logo

ट्रेंडिंग:

SFURTI योजना: कैसे पारंपरिक इंडस्ट्री को फिर से जिंदा कर रही सरकार?

इस योजना के तहत सरकार खादी, बांस और अगरबत्ती जैसे पारंपरिक उद्योगों को जिंदा करने और उसे कमाई का बेहतरीन ज़रिया बनाने की कोशिश कर रही है।

sfurti government scheme

प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: AI Generated

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

भारत के ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी इलाकों में फैले पारंपरिक उद्योग जैसे- खादी, बांस, अगरबत्ती, क्वायर, हस्तशिल्प और टेराकोटा इत्यादि लंबे समय से बाजार, पूंजी और तकनीक की कमी से जूझते रहे हैं। बड़े उद्योगों और मशीन बनाने वाले उत्पादों की प्रतिस्पर्द्धा ने इन क्षेत्रों में काम करने वाले कारीगरों की आय और रोजगार को कमजोर किया। ऐसे समय में केंद्र सरकार की Scheme of Fund for Regeneration of Traditional Industries (SFURTI) पारंपरिक उद्योगों को दोबारा खड़ा करने की एक अहम कोशिश के तौर पर उभरी है।

 

SFURTI योजना सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय द्वारा संचालित की जा रही है और इसकी शुरुआत वर्ष 2005-06 में की गई थी। मौजूदा स्वरूप में यह योजना 2021 से 2026 तक लागू है। योजना का मूल विचार क्लस्टर आधारित विकास है, जिसके तहत एक ही तरह के पारंपरिक उद्योग से जुड़े कारीगरों को संगठित कर उन्हें आधुनिक मशीनरी, प्रशिक्षण, डिजाइन सहायता और बाजार से जोड़ने की सुविधा दी जाती है। सरकार इसमें लोन नहीं बल्कि अनुदान देती है, ताकि छोटे कारीगर कर्ज के बोझ में न फंसें।

 

यह भी पढ़ें: 1971 का जिक्र, नए बांग्लादेश का सपना, 17 साल बाद लौटे तारिक ने बताया अपना प्लान

अब तक 500 से अधिक क्लस्टर

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, देश भर में SFURTI के तहत अब तक 500 से अधिक क्लस्टर स्वीकृत किए जा चुके हैं, जिनसे दो लाख से ज्यादा कारीगर और श्रमिक सीधे जुड़े हैं। इन परियोजनाओं की कुल लागत 4,000 करोड़ रुपये से अधिक बताई जाती है, जिसमें केंद्र सरकार का योगदान 70 से 90 प्रतिशत तक होता है। रेगुलर क्लस्टर के लिए अधिकतम 8 करोड़ रुपये और बड़े क्लस्टर के लिए 25 करोड़ रुपये तक का अनुदान दिया जाता है। मंत्रालय का दावा है कि एक औसत SFURTI क्लस्टर 500 से 800 स्थायी रोजगार पैदा करता है।

 

ओडिशा के कंधमाल जिले का बांस आधारित SFURTI क्लस्टर इस योजना के प्रभाव का एक उदाहरण है। योजना से पहले यहां के कारीगर स्थानीय बाजारों में साधारण बांस उत्पाद बेचकर महीने में औसतन 6,000 से 7,000 रुपये ही कमा पाते थे। SFURTI के तहत कॉमन फैसिलिटी सेंटर की स्थापना, आधुनिक कटिंग मशीनें और नए डिजाइन उपलब्ध कराए गए। नतीजा यह हुआ कि कारीगरों की औसत आय बढ़ गई। इस क्लस्टर में काम करने वालों में महिलाओं की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत से अधिक बताई जा रही है और उत्पाद अब राज्य के बाहर के बाजारों तक पहुंचने लगे हैं।

