logo

ट्रेंडिंग:

शाकंभरी देवी मंदिर: भोजन और वनस्पतियों की देवी का इतिहास क्या है?

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में स्थित शाकंभरी देवी मंदिर अपनी मान्यता के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध हैं। यह मंदिर सहारनपुर के शिवालिक पहाड़ियों में स्थित है।

Shakambhari Devi Temple

शाकंभरी देवी मंदिर: Photo Credit: Social Media

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में शिवालिक पहाड़ियों की गोद में बसा शाकंभरी देवी मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र माना जाता है। अन्न और सब्जियों की अधिष्ठात्री मानी जाने वाली देवी शाकंभरी को समर्पित यह प्राचीन शक्तिपीठ अपनी अनोखी परंपराओं और सदियों पुरानी मान्यताओं के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। मान्यता है कि भयंकर अकाल के समय देवी ने धरती पर फल, सब्जियों और अनाज की वर्षा की थी, इसी वजह से उन्हें ‘शाकंभरी’ नाम मिला और मंदिर अन्नपूर्णा परंपरा का प्रमुख तीर्थ बन गया।

 

इतिहासकारों के अनुसार यह मंदिर करीब एक हजार वर्ष पुराना है और पांडवों के वनवास से लेकर मुगल काल तक इसके कई प्रमाण मिलते हैं। हर वर्ष चैत्र और शारदीय नवरात्र में लाखों भक्त यहां पहुंचते हैं, जहां देवी को सब्जियों और अनाज का विशेष प्रसाद चढ़ाने की अनोखी परंपरा आज भी जीवित है।

 

यह भी पढ़ें: तुलसी मानस मंदिर: रामायण की चौपाइयों से सजे इस मंदिर का इतिहास क्या है?

मंदिर की विशेषता

देवी शाकंभरी 'सब्जियों और अन्न की देवी' हैं

 

माना जाता है कि शाकंभरी देवी का वह रूप हैं जिन्होंने भयंकर अकाल के समय पृथ्वी पर सब्जियों, फलों और अनाज की वर्षा की थी। इसी वजह से उन्हें अन्नपूर्णा के समान 'पोषण देने वाली देवी' कहा जाता है।

 

विशेष प्रसाद - सब्जियां और अनाज

 

अन्य मंदिरों की तरह केवल मिठाई नहीं, बल्कि इस मंदिर में सब्जियां और अनाज भी चढ़ाए जाते हैं, जो उनकी विशेष पहचान है।

 

प्राकृतिक वातावरण

 

यह मंदिर घने जंगलों और पहाड़ियों के बीच स्थित है, जिससे यह आध्यात्मिक और प्राकृतिक दोनों रूप में आकर्षण का केंद्र माना जाता है।

मंदिर से जुड़ी मान्यता

देवी ने अकाल से पृथ्वी को बचाया

 

मान्यता है कि एक समय धरती पर भयंकर अकाल पड़ा। तब माता ने सब्जियों, फलों और जड़ी-बूटियों की उत्पत्ति कर लोगों को भोजन उपलब्ध कराया। इसी वजह से देवी का नाम शाकंभरी पड़ा।

 

देवी सतयुग से पूजित हैं

 

स्थानीय कथाओं के अनुसार, देवी शाकंभरी का यह स्थान सतयुग से सिद्ध पीठ है और यहां भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

 

राक्षस दुर्गमासुर का वध

 

प्रचलित कहानी के अनुसार, दुर्गमासुर ने सभी वेद छीन लिए थे, जिससे देवता शक्तिहीन हो गए। तब देवी शाकंभरी ने अवतार लेकर असुर का अंत किया और संसार का कल्याण किया।

 

यह भी पढ़ें- कौन हैं देवव्रत महेश रेखे, जिन्होंने 50 दिनों में पूरा किया दंडक्रम पारायण?

मंदिर का इतिहास

लगभग 1000–1200 वर्ष पुराना माना जाता है

 

ऐतिहासिक अभिलेखों और स्थानीय दस्तावेजों के अनुसार, यह मंदिर लगभग 1000 साल पुराना माना जाता है।

 

पांडव काल से भी संबंध माना जाता है

 

कुछ मान्यताओं में कहा जाता है कि पांडवों के वनवास के दौरान उन्होंने यहां पूजा-अर्चना की थी।

 

मुगल काल में संरक्षण

 

कहते हैं कि मुगल काल में भी स्थानीय लोगों ने माता को अत्यंत श्रद्धा से पूजा और मंदिर सुरक्षित रहा।

मंदिर तक पहुंचने का रास्ता

स्थान:

 

सहारनपुर जिले के बेहट कस्बे के निकट शिवालिक पहाड़ियों में।

 

कैसे पहुँचे?


सड़क मार्ग से:

 

सहारनपुर शहर से मंदिर की दूरी लगभग 40–45 किमी है। सहारनपुर से बेहट होते हुए मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। सड़क पूरी तरह पक्की है और पर्सनल गाड़ी, टैक्सी, बस आसानी से पहुंचती है।

 

रेल मार्ग से:

  • नजदीकी रेलवे स्टेशन सहारनपुर जंक्शन है,
  • यहां से टैक्सी, बस, ऑटो उपलब्ध रहते हैं।

 

निकटतम एयरपोर्ट:

  • देहरादून जॉलीग्रांट एयरपोर्ट (लगभग 90–95 किमी)
  • वहां से सड़क मार्ग से सहारनपुर पहुंचा जाता है

 

हल्की चढ़ाई

 

मंदिर के मुख्य परिसर तक कुछ सीढ़ियां हैं लेकिन चढ़ाई ज्यादा कठिन नहीं है।


और पढ़ें

design

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap