आस्था और श्रद्धा से जुड़ा पावन पर्व पापांकुशा एकादशी देशभर में श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है। शारदीय नवरात्रि के बाद पड़ने वाली यह एकादशी धार्मिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की आराधना करने और व्रत रखने से जीवन के समस्त पापों का नाश हो जाता है और भक्त को मोक्ष की प्राप्ति होती है। साल 2025 में पापाकुंशा एकादशी 3 अक्टूबर को मनाई जाएगी।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, पापांकुशा एकादशी का व्रत करने से हजार अश्वमेध यज्ञ और सौ राजसूय यज्ञ का फल मिलता है। कथा के अनुसार, विंध्याचल पर्वत पर रहने वाले एक पापी शिकारी को जब ऋषि अंगिरा ने इस व्रत का महत्व बताया और उसने श्रद्धापूर्वक इसे किया, तो मृत्यु के बाद उसे सीधा विष्णु लोक की प्राप्ति हुई। इसी वजह से इस व्रत को पापों के क्षय और विष्णु धाम की प्राप्ति का मार्ग माना जाता है।
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पौराणिक कथा
पापांकुशा एकादशी से जुड़ी कथा पद्मपुराण और विष्णुधर्मोत्तर पुराण में मिलती है। कथा के अनुसार, विंध्याचल पर्वत पर एक महाबली और क्रूर शिकारी किरात नामक व्यक्ति रहता था। वह हिंसा और पाप में लिप्त होकर जीवन व्यतीत करता था। एक दिन उसकी मृत्यु नजदीक आ गई। मृत्यु-दूत उसे लेने पहुंचे। भयभीत होकर उसने ऋषि अंगिरा से शरण मांगी और अपने पापों से मुक्ति का उपाय पूछा।
कथा के अनुसार, ऋषि अंगिरा ने उसे पापांकुशा एकादशी का व्रत करने का उपदेश दिया और कहा कि इस एकादशी का पालन करने से मनुष्य को हजार अश्वमेध यज्ञ और सौ राजसूय यज्ञ का फल मिलता है। इससे जीवन में संचित पाप मिट जाते हैं और मृत्यु के बाद वह सीधा विष्णु लोक को जाता है। किरात ने श्रद्धापूर्वक यह व्रत किया और मृत्यु के बाद विष्णु लोक को प्राप्त हुआ।
पापांकुशा एकादशी की मान्यता
पापांकुशा एकादशी आश्विन मास (शारदीय नवरात्रि के बाद) के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। धर्मशास्त्रों के अनुसार, इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के जीवन के सभी पाप मिट जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए इसे पापों का नाश करने वाली एकादशी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति इस व्रत को सच्चे भाव से करता है, उसके सभी कष्ट दूर होते हैं और मृत्यु के पश्चात वह विष्णु लोक में जाता है।
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इस दिन किसकी पूजा की जाती है
इस एकादशी पर मुख्य रूप से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है, विशेषकर उनके पद्मनाभ स्वरूप की। व्रती सुबह स्नान करके संकल्प लेते हैं, व्रत रखते हैं और विष्णु भगवान की मूर्ति और चित्र के सामने दीप, धूप, पुष्प, तुलसी दल, फल-फूल और पंचामृत अर्पित करके पूजा करते हैं। रात को जागरण और हरि नाम संकीर्तन का विशेष महत्व है।
धार्मिक महत्व
- इस व्रत से पापों का क्षय होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।
- व्रती को यमलोक का भय नहीं सताता, क्योंकि मृत्यु के बाद सीधे विष्णु धाम की प्राप्ति होती है।
- यह व्रत जीवन को संयम, सात्त्विकता और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
- ऐसा भी कहा गया है कि इस दिन दान-पुण्य करने से व्यक्ति अपने पितरों को तृप्त करता है और उन्हें भी मोक्ष का मार्ग मिलता है।