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भगवान शिव के पहले 7 शिष्य, जिन्होंने किया था ज्ञान का प्रसार

भगवान शिव के प्रथम शिष्य सप्तऋषियों को कहा जाता है। इन्हीं सात ऋषियों ने ज्ञान का प्रसार विश्व में किया था। आइए जानते हैं इनसे जुड़ी कथा और महत्व।

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सांकेतिक चित्र।(Photo Credit: AI Image)

हिंदू धर्म में भगवान शिव की उपासना सृष्टि के संहारक के रूप में की जाती है। धर्म-ग्रंथों में भगवान शिव के सहस्र नाम जैसे- महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ, महाकाल, सर्वेश्वर का उल्लेख किया गया है। इन नामों में से एक नाम आदिगुरु भी है, जिसका अर्थ है प्रथम देवता। उन्हें ज्ञान, योग, ध्यान और आध्यात्मिकता का मूल स्रोत माना जाता है। धर्म शास्त्रों में यह उल्लेख मिलता है कि भगवान शिव से ही सभी विद्याओं की उत्पत्ति हुई थी। उन्होंने इन सभी विद्वाओं को अपने पहले 7 शिष्यों को दिया था।

आदिगुरु का महत्व

धर्म शास्त्रों में यह बताया गया है कि भगवान शिव ने सप्तऋषियों को ज्ञान का उपदेश दिया, जिससे वे संसार में योग और ध्यान का प्रचार कर सके। योग की सभी विधियां और साधनाएं भगवान शिव से उत्पन्न हुई हैं। यही कारण है कि उन्हें 'योगेश्वर' और 'आदियोगी' भी कहा जाता है। इस ज्ञान को सप्तऋषियों के माध्यम से पूरी मानवता तक पहुंचाया।

सप्तऋषियों का परिचय

सप्तऋषियों की उत्पत्ति का वर्णन हिंदू धर्म के प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। कथा के अनुसार, सृष्टि के रचयता ब्रह्मा जी ने सृष्टि के संतुलन और ज्ञान के प्रसार के लिए अपने मानस पुत्रों को उत्पन्न किया। इन्हीं में से सात महान ऋषियों को सप्तऋषि कहा गया। ये सात ऋषि हैं – अत्रि, भृगु, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, कश्यप और भारद्वाज।


सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मा जी ने इन सप्तऋषियों को ज्ञान, धर्म, योग और वेदों के रहस्यों को सिखाया और संसार में इनका प्रचार करने का दायित्व सौंपा। जिसके बाद भगवान शिव ने उन्हें शिष्य के रूप में अपनाया और ज्ञान दिया।

 

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अत्रि ऋषि:

अत्रि ऋषि ब्रह्मा, विष्णु और महेश के त्रिगुणों के प्रतीक माने जाते हैं। उन्होंने तपस्या और ध्यान के माध्यम से धर्म का प्रचार किया। वे औषधीय ज्ञान और आयुर्वेद के विशेषज्ञ भी माने जाते हैं।

भृगु ऋषि:

भृगु ऋषि ज्योतिष और भविष्यवाणी के ज्ञान में पारंगत थे। उन्होंने समाज को ज्योतिष का ज्ञान दिया और ब्रह्मांड की गूढ़ विद्या का प्रसार किया।

वशिष्ठ ऋषि:

वशिष्ठ ऋषि को वेदों और धर्मशास्त्रों का ज्ञाता माना जाता है। रामायण काल में वह भगवान राम के गुरु थे।

विश्वामित्र ऋषि:

विश्वामित्र ऋषि ने तपस्या से ब्रह्मर्षि का पद प्राप्त किया। उन्होंने 'गायत्री मंत्र' की रचना की और उन्हें भी भगवान श्री राम व लक्ष्मण जी का गुरु कहा जाता है।

गौतम ऋषि:

गौतम ऋषि ने न्याय और धर्म के सिद्धांतों का प्रचार किया। उनकी शिक्षा ने समाज में नैतिकता और न्याय का प्रसार किया।

 

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कश्यप ऋषि:

कश्यप ऋषि को सृष्टि का निर्माता माना जाता है। वे ब्रह्मा के मानस पुत्र थे और उन्होंने देवताओं और असुरों के वंश को जन्म दिया।

भारद्वाज ऋषि:

भारद्वाज ऋषि ने विज्ञान और तकनीकी ज्ञान का प्रचार किया। वे चिकित्सा और आयुर्वेद के ज्ञाता थे।

सप्तऋषियों ने किया था ज्ञान का प्रसार

सप्तऋषियों ने भगवान शिव के ज्ञान को ग्रहण कर उसे पूरी दुनिया में फैलाया। मानव जाति तक वेद, योग, ध्यान और अध्यात्म का ज्ञान इन्हीं सप्तऋषियों के माध्यम से पहुंचा। वर्तमान समय यह ज्ञान धर्म-शास्त्रों के रूप में मौजूद हैं।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।

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