पापमोचिनी एकादशी हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस व्रत का विशेष धार्मिक महत्व है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति को अपने सभी पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-शांति का वास होता है।
वैदिक पंचांग के अनुसार, 25 और 26 मार्च के दिन भगवान विष्णु को समर्पित पापमोचिनी एकादशी व्रत का पालन किया जाएगा। बता दें कि ‘पापमोचिनी’ का अर्थ है- पापों को समाप्त करने वाली एकादशी और इस व्रत से जुड़ी एक रोचक कथा भी शास्त्रों में वर्णित हैं।
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पापमोचिनी एकादशी की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के प्राचीन काल में एक बार महर्षि लोमश अपने शिष्य मेधावी के साथ तपस्या कर रहे थे। एक दिन तपस्थली पर इंद्रलोक की अप्सरा ‘मन्मथिनी’ वहां आई और मेधावी ऋषि को मोहित कर दिया। मेधावी अप्सरा मोहिनी रूप में फंस गए और वर्षों तक उसके साथ समय बिताने लगे। जब मेधावी का तप नष्ट हो गया और उनका शरीर भी दुर्बल होने लगा, तब मन्मथिनी उन्हें छोड़ कर चली गई।
तब मेधावी को अपने कर्तव्य से भटकने का पश्चाताप हुआ। उन्होंने अपने गुरु लोमश के पास जाकर क्षमा मांगी और अपने पापों से मुक्ति का उपाय पूछा। गुरु लोमश ने उन्हें पापमोचिनी एकादशी का व्रत करने का निर्देश दिया।
इसके बाद मेधावी ने विधिपूर्वक इस व्रत को किया और अपने सभी पापों से मुक्त हो गए। तभी से यह एकादशी पापों का नाश करने वाली मानी जाती है। यह कथा यह संदेश देती है कि मोह और कामना में फंसकर व्यक्ति अपने धर्म और तप से भटक सकता है, परंतु उचित उपाय और भक्ति से वह फिर से सही मार्ग पर लौट सकता है।
पापमोचिनी एकादशी व्रत के नियम और विधि
पापमोचिनी एकादशी के व्रत की तैयारी दशमी तिथि की रात्रि से ही होती है। इस दिन सात्विक भोजन किया जाता है और ब्रह्मचर्य का पालन किया जाता है। साथ ही इस दिन मांस-मदिरा का सेवन भूलकर नहीं करना चाहिए।
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एकादशी की सुबह स्नान करके भगवान विष्णु के सामने व्रत का संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाएं, तुलसी, फूल, धूप, नैवेद्य आदि अर्पित करें। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना अत्यंत फलदायक होता है।
इस दिन निर्जला उपवास करने का महत्व है, परंतु स्वास्थ्य के अनुसार फलाहार या जल के साथ व्रत किया जा सकता है। किसी से झूठ बोलना, बुरे विचार और क्रोध से बचना चाहिए। रात्रि के समय भगवान विष्णु का कीर्तन करें और जागरण करें और अगले दिन यानी द्वादशी को व्रत का पारण करें।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।