाड़े के इष्ट देव भगवान राम हैं। अखाड़े के सभी संत और साधु भगवान राम के अनन्य भक्त होते हैं और उनके जीवन व आदर्शों का पालन करते हैं। सनातन धर्म में भगवान श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में पूजा जाता है, जो धर्म, सत्य और न्याय के प्रतीक हैं। अखाड़े के संत रामायण और भगवद गीता के उपदेशों की भी पढ़ाई करते हैं और इन्हें अपने जीवन मे अपनाने की कोशिश करते हैं।

 

अखाड़े में भगवान राम के अलावा हनुमान जी की भी विशेष पूजा की जाती है। हनुमान जी को बल, भक्ति और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि अखाड़े के संतों में उनकी उपासना से अद्भुत शक्ति और साहस का संचार होता है।

 

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अखाड़े की ध्वजा (ध्वज)

अखाड़े की ध्वजा या झंडा अखाड़े की पहचान और उसकी धार्मिक-सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक होती है। निर्मोही अनी अखाड़ा की ध्वजा पर भगवान राम के प्रतीक चिह्न होते हैं, जैसे धनुष-बाण और राम नाम अंकित होता है। ध्वजा का रंग आमतौर पर केसरिया या भगवा होता है, जो त्याग, बलिदान और धर्म के प्रति समर्पण का प्रतीक है।

 

ये ध्वजा अखाड़े के जुलूस और धार्मिक समारोह में सबसे आगे चलता है, जो न केवल अखाड़े की धार्मिक पहचान को दर्शाती है, बल्कि यह अखाड़े के संतों के धर्म-रक्षा और आध्यात्मिक शक्ति के प्रतीक के रूप में भी देखी जाती है।

निर्मोही अनी अखाड़ा की भूमिका

निर्मोही अनी अखाड़ा ने धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर कई आंदोलनों में हिस्सा लिया है। इस अखाड़े ने समय-समय पर धार्मिक संस्थानों और तीर्थ स्थलों की रक्षा के लिए भी कदम उठाए हैं, जिसमें अयोध्या के राम जन्मभूमि विवाद में भी प्रमुखता से सामने आया है। अखाड़ा लंबे समय से अयोध्या में भगवान राम के मंदिर के अधिकार की मांग करता रहा था। साथ ही अखाड़े में नियमित रूप से राम कथा, भजन-कीर्तन और धार्मिक प्रवचन किए जाते हैं।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।

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