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यहां देवताओं की पूजा और प्रकृति का संरक्षण होता है एक साथ

भारत में कई ऐसे तीर्थस्थल हैं जहां देवी-देवताओं के साथ-साथ प्रकृति की भी उपासना की जाती है। आइए जानते हैं इस स्थानों से जुड़ी मान्यताएं।

Image of Nidhivan in Vrindavan

वृन्दावन में स्थित निधिवन।(Photo Credit: Wikimedia Commons)

भारत में देवी-देवताओं की उपासना के साथ-साथ प्रकृति की उपासना का भी विशेष महत्व है। साथ ही कई ऐसे मंदिर हैं जो न केवल धार्मिक आस्था के केंद्र हैं, बल्कि प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण के प्रतीक भी हैं। ये मंदिर नदियों, जंगलों, पहाड़ों और वन्यजीवों के साथ गहरे संबंध रखते हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भारतीय संस्कृति में प्रकृति को देवत्व का दर्जा प्राप्त है। आइए, ऐसे कुछ प्रमुख मंदिरों के बारे में विस्तार से जानें:

निधिवन, वृंदावन (उत्तर प्रदेश)

वृंदावन का निधिवन एक रहस्यमयी स्थान है, जहां तुलसी के पौधे जोड़े में उगते हैं। यहां स्थित 'रंग महल' में मान्यता है कि राधा-कृष्ण रासलीला के बाद विश्राम करते हैं। रात्रि में किसी को भी यहां रुकने की अनुमति नहीं है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि रासलीला आज भी होती है। तुलसी के पौधों की पूजा और संरक्षण यहां की विशेषता है, जो पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक धार्मिक प्रेरणा है।

बगहा का शिव मंदिर (बिहार)

बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले में स्थित यह मंदिर एक पीपल और बरगद के पेड़ के भीतर स्थित है। यहां की जड़ें 'ॐ' की आकृति बनाती हैं और शाखाएं शिव के त्रिशूल, डमरू जैसी आकृतियां बनाती हैं। मान्यता है कि संत हरिनाथ बाबा की तपस्या से यहां शिवलिंग प्रकट हुआ। यह मंदिर पेड़ों को देवता के रूप में मानने की परंपरा को दर्शाता है, जिससे पेड़ों का संरक्षण सुनिश्चित होता है।

 

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बद्रीनाथ मंदिर (उत्तराखंड)

हिमालय की गोद में स्थित बद्रीनाथ मंदिर न केवल आध्यात्मिक महत्व रखता है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के लिए भी जाना जाता है। यहां विश्व पर्यावरण दिवस पर भोजपत्र, देवदार और कैल के पौधों का रोपण किया जाता है। यह पहल ग्लोबल वार्मिंग और ग्लेशियरों के पिघलने के खतरे को देखते हुए की गई है, जिससे तीर्थयात्रियों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ती है।

महालक्ष्मी-अंबाबाई मंदिर, कोल्हापुर (महाराष्ट्र)

इस मंदिर में 'वृक्ष प्रसाद' की अनूठी पहल शुरू की गई है, जिसमें भक्तों को प्रसाद के रूप में एक स्वदेशी पेड़ का पौधा भेंट किया जाता है। यह पहल पर्यावरण संरक्षण को धार्मिक आस्था से जोड़ती है, जिससे लोग पौधों की देखभाल को अपना कर्तव्य मानते हैं।

बिश्नोई समाज और मुकाम मंदिर (राजस्थान)

बिश्नोई समाज प्रकृति और जीव-जंतुओं के संरक्षण के लिए प्रसिद्ध है। गुरु जम्भेश्वर द्वारा स्थापित इस समाज के 29 नियमों में हरे वृक्ष न काटना और प्राणी मात्र पर दया रखना शामिल है। मुकाम मंदिर में गुरु जम्भेश्वर की समाधि है, जहां खेजड़ी के पेड़ की पूजा होती है। यह समाज कृष्ण मृग, नीलगाय और मोर जैसे वन्यजीवों की रक्षा करता है, जिससे जैव विविधता बनी रहती है।

बेंगलुरु का बैल मंदिर (कर्नाटक)

यह मंदिर भगवान शिव के वाहन नंदी (बैल) को समर्पित है। यहां नंदी की विशाल मूर्ति स्थापित है, जो किसानों को अपने बैलों की बेहतर देखभाल के लिए प्रेरित करती है। यह मंदिर पशु कल्याण और कृषि के महत्व को दर्शाता है, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी को संतुलित किया जाता है।

 

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मां मुंडेश्वरी मंदिर (बिहार)

बिहार के कैमूर जिले में स्थित यह मंदिर अष्टकोणीय संरचना में बना है और यहां पंचमुखी शिवलिंग स्थापित है, जिसका रंग दिन के तीनों पहरों में बदलता रहता है। यहां बिना रक्त बहाए पशु बलि दी जाती है, जिसमें बकरे को माता के सामने लाकर चावल फेंकने से वह अचेत हो जाता है और फिर कुछ क्षणों बाद पुनः चेतना में आकर वापस छोड़ दिया जाता है। यह प्रक्रिया पर्यावरण और जीवों के प्रति संवेदनशीलता को दर्शाती है।

गेपरनाथ महादेव मंदिर (राजस्थान)

कोटा के पास स्थित यह मंदिर एक पहाड़ी की तलहटी में 400 फीट गहराई में स्थित है। यहां शिवलिंग पर प्राकृतिक जलधारा निरंतर बहती रहती है, जो पर्यावरण और धार्मिक आस्था का सुंदर समन्वय है। मंदिर के पास एक प्राकृतिक जलाशय भी है, जहां श्रद्धालु स्नान करते हैं।

बीजासन माता मंदिर (राजस्थान)

बूंदी जिले के इंद्रगढ़ में स्थित यह मंदिर अरावली पर्वतमाला की एक गुफा में स्थित है। यहां देवी बीजासन की पूजा होती है, जो दुर्गा का एक रूप हैं। मंदिर तक पहुंचने के लिए 750 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं, जो भक्तों को प्रकृति के साथ एकात्मता का अनुभव कराती हैं।

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