बिहार के औरंगाबाद जिले में स्थित देव सूर्य मंदिर में छठ महापर्व के दौरान भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है। यह वही पवित्र स्थान है, जहां सूर्य देव की आराधना का इतिहास सदियों पुराना है। हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में होने वाले छठ पर्व पर लाखों व्रती और श्रद्धालु यहां इकठ्ठा होकर अस्ताचलगामी (डूबते) और उदयाचलगामी (उगते) सूर्य को अर्घ्य देते हैं। मान्यता है कि इस मंदिर में की गई पूजा-अर्चना से सूर्य देव विशेष रूप से प्रसन्न होते हैं और श्रद्धालुओं की हर मनोकामना पूर्ण होती है। सामान्य रूप से छठ महापर्व के दौरान जलाशय या फिर नदी के किनारे सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है लेकिन बिहार के देव सूर्य मंदिर में छठ पर्व के दौरान भगवान सूर्य की विशेष पूजा की जाती है।
देव सूर्य मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह देश का एकमात्र पश्चिमाभिमुख सूर्य मंदिर है, यानी इसका मुख्य द्वार पश्चिम दिशा की ओर खुलता है। मान्यता के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने त्रेता युग में किया था। स्थानीय लोगों का विश्वास है कि यह वही स्थान है जहां एक राजा का कुष्ठ रोग सूर्यकुंड के जल से स्नान करने पर ठीक हुआ था, जिसके बाद मंदिर की स्थापना हुई। इस साल 25 अक्टूबर 2025 से छठ महापर्व शुरू होगा।
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हर साल छठ के मौके पर यहां का नजारा अद्भुत होता है। लाखों श्रद्धालु सूर्यकुंड में स्नान कर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं। पूरे क्षेत्र में छठी मइया के जयकारे और भक्ति गीतों की गूंज सुनाई देती है। औरंगाबाद जिला प्रशासन हर साल इस पर्व पर विशेष व्यवस्था करती है, जिससे देशभर से आने वाले श्रद्धालुओं को कोई असुविधा न हो।
छठ पूजा में क्यों विशेष है देव सूर्य मंदिर?
अस्ताचलगामी और उदयाचलगामी सूर्य अर्घ्य
भक्त इस मंदिर में छठ के समय अस्ताचलगामी सूर्य (सूर्य डूबते समय) और उदयाचलगामी सूर्य (सूर्य उगते समय) दोनों को अर्घ्य देने की परंपरा निभाते हैं।
व्रती श्रद्धालुओं की विशाल संख्या
हर छठ पर लाखों व्रती जिला और राज्य के अलग-अलग हिस्सों से देव मंदिर और सूर्यकुंड के पास इकठ्ठा होते हैं। उदाहरण के लिए साल 2024 में देव सूर्य मंदिर में लगभग 15 लाख लोगों ने अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य दिया था।
पवित्र जलाशय/सूर्यकुंड
मंदिर के पास एक सूर्यकुंड है जहां भक्त 'नहाय-खाय' और अस्ताचल और उदयाचल सूर्य अर्घ्य के समय स्नान करते हैं। यह स्नान और पूजा, अनुष्ठानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
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मन्नत पूरी होने की आस्था
भक्तों की मान्यता है कि अगर इस मंदिर में मन से पूजा-अर्चना की जाए, तो यहां सूर्य देव की कृपा मिलती है। साथ ही आत्मिक शांति, स्वास्थ्य, समृद्धि और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
मंदिर से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं
मान्यता है कि लंका पर विजय प्राप्ति के बाद भगवान श्रीराम ने यहां सूर्यदेव की पूजा की थी और उनके आशीर्वाद से सभी दोषों से मुक्ति पाई थी। वहीं एक कथा यह भी कहती है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने अपने अज्ञातवास के समय किया था। यही वजह है कि देव सूर्य मंदिर को धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र और ऐतिहासिक महत्व वाला स्थल माना जाता है।
वहीं, मंदिर के बाहर लिखे श्लोक की मानें तो इस मंदिर का निर्माण राजा इला के पुत्र पुरुरवा ऐल ने 12 लाख 16 हजार वर्ष त्रेता युग के बीत जाने के बाद इस मंदिर का निर्माण शुरू करवाया था।
एक अन्य किंवदंती के अनुसार, मूही अल-दीन मोहम्मद जिसे आलमगीर या औरंगजेब के नाम से जाना जाता था। वह पूरे भारत में मंदिर तोड़ते हुए औरंगाबाद के देव पहुंचा। ऐसे में यहां के पुजारियों ने इस मंदिर को न तोड़ने की आरजू-विनती की लेकिन औरंगजेब यह कहते हुए वहां से चला गया कि अगर तुम्हारे भगवान में शक्ति है तो इसका दरवाजा पश्चिम को हो जाए। मान्यताओं के अनुसार, पुजारी रात्रि भर सूर्य भगवान से प्रार्थना करते रहे कि हे भगवान औरंगजेब की बात सही साबित हो जाए। कहा जाता है कि अगली सुबह जब पुजारी मंदिर पहुंचे तो मुख्य द्वार पूर्व न होकर पश्चिमा मुखी हो चुका था, तब से देव सूर्य मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिम की तरफ में ही है।
मंदिर तक कैसे पहुंचें?
- देव सूर्य मंदिर, बिहार के औरंगाबाद जिले के देव नामक कस्बे में स्थित है।
- यहां पहुंचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन औरंगाबाद रेलवे स्टेशन है, जो लगभग 10–12 किलोमीटर दूर है।
- पटना से सड़क मार्ग के जरिए लगभग 140 किलोमीटर की दूरी तय करके यहां पहुंचा जा सकता है।
- गया हवाई अड्डा (लगभग 120 किमी दूर) निकटतम एयरपोर्ट है, जहां से टैक्सी और बसों के जरिए आसानी से मंदिर पहुंचा जा सकता है।