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ग्वालियर का सास-बहू मंदिर, दर्शन से खत्म होते हैं झगड़े, आती है पारिवारिक शांति!

ग्वालियर में स्थित सास-बहू मंदिर अपने नाम के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है। यह मंदिर अपनी नक्काशी और स्थापत्य कला के लिए भी जाना जाता है।

Saas bahu mandirSas-Bahu Temple of Gwalior

सास-बहु मंदिर: Photo Credit: Wikipedia

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मध्य प्रदेश के ग्वालियर किले की ऊंचाई पर स्थित सास–बहू मंदिर न सिर्फ अपने अनोखे नाम, बल्कि अपनी भव्य वास्तुकला और ऐतिहासिक विरासत की वजह से भी देशभर में प्रसिद्ध है। 11वीं शताब्दी में बना यह मंदिर मध्य भारत की प्राचीन स्थापत्य कला का शानदार उदाहरण माना जाता है। पत्थरों पर की गई बारीक नक्काशी, विशाल स्तंभ और जालीदार संरचना आज भी दर्शकों को उस दौर की कला और धार्मिक आस्था की झलक दिखाती है।

 

लोक मान्यताओं और इतिहास के मेल से बना सास–बहू मंदिर अपने नाम को लेकर हमेशा जिज्ञासा का विषय रहा है। जहां एक ओर इसे पारिवारिक रिश्तों से जोड़कर देखा जाता है, वहीं इतिहासकार इसे भगवान विष्णु को समर्पित सहस्त्रबाहु मंदिर बताते हैं। समय के साथ 'सहस्त्रबाहु' शब्द के अपभ्रंश से इसका नाम सास–बहू मंदिर प्रचलित हो गया। मान्यता है कि यहां दर्शन करने से पारिवारिक कलह शांत होती है और रिश्तों में संतुलन बना रहता है।

 

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सास–बहू मंदिर की विशेषता

ग्वालियर किले के भीतर स्थित यह मंदिर 11वीं शताब्दी में बनाया गया था। इसकी सबसे बड़ी खासियत इसकी भव्य वास्तुकला और बारीक नक्काशी है। यह मंदिर वास्तव में दो मंदिरों का समूह है, एक बड़ा और एक छोटा। बड़ा मंदिर 'सास' और छोटा मंदिर 'बहू' के नाम से जाना जाता है, हालांकि ये नाम बाद में प्रचलन में आए।

 

मंदिर पूरी तरह से पत्थर से बना हुआ है और इसकी दीवारों, खंभों और छतों पर की गई नक्काशी आज भी लोगों को चकित करती है। मंदिर की ऊंचाई, झरोखे और जालीदार डिजाइन इसे स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण बनाते हैं।

मंदिर से जुड़ी मान्यता

लोक मान्यता के अनुसार, बड़ा मंदिर सास (माता समान) के लिए और छोटा मंदिर बहू (नववधू) के लिए बनवाया गया था। इसी वजह से इसका नाम सास–बहू मंदिर पड़ गया। हालांकि, धार्मिक दृष्टि से यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। माना जाता है कि यहां पूजा करने से पारिवारिक कलह दूर होती है और रिश्तों में संतुलन बना रहता है।

 

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मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा

इतिहासकारों के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण कच्छपघात वंश के राजा महिपाल ने कराया था। मंदिर का मूल नाम 'सहस्त्रबाहु मंदिर' था, जो भगवान विष्णु के एक रूप से जुड़ा हुआ है। समय के साथ 'सहस्त्रबाहु' शब्द बिगड़कर 'सास–बहू' बन गया।

 

इस मंदिर से जुड़ी कोई सीधी पौराणिक कथा नहीं मिलती लेकिन इसे वैष्णव परंपरा से जोड़कर देखा जाता है और यह माना जाता है कि यह मंदिर भगवान विष्णु की भक्ति का प्रमुख केंद्र रहा है।

मंदिर तक पहुंचने का रास्ता

स्थान: ग्वालियर किला, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)

 

कैसे पहुंचें:

 

नजदीकी रेलवे स्टेशन:


ग्वालियर जंक्शन देश के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़ा है। स्टेशन से ग्वालियर किला लगभग 3–4 किमी दूर है।

 

सड़क मार्ग:


ग्वालियर सड़क मार्ग से भोपाल, आगरा, झांसी और दिल्ली से जुड़ा है। टैक्सी या ऑटो से सीधे किले तक पहुंचा जा सकता है।

 

नजदीकी एयरपोर्ट:

  • ग्वालियर एयरपोर्ट से शहर की दूरी करीब 8–10 किमी है। वहां से टैक्सी लेकर किले तक जाया जा सकता है।
  • किले के अंदर प्रवेश करने के बाद थोड़ी चढ़ाई और पैदल रास्ता तय कर मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।

नोट: ये बातें धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं, हम इनकी पुष्टि नहीं करते हैं।

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