महिला एवं SC-ST व OBC की भागीदारी

कर्नाटक के मैसूरु जिले में स्थापित अगरबत्ती क्लस्टर भी महिला रोजगार के लिहाज से अहम माना जा रहा है। SFURTI से पहले यहां उत्पादन पूरी तरह हाथ से होता था, जिससे गुणवत्ता और पैकेजिंग कमजोर रहती थी। योजना के तहत सेमी-ऑटोमेटिक मशीनें, पैकेजिंग यूनिट और ब्रांडिंग सपोर्ट मिलने के बाद उत्पादन क्षमता और गुणवत्ता दोनों में सुधार हुआ। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस क्लस्टर से 1,200 से अधिक महिलाएं सीधे जुड़ी हैं और उनकी आय में करीब 40 प्रतिशत तक बढ़ोतरी दर्ज की गई है। स्थानीय ब्रांड अब दक्षिण भारत के रिटेल नेटवर्क तक पहुंच बना चुके हैं।

 

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर का टेराकोटा क्लस्टर SFURTI का एक और अहम उदाहरण है। गोरखपुर की टेराकोटा कला को पहले से GI टैग मिला हुआ था, लेकिन बाजार और तकनीक की कमी के कारण कारीगर इसका पूरा लाभ नहीं उठा पा रहे थे। SFURTI के तहत साझा भट्टियां, गुणवत्ता परीक्षण सुविधाएं और निर्यात मानकों की ट्रेनिंग दी गई। इसके बाद दिल्ली और मुंबई की प्रदर्शनियों में इन उत्पादों की सीधी बिक्री शुरू हुई और कई कारीगरों की सालाना आय में 50 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज की गई।

 

रोजगार और सामाजिक प्रभाव के लिहाज से भी SFURTI के परिणाम महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। मंत्रालय के अनुसार, इस योजना से जुड़े क्लस्टरों में महिलाओं और SC-ST व OBC समुदायों की हिस्सेदारी भी उल्लेखनीय रूप से बढ़ी है। कई जिलों में गैर-कृषि रोजगार बढ़ने से ग्रामीण इलाकों से शहरों की ओर पलायन में कमी आने की बात कही जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह योजना ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए मनरेगा के बाद सबसे प्रभावी गैर-कृषि रोजगार पहल बन सकती है।

 

सरकार SFURTI को ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान से भी जोड़कर देख रही है। इसके तहत क्लस्टरों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मेलों, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म और निर्यात बाजारों से जोड़ने की कोशिश की जा रही है। MSME मंत्रालय का कहना है कि कई SFURTI क्लस्टर अब निर्यात-उन्मुख बन रहे हैं, जिससे पारंपरिक उत्पादों को वैश्विक पहचान मिल रही है।

 

यह भी पढ़ें: 'मुझे नहीं जानते हो, अभी जान जाओगे', AMU में टीचर की हत्या मामले में नया खुलासा

क्या हैं चुनौतियां?

हालांकि जमीनी स्तर पर कुछ चुनौतियां भी सामने आ रही हैं। कई राज्यों में फंड रिलीज़ में देरी, पेशेवर प्रबंधन की कमी और मार्केट लिंकेज का असमान विकास देखा गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि निजी क्षेत्र, डिजाइन स्टार्टअप्स और डिजिटल मार्केटिंग एजेंसियों को बड़े पैमाने पर इससे जोड़ा जाए, तो योजना का असर और व्यापक हो सकता है।

 

कुल मिलाकर, SFURTI योजना यह संकेत देती है कि पारंपरिक उद्योग केवल अतीत की विरासत नहीं, बल्कि भविष्य का टिकाऊ रोजगार मॉडल भी बन सकते हैं। उपलब्ध आंकड़े और केस स्टडी बताते हैं कि सही क्रियान्वयन के साथ यह योजना ग्रामीण रोजगार, महिला सशक्तिकरण और आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को मजबूती देने में अहम भूमिका निभा सकती है।

Related Topic:#Government Scheme

और पढ़ें

design

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap