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त्रिलोकीनाथ मंदिर: जहां हिंदू और बौद्ध दोनों ही करते हैं पूजा

हिमाचल प्रदेश में स्थित त्रिलोकीनाथ मंदिर अपनी मान्यताओं के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है। इस मंदिर में बौद्ध और हिंदू धर्म के लोग एक साथ भगवान शिव की पूजा करते हैं।

Trilokinath Temple

त्रिलोकीनाथ मंदिर: Photo Credit: Wikipedia

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हिमाचल प्रदेश की देवभूमि में आस्था और सांस्कृतिक एकता का एक ऐसा अद्भुत उदाहरण मौजूद है, जहां हिंदू और बौद्ध परंपराएं एक ही स्थान पर मिलती हैं। लाहौल-स्पीति जिले की ऊंची और बर्फीली वादियों के बीच स्थित त्रिलोकीनाथ मंदिर न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सदियों से चले आ रहे धार्मिक सह-अस्तित्व और सौहार्द का प्रतीक भी माना जाता है। भगवान शिव को समर्पित यह प्राचीन मंदिर बौद्ध श्रद्धालुओं के लिए भी उतना ही पूज्यनीय है। 

 

बौद्ध धर्म के लोग यहां भगवान शिव को अवलोकितेश्वर के रूप में मानते हैं। हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक इस पवित्र स्थल पर पहुंचकर दर्शन करते हैं और हिमालय की गोद में बसे इस मंदिर की आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव करते हैं। यह मंदिर अपनी अनोखी मान्यताओं, पौराणिक कथाओं और सांस्कृतिक महत्व की वजह से देश-विदेश के श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करता है।

 

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त्रिलोकीनाथ मंदिर की प्रमुख विशेषताएं

त्रिलोकीनाथ मंदिर को हिमाचल प्रदेश का सबसे प्राचीन और पवित्र मंदिर माना जाता है। यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 2,750 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां स्थापित देवता को हिंदू भगवान शिव के रूप में पूजा जाता है जबकि बौद्ध धर्म में इन्हें अवलोकितेश्वर माना जाता है।

 

मंदिर की वास्तुकला काठ-कुनी शैली से प्रभावित है और यहां पत्थर और लकड़ी का सुंदर संयोजन देखने को मिलता है। मंदिर परिसर में शांत वातावरण, बर्फ से ढकी पहाड़ियां और बहती नदियां इसकी आध्यात्मिक ऊर्जा को और बढ़ा देती हैं।

मंदिर से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं

मान्यता है कि त्रिलोकीनाथ मंदिर में दर्शन करने से सभी कष्टों का नाश होता है और भक्त को मोक्ष की प्राप्ति होती है। स्थानीय लोगों का विश्वास है कि भगवान त्रिलोकीनाथ अपने भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करते हैं। विशेषकर संतान सुख, रोग निवारण और मानसिक शांति के लिए यहां पूजा-अर्चना की जाती है। कहा जाता है कि यहां सच्चे मन से की गई प्रार्थना कभी निष्फल नहीं जाती।

त्रिलोकीनाथ मंदिर की पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने इस स्थान पर तपस्या की थी और तीनों लोकों स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल की रक्षा के लिए यहां प्रकट हुए, इसी वजह से इन्हें त्रिलोकीनाथ कहा गया।

 

एक अन्य कथा के अनुसार, यह स्थान करुणा और दया के प्रतीक अवलोकितेश्वर से जुड़ा हुआ है, जो बौद्ध धर्म में सभी जीवों के दुख हरने वाले माने जाते हैं। समय के साथ यह स्थान हिंदू और बौद्ध दोनों परंपराओं में समान रूप से पूजनीय बन गया।

 

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बौद्ध धर्म से मंदिर का संबंध

त्रिलोकीनाथ मंदिर का बौद्ध धर्म से गहरा संबंध है। बौद्ध अनुयायी यहां भगवान शिव को अवलोकितेश्वर बोधिसत्व के रूप में पूजते हैं। यह दुनिया के उन दुर्लभ धार्मिक स्थलों में से एक है, जहां हिंदू और बौद्ध श्रद्धालु एक ही देवता की पूजा करते हैं लेकिन अलग-अलग धार्मिक परंपराओं के अनुसार। आज भी यहां बौद्ध भिक्षु पूजा करते हैं और मंत्रोच्चार करते देखे जा सकते हैं।

मंदिर तक पहुंचने का रास्ता

त्रिलोकीनाथ मंदिर तक पहुंचने के लिए सबसे पहले हिमाचल प्रदेश के केलांग पहुंचना होता है, जो लाहौल-स्पीति जिले का मुख्यालय है।

 

सड़क मार्ग:


केलांग से लगभग 9–10 किलोमीटर की दूरी पर त्रिलोकीनाथ गांव स्थित है। केलांग से टैक्सी या स्थानीय बस के माध्यम से आसानी से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।

 

नजदीकी एयरपोर्ट:


निकटतम हवाई अड्डा भुंतर (कुल्लू) है। यहां से सड़क मार्ग के जरिए केलांग और फिर त्रिलोकीनाथ पहुंचा जाता है।

 

नजदीकी रेलवे स्टेशन:


निकटतम रेलवे स्टेशन जोगिंदर नगर है लेकिन वहां से आगे सड़क मार्ग से यात्रा करनी होती है।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

त्रिलोकीनाथ मंदिर केवल पूजा स्थल ही नहीं, बल्कि धार्मिक सौहार्द और सह-अस्तित्व का जीवंत उदाहरण है। यहां हर साल हिंदू और बौद्ध समुदाय मिलकर उत्सव मनाते हैं। यह मंदिर लाहौल-स्पीति की आध्यात्मिक पहचान का केंद्र है और इसे 'हिंदू-बौद्ध एकता का प्रतीक' भी कहा जाता है।


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